मुहब्बत का कभी इज़हार करना ही नहीं आया
मुहब्बत का कभी इज़हार करना ही नहीं आया,
मेरी कश्ती को दरिया पार करना ही नहीं आया.
जिसे जो चाहिए था तोड़ कर वो ले गया उनसे,
दरख्तों को कभी इनकार करना ही नहीं आया.
हमारे दोस्तों ने हाथ में खंजर थमाया भी,
मगर दुश्मन पे हमको वार करना ही नहीं आया.
इधर नज़रें मिलीं और तुम उधर दिल हार भी बैठे,
मेरी जाँ तुमको आँखें चार करना ही नहीं आया.
मैं दुनिया ही का हो कर रह गया होता मगर इसको,
मुहब्बत से कभी इसरार करना ही नहीं आया.
यहाँ सच बोलना जोखिम भरा है
यहाँ सच बोलना जोखिम भरा है.
उसे मालूम है, पर बोलता है.
समझ आने नहीं वाला हमें कुछ,
हमारी अक्ल पर पत्थर पड़ा है.
वो टहनी जिस पे खुद बैठे हुए हों,
कभी उसको भी कोई काटता है?
ये कह कर दिल को बहलाएँगे अब ये,
चलो जो भी हुआ अच्छा हुआ है.
तुम्हारे घर से लेकर मेरे घर तक,
ज़रा मुश्किल है, लेकिन रास्ता है!
उतारें यूँ न गुस्सा बर्तनों पर,
हमें भी तो बताएं बात क्या है!
अगर दो जिस्म और इक जान हैं हम,
तो फिर क्यों दरमियाँ ये फासला है?
कहाँ तिशनगी के नजारें मिलेंगे
कहाँ तिशनगी के नजारें मिलेंगे,
नदी के किनारे किनारे मिलेंगे.
नहीं खाएंगे लाठियां सच की खातिर,
फकत खोखले तुमको नारे मिलेंगे.
समंदर के जैसा हुआ शहर अपना,
यहाँ लोग भी तुमको खारे मिलेंगे.
सफर, मंजिलें सब नए मिल भी जाएँ,
कहाँ हमसफर इतने प्यारे मिलेंगे.
दिलों पर पड़ी गर्द जब भी हटेगी,
यहाँ नाम लिक्खे हमारे मिलेंगे.
ये तिनके ही हैं जो निभाएंगे तुमसे,
इन्हीं के तुम्हें कल सहारे मिलेंगे.
कभी रात छत पर बिता कर तो देखो,
कई टूटते तुमको तारे मिलेंगे.
मेरी हिम्मत के पौधे को वो आकर सींच जाती है
मेरी हिम्मत के पौधे को वो आकर सींच जाती है,
अकेला जान कर मुझको, हवा तेवर दिखाती है.
इनायत उस मेहरबां की हुई रुक रुक के कुछ ऐसे,
घने पेड़ों से छन छन कर सुबह ज्यों धूप आती है.
दिया हाथों में कासा और सीने में दी ख़ुद्दारी,
बता ऐ जिंदगी ऐसे भला क्यों आज़माती है.
रहन रख आये आखिर हम उसूलों के सभी गहने,
करें क्या भूख आकर रोज़ कुण्डी खटखटाती है.
ये पत्थर तोड़ते बच्चे ज़मीं से हैं जुड़े कितने,
पसीने में घुली मिटटी गले इनको लगाती है.
मुझे ही हो गई है तिश्नगी से दोस्ती वरना,
कोई बदली मेरी छत पर बरसने रोज़ आती है.
जहाँ में माँ की ममता से घनी और छांव क्या होगी,
मुझे पाला, मेरे बच्चों को भी लोरी सुनाती है.
गाँव जब जाओ तो कुछ उपचार उनसे पूछना
गाँव जब जाओ तो कुछ उपचार उनसे पूछना,
क्यों हुआ है शहर ये बीमार उनसे पूछना.
क्या पता किस धुन मे हाँ कह दें किसी भी बात पर,
मान भी जाएँ अगर,सौ बार उनसे पूछना.
