महँगाई
पप्पू ने दीदी से पूछा
क्या होती महँगाई?
सभी इसी की चर्चा करते
चली कहाँ से आई?
सभी किताबें देखीं मैंने
कहीं न मीनिंग पाया,
आज सवेरे ‘सर’ से पूछा
सर ने सिर खुजलाया।
हम दोनों की गुल्लक दीदी
मम्मी ने क्यों खोले?
और कान में आज दूधिए-
के पापा क्या बोले।
सब चीजों की हुई कटौती
पापा जी झल्लाते,
ज्यादा सब्जी ले लेने पर
मम्मी पर चिल्लाते।
मटर-टमाटर बंद हुए हैं
आलू-गाजर खाते,
सेब-संतरे कभी न देखे
पापा मूली लाते।
सब चीजों के पप्पू भैया
लगते दुगने पैसे,
पापा पैसे वही कमाते
सेब मँगाएँ कैसे?
चीजें कम हैं, और बरतने
वालों ने भीड़ लगाई,
इसीलिए तो भाव बढ़े हैं
आ धमकी महँगाई।
मेरा गाँव
गली और गलियारे सुंदर
दूर शहर से मेरा गाँव,
निशि-दिन साफ हवा चलती है
मुझको प्यारा मेरा गाँव!
शोर-शराबा यहाँ नहीं है,
धूल धुएँ का काम नहीं है,
शीतल है पेड़ों की छाँव!
चहुँ-दिश हरियाली छाई है,
मंद पवन मन को भाई है,
यहाँ न जलते मेरे पाँव।
खेतों में फसलें भरपूर,
भूख, गरीबी-सबसे दूर,
हर घर में हैं पक्के ठाँव।