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तेरी जिद से परीशां है तेरा ही आशना कोई,

तेरी जिद से परीशां है तेरा ही आशना कोई
हो मुश्किल बहर से लाचार जैसे काफिया कोई

खुदाया कुछ जजा तो बख्श मेरी बुत-परस्ती को
मेरी राहों तलक भी आये उनका रास्ता कोई

वो मेरी कैफियत जो देख लें, मगरूर हो जाएँ
मेरे आगे जब उनका ज़िक्र छेड़े दूसरा कोई

खुदा कब पूछ बैठा वो इबादत क्या हुई तेरी
कहा अब दिल में शायद आ बसा है आपसा कोई

सुना था दर्द बढ़ जाने से भी आराम मिलता है
दवाओं का भला अहसां उठाये क्यूं भला कोई

न जाने क्या निकाला उसने मेरी बात का मतलब
रहा खाली निगाहों से खला में ताकता कोई

कहाँ तो वक़्त काटे जा रहा है ‘बे-तखल्लुस’ को
कहाँ देखा गया है वक़्त अपना काटता कोई.

फ़िक्र में रोज़ी की फिरता मारा मारा आदमी,

फ़िक्र में रोज़ी की फिरता मारा मारा आदमी
आदमी को हो भी तो कैसे गवारा आदमी

जिसने बोला, आदमी का है गुजारा आदमी
आदमी ने उसके मुंह पर दे के मारा आदमी

इतनी मुश्किल कब थी पहले पेट की ज़द्दो-ज़हद
तीन बूढी औरतों को, इक कुंवारा आदमी ?

फितरतन कोई किसी का भी नहीं, पर सब कहें
ये हमारा आदमी है, वो तुम्हारा आदमी

नित नए मजहब में बांटो आदमी को इस क़दर
या बचे मज़हब जहां में, या बेचारा आदमी

आदमी गोया कचौड़ी और मठरी हो गया
थोड़ा सा खस्ता है लेकिन, है करारा आदमी

बात ये भी चाशनी में घोल कर कहनी पड़ी
बातों में ऐसी मिठास, और इतना खारा आदमी ?

पेड़, बच्ची,मुर्गी तो मुंसिफ के घर की दाल हैं
क़ैद बस उसको हुई है, जिसने मारा आदमी

आदमी से रोज अंतिम सीख लेता है मगर
आदमी से सीखता है, फिर दोबारा आदमी

माँ के औरतपन के दिन तो जाने कब के लद गए
बाप में अब भी बचा है , ढेर सारा आदमी

जिसने थामा अम्बर को वो तुझे सहारा भी देगा,

जिसने थामा अम्बर को वो तुझे सहारा भी देगा,
जिसने नज़र अता की है, वो कोई नज़ारा भी देगा

छोड़ न यूँ उम्मीद का दामन, ऐसे भी मायूस न हो,
अभी छुपा है बेशक, पर वो कभी इशारा भी देगा

छोड़ अभी साहिल के सपने, मौजों से टकराता चल
यहीं हौसला नैया का, इक रोज किनारा भी देगा

दूर उफ़क से नज़र हटा मत, रात भले ये गहरी है
अंधियारों के बाद, वो तुझको सुबह का तारा भी देगा

देखे फ़कत सराब, मगर यूँ मूँद न तरसी आँखों को
प्यास का ये जज़्बा सहरा में, जल की धारा भी देगा

लाख मिटाए वक्त, तू अपनी कोशिश को जिंदा रखना,
हार का ये अपमान ही इक दिन, जीत का नारा भी देगा

साकी की नज़रें ही पीने वालों की तकदीरें हैं
करता है जो जाम फ़ना, वो जाम सहारा भी देगा

‘बे-तख़ल्लुस’ फ़िक्र है तो आने वाले कल की है
अब तलक तो आदमी का है सहारा आदमी

 

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