वो जो हर मुश्किल से टकराते रहे हैं उम्र भर,
अपने बेटों से हैं क्यों लाचार उनसे पूछना.
जब सुलझ सकते हों मसले दोस्ती से प्यार से,
क्यों उठा लेते है वो तलवार उनसे पूछना.
लेखनी मे अब भला वो आग क्यों दिखती नहीं,
बिक गये क्या देश के अख़बार उनसे पूछना.
हर तरफ रावण हैं, दुर्योधन, दुशासन, कंस हैं,
कब जनम लेगा कोई अवतार उनसे पूछना.
टूटते हैं क्या कभी रिश्ते सभी कुछ त्याग कर,
जो गये हैं छोड़ कर घरबार उनसे पूछना.
तुम हो बहती तेज नदिया और मिट्टी का बना मैं
तुम हो बहती तेज नदिया और मिट्टी का बना मैं,
सोच कर अंजाम अपना दूर तुमसे हूं खड़ा मैं.
बारिशें आईं तो अपने साथ लाईं आंधियां भी.
मांगता था आसमां से बारिशों की क्यों दुआ मैं.
पास था अपनी जमीं के, खुश भी था लेकिन करूं क्या,
आंधियों में वक्त की जड़ से उखड़ कर गिर गया मैं.
आज मुझको फिर पुकारा गांव की अमराइयों ने,
रुक सकूंगा सुन के इसको और कितने दिन भला मैं.
भीग जाओगे अगर मुझको लगाओगे गले तुम.
दर्द की बस्ती से लौटा आंसुओं से हूँ भरा मैं.
ज़ख्म तो देता है लेकिन प्यार भी करता बहुत है,
अब करूं भी तो करूं क्या उस सितमगर का गिला मैं.
इस जहाँ का हर नज़ारा था बहुत दिलकश अभी तक.
अब नहीं भाता मुझे ये रक्स बिलकुल भी चला मैं.
छू के गुजरी रूह को ठंडक दुआओं की हमेशा,
पांव छूने के लिये जब भी बुजुर्गों के झुका मैं.
धड़कनों नें धड़कनों को दिल कि सब बातें बता दीं.
आज बरसों बाद जब फिर मां के सीने से लगा मैं.
जिस शजर पर तुम हमेशा फैंकते पत्थर रहे हो
जिस शजर पर तुम हमेशा फैंकते पत्थर रहे हो,
पास में उसके ही मेरा भी मकां है जानते हो.
सीख कर उड़ना न लौटे वो कभी वापस इधर फिर,
अब हूं सूना घोंसला तो क्यों भला ना दुख मुझे हो.
लड़ रहे हो आँधियों से जिस तरह लड़ते ही रहना,
इस अंधेरी रात में अब तुम ही बस अंतिम दिये हो.
छांव में बैठेंगे और पत्थर भी सब फैंकेगे तुम पर,
पेड़ छायादार हो तुम और फलों से भी लदे हो.
मैं भला क्यों कर डरूं अब राह की दुश्वारियों से,
जिंदगी के रास्ते में तुम जो अब रहबर मेरे हो.
है डरा सहमा अंधेरा, वो बढ़े कैसे अब आगे,
हाथ में दीपक लिये तुम बन के उजियारा खड़े हो.
मैं चाहता हूँ मैं सचमुच अमीर हो जाऊँ
मैं चाहता हूँ मैं सचमुच अमीर हो जाऊँ,
दुआ करो कि मैं इक दिन फ़कीर हो जाऊँ
तेरी हयात में कुछ दख़्ल तो रहे मेरा,
मैं तेरे हाथ की कोई लकीर हो जाऊँ
तू अपने आपसे मुझको अलग न कर पाए
जो मेरे बस में हो तेरा ज़मीर हो जाऊँ.
ये जिंदगी के मसाइल भी मेरे हमदम हैं,
मैं तेरी ज़ुल्फ़ का कैसे असीर हो जाऊँ,
ये मुफ़लिसी है जो रखती है राह पर मुझको,
भटक ही जाऊँ, कहीं जो अमीर हो जाऊँ.