आज सौदाए मोहब्बत की ये अर्ज़ानी है
आज सौदाए मोहब्बत की ये अर्ज़ानी है
काम बे-कार जवानों का ग़ज़ल-ख़्वानी है
ग़म की तकमील का सामान हुआ है पैदा
लाइक़-ए-फख़्र मेरी बे-सर-ओ-सामानी है
संग ओ आहन तो बनने आईने उन की ख़ातिर
दिल न आईना बना सख़्त ये हैरानी है
मुझे से इस दर्जा ख़फ़ा क्यूँ हो कोई पर्दा-नशीं
आरज़ू दीद की जब फ़ितरत-ए-इंसानी है
फ़ैसला दिल का मोहब्बत में है रब-बर अपना
फ़िक्र किया मंज़िल-ए-जानाँ अगर अन-जानी है
वो करें या न करें अपनी जफ़ा से तौबा
मेरे दिल को मगर एहसास-ए-पशेमानी है
हर ज़र्रा है जमाल की दुनिया लिए हुए
हर ज़र्रा है जमाल की दुनिया लिए हुए
इंसाँ अगर हो दीद-ए-बीना लिए हुए
कैफ़-ए-निगाह सहर-ए-बयाँ मस्ती-ए-ख़िराम
हम आए उन की बज़्म से क्या क्या लिए हुए
नक़्श-ओ-निगार-ए-दहर की रानाइयाँ पूछ
दर-पर्दा हैं किसी का सरापा लिए हुए
बे-लाग मैं गुज़र गया हर ख़ूब ओ ज़िश्त से
अपनी नज़र में शौक़-ए-तमाशा लिए हुए
राह-ए-हयात में न मिला कोई हम-सफ़र
तन्हा चला हूँ नाम किसी का लिए हुए
बर्बाद-ए-इल्तिफ़ात की तक़्दीर देखना
वो आए भी तो रंजिश बे-जा लिए हुए
हस्ती के हादसों के मुक़ाबिल डटा रहा
मैं उन की इक नज़र का सहारा लिए हुए
‘रैहनी’-ए-हज़ीं है ख़िज़ाँ में ग़ज़ल सरा
रंगीनी-ए-बहार का सौदा लिए हुए
रंग ये है अब हमारे इश्क़ की तासीर का
रंग ये है अब हमारे इश्क़ की तासीर का
हुस्न आईना बना है दर्द की तस्वीर का
एक अर्सा हो गया फ़रहाद को गुज़ारे हुए
आओ फिर ताज़ा करें अफ़्साना जू-ए-शीर का
गुलसिताँ का ज़र्रा ज़र्रा जाग उठे अंदलीब
लुत्फ़ है इस वक़्त तेरे नाला-ए-शब-गीर का
लीजिए ऐ शैख़ पहले अपने ईमाँ की ख़बर
दीजिए फिर शौक़ से फ़तवा मेरी तकफ़ीर का
ख़्वाब-ए-हस्ती को समझने के लिए बे-चैन हूँ
ऐतबार आता नहीं मुझ को किसी ताबीर का
जिस ने दी आख़िर ग़ुुरूर-ए-हुस्न-ए-युसुफ़ को शिकस्त
अल्लाह अल्लाह हौसला इस दस्त-ए-दामन-गीर का
तोड़ कर निकले क़फ़स तो गुम थी राह-ए-आशियाँ
वो अमल तदबीर का था ये अमल तक़्दीर का
गो जमाना हो गया गुलज़ार से निकले हुए
है मिज़ाज अब तक वही ‘रैहानी’ दिल-गीर का