माँ पर हाइकु
1.
तौल सके जो
नहीं कोई तराजू
माँ की ममता !
2.
समझ आई
जब खुद ने पाई
माँ की वेदना !
3.
माँ का दुलार
नहीं है कोई मोल
है अनमोल !
4.
असहाय माँ
कह न पाई व्यथा
कोख़ उजड़ी !
5.
जो लुट गई
लाड़ में मिट गई
वो होती है माँ !
6.
प्यारी बिटिया,
बन गई वो माँ-सी
पी-घर गई !
7.
पराई हुई
घर-आँगन सूना
माँ की बिटिया !
8.
सारा हुनर
माँ से बिटिया पाए
घर बसाए !
9.
माँ का अँचरा
सारे जहाँ का प्यार
घर संसार !
10.
माँ का कहना
कभी नहीं टालना
माँ होती दुआ !
11.
माँ की दुनिया
अँगना में बहार
घर-संसार !
(मई 8, 2011)
पूर्ण जीवन
1.
कठिन बड़ा
पर होता है जीना
पूर्ण जीवन !
2.
कुछ ख्वाहिशें
फलीभूत न होती
सदियाँ बीती !
3.
मन तड़पा
भरमाये है जिया
मैं निरुपाय !
4.
पाँव है ज़ख़्मी
राह में फैले काँटे
मैं जाऊँ कहाँ !
5.
प्रेम-बगिया
ये उजड़नी ही थी
सींच न पायी !
6.
दंभ जो टूटा
फिर उल्लास कैसा
विक्षिप्त मन !
7.
मन चहका
घर आए सजन
बावरा मन !
8.
महा-प्रलय
ढह गया अस्तित्व
लीला जीवन !
9.
विनाश होता
चहुँ ओर आतंक
प्रकृति रोती !
10.
लौटता कहाँ
मेरा प्रवासी मन
न कोई घर !
11.
अज़ब भ्रम
कैसे समझे कोई
कौन अपना !
(24. 3. 2011)
उम्र के छाले
1.
उम्र की भट्टी
अनुभव के भुट्टे
मैंने पकाए।
2.
जग ने दिया
सुकरात-सा विष
मैंने जो पिया।
3.
मैंने उबाले
इश्क़ की केतली में
उम्र के छाले।
4.
मैंने जो देखा
अमावस का चाँद
तस्वीर खींची।
5.
कौन अपना?
मैंने कभी न जाना
वे मतलबी।
6.
काँच से बना
फिर भी मैंने तोड़ा
अपना दिल।
7.
फूल उगाना
मन की देहरी पे
मैंने न जाना।
8.
कच्चे सपने
रोज़ उड़ाए मैंने
पास न डैने।
9.
सपने पैने
ज़ख़्म देते गहरे,
मैंने ही छोड़े।
10.
नहीं जलाया
मैंने प्रीत का चूल्हा
ज़िन्दगी सीली।
11.
मैंने जी लिया
जाने किसका हिस्सा
कर्ज़ का किस्सा।
12.
मैंने ही बोई
तजुर्बों की फ़सलें
मैंने ही काटी।
राही अकेला
1
कोई तो होता
बेग़रज अपना
मानो सपना !
2
उदास स्वप्न
आसमाँ पे ठहरा
दर्द गहरा !
3
अकेलापन
खोया है भोलापन
कलेजा ज़ख़्मी !
4
बेग़रज हो
कोई अपना तो हो
कहीं भी तो हो !
5
तन्हा जीवन
भीड़ में गुम, जीता
अकेलापन !
6
हम भी तन्हा
चाँद सूरज तन्हा
गले लग जा !
7
खुद से नाता
खुद से ही की बातें
अकेला मन !
8
मन ने रचा
मन का ताना- बाना
मन ही जाना !
9
कैक्टस उगा
अकेलापन चुभा
कोई न जाना !
10
बहता रहा
दुःख का समंदर
जी के अन्दर !
11
हम अकेले
साथ सपने मेरे,
काहे का डर !
सूरज झाँका
1
सूरज झाँका-
सागर की आँखों में
रूप सुहाना।
2
मिट जाएँगे
क़दमों के निशान,
यही जीवन ।
3
अद्भुत लीला-
दूध -सी हैं लहरें,
सागर नीला ।
4
अथाह नीर
आसमाँ ने बहाई
मन की पीर ।5
5
सूरज लाल
सागर में उतरा
देखने हाल ।
6
पाँव चूमने
लहरें दौड़ी आई ,
मैं सकुचाई ।
7
उतर जाऊँ-
लहरों में खो जाऊँ ,
सागर सखा !
8
क्षितिज पर,
बादल व सागर
आलिंगनबद्ध ।
-0-
मैं हूँ कविता
1
कण-कण में
कविता सँवरती
संस्कृति जीती ।
2
अकथ्य भाव
कविता पनपती
खुलके जीती ।
3
अक्सर रोती
ग़ैरों का दर्द जीती,
कविता -नारी ।
4
अच्छी या बुरी,
न करो आकलन
मैं हूँ कविता ।
5
ख़ुद से बात
कविता का संवाद
समझो बात ।
6
शब्दों में जीती,
अक्सर ही कविता
लाचार होती ।
7
कविता गूँजी,
ख़बर है सुनाती
शोर मचाती ।
8
मन पे भारी
समय की पलटी,
कविता टूटी ।
9
कविता देती
गूँज प्रतिरोध की
जन-मन में ।
10
कविता देती
सवालों के जवाब,
मन में उठे ।
11
खुद में जीती
खुद से ही हारती,
कविता गूँगी ।
12
छाप छोड़ती,
कविता जो गाती
अंतर्मन में ।
13
कविता रोती,
पूरी कर अपेक्षा
पाती उपेक्षा ।
14
रोशनी देती
कविता चमकती
सूर्य-सी तेज़ ।
15
भाव अर्जित
भाषा होती सर्जित
कविता-रूप ।
16
अंतःकरण
ज्वालामुखी उगले
कविता लावा ।
17
मन की पीर
बस कविता जाने,
शब्दों में बहे ।
18
ख़ाक छानती
मन में है झाँकती
कविता आती ।
19
शूल चुभाती
नाजुक-सी कविता,
क्रोधित होती ।
20
आशा बँधाती
जब निराशा छाती,
कविता सखी ।
-0-