आँखों में ख़ुशनुमा कई मंज़र लिए हुए
आँखों में ख़ुशनुमा कई मंज़र लिए हुए
कैसे हैं लोग गाँव से शहर गए हुए
सीने में लिए पर्वतो से हौसले बुलंद
गहराइयों में दिल की समुन्दर लिए हुए
बदहाल बस्तियों के हालात पूछने
आया है इक तूफ़ान बवंडर लिए हुए
बिल्लियों के बीच न बँट पाए रोटियाँ
ऐसे ही फैसले सभी बन्दर किए हुए
इस राह की तक़दीर में लिखी है तबाही
इस राह में रहबर खड़े खंजर लिए हुए
अपनी अलग चिन्हारी रख
अब नही उनसे यारी रख
अपनी लडाई जारी रख
भूख ग़रीबी के मसले पे
अब इक पत्थर भारी रख
कवि मंचों पर बने विदूषक
उनके नाम मदारी रख
भीड़-भाड़ में खो मत जाना
अपनी अलग चिन्हारी रख
कस्बे सभी अब शहर हो गए हैं
कस्बे सभी अब शहर हो गए हैं
यहाँ आदमी अब मगर हो गए हैं
हँसी बन्दिनी हो गई है कहीं पर
नयन आँसुओं के नगर हो गए हैं
कहो रौशनी से कि मातम मनाए
अंधेरे यहाँ के सदर हो गए हैं
विषपाइयों कि पीढ़ी से कह दो
सुकरात मर कर अमर हो गए हैं
देखकर माहौल घबराए हुए हैं
देखकर माहौल घबराए हुए हैं
इस शहर में हम नए आए हुए हैं
बोल दें तो आग लग जाए घरों में
दिल में ऐसे राज़ दफ़नाए हुए हैं
रौशनी कि खोज में मिलता अंधेरा
हम हज़ारों बार आजमाए हुए हैं
दिन में वे मूरत बने इंसानियत की
रात में हैवान के साए हुए हैं
दो ध्रुवों का फ़र्क है क्यों आचरण में
एक ही जब कोख के जाए हुए हैं
शाखे-नाज़ुक पे आशियाना है
रुख़े-तूफ़ान वहशियाना है
शाखे-नाज़ुक पे आशियाना है
मौत आई किराए के घर में
सिर्फ़ दो गज पे मालिकाना है
ज़र्रे-ज़र्रे पे ज़लज़ला होगा
ये ख़यालात सूफ़ियाना है
वक़्त सोया है तान के चादर
किधर है पाँव कहाँ सिरहाना है
सिरफिरे लोग जहाँ हैं बसते
उन्ही के दरमियाँ ठिकाना है