लखी जिन लाल की मुसक्यान
लखी जिन लाल की मुसक्यान।
तिनहिं बिसरी बेद-बिधि जप जोग संयम ध्यान॥
नेम ब्रत आचार पूजा पाठ गीता ग्यान।
‘रसिक भगवत’ दृग दई असि, एचिकैं मुख म्यान॥
भूलि जिन जाय मन अनत मेरो
भूलि जिन जाय मन अनत मेरो।
रहौं निशि दिवस श्री वल्लभाधीश पद-कमल सों लाग, बिन मोल को चेरो॥
अन्य संबंध तें अधिक डरपत रहौं, सकल साधन हुंते कर निबेरो।
देह निज गेह यहलोक परलोक लौं, भजौं सीतल चरण छांड अरुझेरो॥
इतनी मांगत महाराज कर जोरि कैं, जैसो हौं तैसो कहाऊं तेरो।
‘रसिक सिर कर धरो, भव दुख परिहरो, करो करुणा मोहिं राख नेरो॥
तेरो मुख चंद्र री चकोर मेरे नैना
तेरो मुख चंद्र री चकोर मेरे नैना।
पलं न लागे पलक बिन देखे, भूल गए गति पलं लगैं ना॥
हरबरात मिलिबे को निशिदिन, ऐसे मिले मानो कबं मिले ना।
‘भगवत रसिक’ रस की यह बातैं, रसिक बिना कोई समझ सकै ना॥