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भीड़ या मॉब लिंचिंग

हत्यारों ने ढूंढ लिया है
हत्या का नया तरीका
जिसमें साँप भी मरता है
और लाठी भी नहीं टूटती
वे साजिशों के तहत
हमला करते हैं
मारकर बेशर्मी से रफूचक्कर हो जाते हैं

ना फिर कोई सुराग
ना कोई हत्यारा
पुलिस ढूंढती है उन्हें फाइलों में
रोज छापेमारी
और सुबूत खोजे जाते हैं
सरकारें दोषारोपण से बच जाया करती है
मुआवजे देकर
इस बौखलाहट को शांत किया जाता है
जो हुआ बुरा हुआ
कहकर सांत्वना देते हैं
और सब सामान्य स्थिर

भीड़ ने दूसरे
निहत्थे की
तलाश जारी की है।।

रोटी

रोटी का कभी कोई इतिहास नहीं रहा
परंतु रोटी हमेशा से रही
भूख के ज्वार को शांत करने का माध्यम
हमेशा से रोटी ही थी
रोटी ही थी
जो चांद को गोल
और प्रेयसी के बिंदी को गोल बताती थी
सिंधु घाटी सभ्यता की तरह
रोटी कभी समाप्त नहीं हुई
यह हर घर की रसोई में
उलट-पुलट होकर
पकती- फूलती रही
यह हर व्यंजन के साथ परोसी गई
कभी घी से चुपड़ी
कभी कड़ाही में तली गई
बचपन में दूध रोटी
बड़े हुए तो सब्जी रोटी
हर शय में यह संग रही
दुनिया रहे ना रहे
रोटी रहेगी
रोटी कभी इतिहास में
कभी इतिहास में रोटी दर्ज नहीं होगी!

कठिन समय

एक समय
जब माँऐं रातों में
बार-बार उठकर
देखे बेटी को,
जब पिता
बार-बार
पूछे पत्नी से
गुड़िया घर पर ही है ना
घर पर ही रखना,
जब माँऐं
खुद ही
लगाने लगे पहरे
बेटियों पर,
शाम होते ही
वापस लौट आने की
देने लगे नसीहत,
हर क़दम पर
साथ रहने की सोचे,
जब पिता लाडली को
स्कूटी से आना-जाना
बंद करवा दे,
भाई खुले बालों से ऐतराज़ करे,
जब लड़कियाँ
देव-स्थलों में भी
मूर्तियों के सामने
रौंदी जाये
और देवता
असहाय अपाहिज हो जाये,
जब लड़कियाँ
स्कूल-कॉलेज
दोस्तों के बीच
असुरक्षित-सी रहने लगे,
अपनों के साथ भी
असहज महसूस करे
ममत्व भरे स्पर्श से
कतराने लगे,
जब बेटियाँ
सहमी-सहमी-सी
बंद कमरे में
सिसकने लगे,
तो समझो
कठिन समय से
गुजर रही है लड़कियाँ।

आदमी

बंद हैं ट्रेनें,
बंद बसें,
नहीं चल रही ऑटोरिक्शा भी,
सुनसान पड़ी हैं सड़कें,
बंद खिड़की-दरवाजे,
बंद कारखाने
ठंडी पड़ रही चूल्हे की आग भी,
परंतु
खौल रहा है आदमी,
निरंतर
खौलता ही जा रहा है आदमी॥

आदमी

बंद हैं ट्रेनें,
बंद बसें,
नहीं चल रही ऑटोरिक्शा भी,
सुनसान पड़ी हैं सड़कें,
बंद खिड़की-दरवाजे,
बंद कारखाने
ठंडी पड़ रही चूल्हे की आग भी,
परंतु
खौल रहा है आदमी,
निरंतर
खौलता ही जा रहा है आदमी॥

अधर्मी

कोई धर्म
ना कोई जात
ना मैं किसी के अनुयायी

मस्त आवारा हवा का झोंका
खुली खिड़की दरवाजे से
कहीं भी आऊं-जाऊँ
बंद किवाड़ नहीं भाते मुझे
जरा-सी भी पाक मेरा प्रवेश द्वार

सुकून ही देता है
दम घुटते हुए को प्राण
कर लो बंद खिड़की किवाड़
रहने देना बस थोड़ी-सी फांक॥

चुप रहना

आसान नहीं होता
बच्चियों के मामलात में
चुप्पी साधे रहना
खींचती है नसें
आत्मा पर हथौड़े का प्रहार है
ह्रदय छलनी
चुप्पी साधे रहने की तिलमिलाहट है
पीटते अपनी-अपनी पार्टी के ढोल
चचा के राज में हो रहा है क्या?
अपना तो राज भूले हैं जैसे
कैसे-कैसे और होंगे आसीन
अब तो
हर राज नोंची-खसोंटी जातीं हैं बेटियाँ
बहुत मुश्किल है
ऐसे आबोहवा में ज़िंदा रहना
सांस ले पाना
राजधानी है भूखी
राज्य है बलात्कारी
हमें दो देश निकाला
कि अब पूरब से उगना
मुनासिब नहीं!

