आले रँग रँग के तनाले दरवाजन मे
आले रँग रँग के तनाले दरवाजन मे ,
परदे मुँदाले औ झरोखे ज्योँ न आवै पौन ।
चारोँ ओर गरम गदाले बिछवाले गाले ,
छाले धूप अगर अँगीठी दहकाले भौन ।
मँजु कवि खाले जरा गजक चढ़ाले मद ,
बीड़ियाँ चबाले भरि बिबिध मसाले जौन ।
भुजन फँसाले तिय उर लपटाले अरे ,
दुबकि दुसाले मेँ कसाले तू मिटाले क्योँ न ।
मँजु का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।