माँ ने कहा हुआ क्या तुझको
माँ ने कहा — हुआ क्या तुझको कैसे सूखा है ,
रजधानी में रहकर भी क्या रहता भूखा है ?
कमा रहा किसकी ख़ातिर कुछ खाया कर बेटा ,
घर-आँगन तक भुला दिया घर आया कर बेटा !
बहन देखती रही कपोती-सी भैया मुख को
पता नहीं कितने दुखड़े हैं भैया मनसुख को !
भाई खेतों से लौटे तो कुछ दाएँ-बाएँ
कितने झगड़े-झंझट जी को कैसे बतलाएँ ?
भीतर भौजाई चूल्हे पर चढ़ी उबलती है
आटे के बदले हाथों को रह-रह मलती है !
घरवन्तन उसकी आँगन में ग़ुमसुम खड़ी हुई
दुनिया-भर की तंगिस ऊपर मन्नो बड़ी हुई !
उसने देखा, तभी उछलता बस्ता घर आया
तख़्ती-बुदका फेंक गोद में चढ़कर तुतलाया,
“ओ मेली बन्दूत ओल पिच्छोल तहाँ लाओ
अम बन्दूत तलाएँदे दादी तो छमजाओ !”
फिर भूला बन्दूक चला आया फिर चूका है
उसको खाती भूख भूख का शेरू भूखा है !
माँ ने कहा — हुआ क्या तुझको …..
आओ मंदिर मस्जिद खेलें
आओ मंदिर मस्जिद खेलें खूब पदायें मस्जिद को
कल्पित जन्मभूमि को जीतें और हरायें मस्जिद को
सिया-राममय सब जग जानी सारे जग में राम रमा
फिर भी यह मस्जिद, क्यों मस्जिद चलो हटायें मस्जिद को
तोड़ें दिल के हर मंदिर को पत्थर का मंदिर गढ़ लें
मानवता पैरों की जूती यह जतलायें मस्जिद को
बाबर बर्बर होगा लेकिन हम भी उससे घाट नहीं
वह खाता था कसम खुदा की हम खा जायें मस्जिद को
मध्यकाल की खूँ रेज़ी से वर्तमान को रंगें चलो
अपनी-अपनी कुर्सी का भवितव्य बनायें मस्जिद को
राम-नाम की लूट मची है मर्यादा को क्यों छोड़ें
लूटपाट करते अब सरहद पार करायें मस्जिद को
देश हमारा है तोंदों तक नस्लवाद तक आज़ादी
इसी मुख्य धारा में आने को धमकायें मस्जिद को
धर्म बहुत कमजोर हुआ है लकवे का डर सता रहा
अपने डर से डरे हुए हम चलो डरायें मस्जिद को
गंगाजली उठायें झूठी सरयू को गंदा कर दें
संग राम को फिर ले डूबें और डूबायें मस्जिद को
चेहरे तो मायूस मुखौटों पर
चेहरे तो मायूस मुखौटों पर मुस्कानें दुनिया की
शो-केसों में सजी हुईं खाली दुकानें दुनिया की
यों तो जीवन के कालिज में हमने भी कम नहीं पढ़ा
फिर भी सीख न पाए हम कुछ खास जुबानें दुनिया की
हमने आँखें आसमान में रख दीं खुल कर देखेंगे
कंधों से कंधों पर लेकिन हुईं उड़ानें दुनिया की
इन्क़लाब के कारण हमने जमकर ज़िन्दाबाद किया
पड़ीं भांजनी तलवारों के भ्रम में म्यानें दुनिया की
हमने जो भी किया समझवालों को समझ नहीं आया
खुद पर तेल छिड़ककर निकले आग बुझाने दुनिया की
बड़े-बड़े दिग्गज राहों पर सूँड घुमाते घूम रहे
अपनी ही हस्ती पहचानें या पहचानें दुनिया की
फूट पसीना रोआँ-रोआँ हम पर हँसता कहता है
क्या खुद
घेर कर आकाश उनको
घेर कर आकाश उनको पर दिए होंगे
राहतों पर दस्तख़त यों कर दिए होंगे
तोंद के गोदाम कर लबरेज़ पहले
वायदों से पेट खाली भर दिए होंगे
सिल्क खादी और आज़ादी पहनकर
कुछ बुतों को चीथड़े सी कर दिए होंगे
हों न बदसूरत कहीं बँगले-बगीचे
बेघरों को जंगलों में घर दिए होंगे
प्रश्नचिह्नों पर उलट सारी दवातें
जो गए-बीते वो संवत्सर दिए होंगे
गोलियाँ खाने की सच्ची सीख देकर
फिर तरक्क़ी के नए अवसर दिए होंगे
को ही दफनाने को खोदीं खानें दुनिया की
आज तो मन अनमना
आज तो मन अनमना गाता नहीं
खुद बहल औरों को बहलाता नहीं
आदमी मिलना बहुत मुश्किल हुआ
और मिलता है तो रह पाता नहीं
ग़लतियों पर गलतियाँ करते सभी
ग़लतियों पर कोई पछताता नहीं
दूसरों के नंगपन पर आँख है
दूसरों की आँख सह पाता नहीं
मालियों की भीड़ तो हर ओर है
किंतु कोई फूल गंधाता नहीं
सामने है रास्ता सबके मगर
रास्ता
हमने खुद को नकार कर
हमने खुद को नकार कर देखा
आप अपने से हार कर देखा
जब भी आकाश हो गया बहरा
खुद में खुद को पुकार कर देखा
उनका निर्माण-शिल्प भी हमने
अपना खंडहर बुहार कर देखा
लोग पानी से गुज़रते हमने
सिर से पानी गुजार कर देखा
हमने इस तौर मुखौटे देखे
अपना चेहरा उतार कर देखा
तो खुद कहीं जाता नहीं
धमनियों में खून के बदले धुआँ
हड्डियाँ क्यों कोई दहकाता नहीं