औरत बनाम प्रश्नचिन्ह

औरत का कहना प्रेम,
फैला देना बाहें,
देख कर मुस्कुरा देना,
खुश होकर गले लगाना,
प्रश्नचिन्ह है
चरित्र पर

कदमों का तेज चलना,
गहरी आवाज़ पर
कुछ देर रुक जाना,
थमकर सुन लेना
चिहुंककर कह देना
क्या बात है?
प्रश्न चिह्न है
चरित्र पर

तुम्हारा होना भी
होने पर
प्रश्नचिन्ह है?
तुम्हारा ज़िंदा होना
सांसो का चलना भर,
जबकि तुम मोहताज नहीं
मिथ्या भी नहीं,

सदियों का काला सच
तुम्हारा औरत होना,
गरज किसे?
खुश या उदास,
गुनाह इतना
तुम्हारा औरत होना

कौन ज़हमत ले?
जिक्र करे तुम्हारा,
प्रश्न भी तुम
और
प्रश्नचिन्ह भी तुम?

प्रेम होता है जिस क्षण

प्रेम
होता है जिस क्षण
उसी क्षण
वह हो जाता है तुम्हारा
बंद आँखों से देख लो
बढ़ाकर हाथ छू लो

उनका अनायास चूमना ललाट
चारों ओर जैसे प्रतिकूलता में
प्रहरी हो
संजीवनी हो
समग्र सुरक्षा घेरा भी

समाहित हूँ इन दिनों
या गिरवी रख छोड़ा है
कोई तो है
किस्त चुका रही जिसका
बंद आंखों के कोर से
जो बह जाता है अक्सर

वह तैरता है हवाओं में
स्वच्छंद सा
मैं किसी डाल पर
एक घोंसला बना रही हूँ
चुप-चाप / धीरे-धीरे

छुप-छुप कर देखती हूँ
उसके फड़फड़ाते पंख
कह रहा होता है
मैं हूँ
तुम बना लो घोंसला

पर देखना
थोड़ी मजबूती हो
हवा का रूख
इन दिनों बदहवास-सा है
कहीं गिर कर
तुम्हें गिरा ना दे
देखना
सहेजते वक़्त
वैसे
मैं हूँ!

औरतें – 1

औरतें
जब तकलीफों में
कराह नहीं पातीं
तब जुड़े के साथ
लपेट कर बाँध लेतीं हैं सारी तकलीफें
और खोंस देतीं हैं
उस पर एक कांटेदार पिन

मुस्कुराने की तमाम कोशिशें
जब पड़ जातीं हैं फीकी
तब लगा लेतीं हैं
गाढ़ी लाल / गुलाबी लिपस्टिक

जब बेतरतीब ज़िन्दगी
स्वेटर की मानिद उघरती है
तब डाल लेती है
पतली-सी एक चादर

जब एड़ी की बिवाईयाँ
औरतों के बीच उड़ती है खिल्लियाँ
तब पहन लेतीं हैं
जुराबे संग जूतियाँ

और इस तरह
औरत बचा लेती है
मर्यादा परिवार की॥

औरतें – 2

औरतें
जिम्मेदारियों के बोझ तले
अपनी चाहतों को
कपड़े की अलमारी में
कहीं दबा देती है

वर्षों बाद समय-समय पर
निकाल कर धूप लगा देती है

महक हट जाने पर
गरमागरम ही तहियाकर
फिर ठिकाने लगा देती है

भूलती नहीं रखना
नेप्थलीन की एकाध गोलियाँ

बदबू जाती रहे
महक आती रहे

कभी-कभार कामों से निवृत्ति पाकर
सांझ को दिखाती है दीये

फिर बुद्बुदाकर परे रख
जाती है रसोई में

और पकाती है
नर्म-मुलायम-गोल रोटियाँ॥

प्रेम में बुद्ध हो जाने दो ज़रा

तनिक रुको
समाप्ति से पहले
प्रेम में बुद्ध हो जाने दो ज़रा

ध्वस्त हृदय को प्रेम में
ढह जाने दो ज़रा

अश्रु की धारा प्रेम में
बह जाने दो ज़रा

वापसी ना होगी फिर कभी
प्रेम में बागी हो जाने दो ज़रा

बाबली हूँ प्रेम में
वीरगति पा जाने दो ज़रा

रिहाई ना होगी अब मेरी
रूह में घुल जाने दो ज़रा

रंच मात्र भी रंज नहीं
बस ज़ार-ज़ार हूँ प्रेम के पीर में
रफ़ू हो जाने दो ज़रा

यदा-कदा हिलोरे लेगा मन
यादाश्त छिन जाने दो ज़रा

प्रेम बहुत गहरा है
यू धरासाई ना होगा
मोक्ष का सबब बन जाने दो ज़रा

हठ ना करो
तनिक रुको
प्रेम में बुद्ध हो जाने दो ज़रा॥

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