फूल क्यों मुरझा रहा है
आ गया मधुमास लेकिन
फूल क्यों मुरझा रहा है
शम्अ तो जलती है उसपर
आज परवाने नहीं हैं
प्यार में जो मर मिटें वो
आज दीवाने नहीं हैं
मिलन की वेला है फिर भी
याद कोई आ रहा है
आ गया मधुमास लेकिन
फूल क्यों मुरझा रहा है
बरसते मेघों के नीचे
जल रहा है घर किसी का
है कोई पुलकित कहीं तो
बिलखता कोई बेचारा
तड़पता कोई ,रसीले गीत
कोई गा रहा है
आ गया मधुमास लेकिन
फूल क्यों मुरझा रहा है
दूर पेड़ों पर पपीहा
पूछता है ‘पी कहाँ है?’
भटकते राही बेचारे पूछते
मंज़िल कहाँ है
हर नया तूफ़ान उनको
राह नई दिखला रहा है
आ गया मधुमास लेकिन
फूल क्यों मुरझा र
बहारे-रफ़्ता को ढूँढें कहाँ-कहाँ यारो
बहारे-रफ़्ता को ढूँढें कहाँ-कहाँ यारो
कि अब निगाहों में यादों की है ख़िज़ाँ यारो
झुका-झुका-सा है माहताब आरज़ूओं का
धुआँ-धुआँ हैं मुरादों की कहकशाँ यारो
ये ज़िन्दगी तो बहारो-ख़िज़ाँ का संगम है
ख़ुशी न दायमी ग़म भी न जाविदाँ यारो
हा है
दीपक से दीपक जलता है
दीपक से दीपक जलता है
जब प्यार दिलों में पलता है
तूफ़ान बिरह का उठ्ठे तो
नयनों से नीर छलकता है
तुम ही नहीं होते पनघट पर
सूरज तो रोज़ निकलता है
खिलते हैं फूल उमंगों के
जब मौसम रंग बदलता है
हर याद सुलगती है जैसे
भट्टी में सोना गलता है
हर पग हो जाता है बोझिल
जब उम्र का सूरज ढलता है
तुम लाख जतन कर
अपने ही परिवेश से अंजान है
अपने ही परिवेश से अंजान है
कितना बेसुध आज का इन्सान है
हर डगर मिलते हैं बेचेहरा—से लोग
अपनी सूरत की किसे पहचान है
भावना को मौन का पहनाओ अर्थ
मन की कहने में बड़ा नुकसान है
चाँद पर शायद मिले ताज़ा हवा
क्योंकि आबादी यहाँ गुंजान है
कामनाओं के वनों में हिरण—सा
यह भटकता मन चलायेमान है
नाव मन की कौन —से तट पर थमे
हर तरफ़ यादों का इक तूफ़ान है
आओ चलकर जंगलों में जा बसें
शहर की तो हर गली वीरान है
साँस का चलना ही जीवन तो नहीं
सोच बिन हर आदमी बेजान है
खून से ‘साग़र’! लिखेंगे हम ग़ज़ल
जान में जब तक हमारी जान है
लो ‘सागर’
क़िस्मत का लिखा कब टलता है