हँसी की भूल भुलैया
सुख के साथ
कोई स्वाभाविक रिश्ता नहीं है हँसी का
दुखी लोग भी हँस लेते हैं अक्सर
सुखी चेहरे
एक मुस्कराहट से आगे नहीं बढ़ते
गर्व से सनी और व्यंग्य में कसी मुस्कुराहट
उन्हे अपने सुख के लगातार दुखी होने की
याद दिलाती है
एक निरभिमान हँसी
दुखी चेहरों का श्रृंगार बनकर झलकती है
कभी-कभी दिपदिपाता है सुख
हँसी की भूलभुलैया में गुज़रता है जीवन
कभी सुखी होता, कभी दुखी होता
गुज़र जाता है।
भूदृश्य
दृश्य में इतना शोर है
कि आवाज़ें डूब गई हैं
और पहचानी नहीं जातीं
किसी भी तरह
चुप्पी भी व्यर्थ
और पुकार भी
इस देखने में अर्थ कितना
कहना मुश्किल
उससे भी गहरा संदेह
इस कहने में अर्थ जितना
उम्मीद की तरह है
दृश्य की भीड़ में एक हाथ
मुझे पुकारता सा हिलता हुआ
कभी-कभी दिख जाता है
मैं अपना हाथ उसे देता हूँ
एक उम्मीद की तरह
मैं दृश्य में शामिल होता हूँ
उम्मीद से भरा
कोई चौंकता नहीं
कोई टोंकता नहीं
कोई पूछता नहीं
मेरी उम्मीद नाकाफ़ी है
शोर के समुद्र में
डूबती-उतराती है
ज्वार में।
चिट्ठियाँ
चिट्ठियों में लिखना होता है जिसे
अक्सर रह जाता है अनलिखा
चिट्ठियों में पढ़ना होता है जो जिसे
पढ़ ही लेता है बेरोकटोक
अनलिखा पढ़ कर होता है दुख
लिखा पढ़कर सुख भी कभी-कभी
कोई-कोई चिट्ठी
न लिखी जाकर कहती है
न लिखे जाने का दुख
तुम मुझे एक चिट्ठी लिखना
लिखकर और न लिखकर
जैसे भी तुम चाहो
तुम मुझे चिट्ठी भेजते रहना दोस्तो
चिट्ठियों के आने की प्रतीक्षा करता हूँ मैं
ठीक तुम्हारी तरह।
अरे, ओ बाँके सवार
( कमला प्रसाद जी के जन्मदिन पर एक स्मृति )
बस बाल हैं सफ़ेद थोड़े से
एक लट अभी भी माथे पर लहराती
दर्ज करती कि काले भी हुआ करते थे कभी
थोड़े से बेतरतीब कपड़े
लाज़िम थे लगातार सफ़र के दौरान
चेहरे पर वही पिघलता सूरज
जैसे इस तस्वीर में भी
हर शाम छुपा आते
पवन वेग से उड़ने वाला अपना नीला घोड़ा
आवाज़ देते खड़े ऐन दिल की चौखट पर
कि हम आ सकें बेफिक्र
तुम्हारी उँगलियाँ चुनने लगतीं हमारे ज़ख़्मों के फूल
और पिघला हुआ सूरज
हमारी नसों में दाख़िल होता जाता चुपचाप
महसूस भी नहीं होते
तुम्हारे सत्तर से ऊपर ऊबड़-खाबड़ बरस
हमारे दिल में हमारे घर में
हमारे उत्सव में हमारी उड़ान में
रात बीती यूँ चुटकियों में
और यह सुबह हुई जाती है
तुमने कस ली है जीन काठी
लो रक़ाब में डाले पैर
और अपने घोड़े पर सवार हस्बमामूल
लेकिन इस बार कहीं दूर चले जाने को
आवजो मीता
आवजो