अपनी धूप मे भी कुछ जल
अपनी धूप मे भी कुछ जल
हर साए के साथ न ढल
लफ़्ज़ों के फूलों पे न जा
देख सरों पर चलते हल
दुनिया बर्फ़ का तूदा है
जितना जल सकता है जल
ग़म की नहीं आवाज़ कोई
काग़ज़ काले करता चल
बन के लकीरें उभरे हैं
माथे पर राहों के बल
मैं ने तेरा साथ दिया
मेरे मुँह पर कालक मल
आस के फूल खिले ‘बाक़ी’
दिल से गुज़रा फिर बादल
ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गाँव में
ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गाँव में
उदास फिरते हैं हम बैरियों की छाँव में
नज़र नज़र से निकलती है दर्द की टीसें
क़दम क़दम पे वो काँटे चुभे हैं पाँव में
हर एक सम्त से उड़ उड़ के रेत आती है
अभी है ज़ोर वही दश्त की हवाओं में
ग़मों की भीड़ में उम्मीद का वो आलम है
कि जैसे एक सख़ी हो कई गदाओं में
अभी है गोश बर-आवाज़ घर का सन्नाटा
अभी कोशिश है बड़ी दूर की सदाओं में
चले तो हैं किसी आहट का आसरा ले कर
भटक न जाएँ कहीं अजनबी फ़ज़ाओं में
धुआँ धुआँ सी है खेतों की चाँदनी ‘बाक़ी’
कि आग शहर की अब आ गई है गाँवों में
सुब्ह का भेद मिला क्या हम को
सुब्ह का भेद मिला क्या हम को
लग गया रात का धड़का हम को
शौक़-ए-नज़्ज़ारा का पर्दा उठ्ठा
नज़र आने लगी दुनिया हम को
कश्तियाँ टूट गई हैं सारी
अब लिए फिरता है दरिया हम को
भीड़ में खो गए आख़िर हम भी
न मिला जब कोई रस्ता हम को
तल्ख़ी-ए-ग़म का मुदावा मालूम
पड़ गया ज़हर का चसका हम को
तेरे ग़म से तो सुकूल मिलता है
अपने शोलों ने जलाया हम को
घर को यूँ देख रहे हैं जैसे
आज ही नज़र आया हम को
हम कि शोला भी हैं और शबनम भी
तूने किस रंग में देखा हम को
जल्वा-ए-लाला-ओ-गुल है दीवार
कभी मिलते सर-ए-सहरा हम को
ले उड़ी दिल को नसीम-ए-सहरी
बू-ए-गुल कर गई तन्हा हम को
सैर-ए-गुलशन ने किया आवारा
लग गया रोग सबा का हम को
याद आई हैं बरहना शाख़ें
थाम ले ऐ गुल-ए-ताज़ा हम को
ले गया साथ उड़ा कर ‘बाक़ी’
एक सूखा हुआ पत्ता हम को
उन का या अपना तमाशा देखो
उन का या अपना तमाशा देखो
जो दिखाता है ज़माना देखो
वक़्त के पास हैं कुछ तस्वीरें
कोई डूबा है कि उभरा देखो
रंग साहिल का निखर आएगा
दो घड़ी जानिब-ए-दरिया देखो
तिलमिला उठ्ठा घना सन्नाटा
फिर कोई नींद से चौंका देखो
हम-सफ़र ग़ैर हुए जाते हैं
फ़ासला रह गया कितना देखो
बर्फ़ हो जाता है सदियों का लहू
एक ठहरा हुआ लम्हा देखो
रंग उड़ते हैं तबस्सुम की तरह
आइना-ख़ानों का दावा देखो
दिल की बिगड़ी हुई सूरत है यहाँ
अब कोई और ख़राबा देखो
या किसी पर्दे में गुम हो जाओ
या उठा कर कोई पर्दा देखो
दोस्ती ख़ून-ए-जिगर चाहती है
काम मुश्किल है तो रस्ता देखो
सादा काग़ज़ की तरह दिल चुप है
हासिल रंग-ए-तमन्ना देखो
यही तस्कीन की सूरत है तो फिर
चार दिन ग़म को भी अपना देखा
ग़म-गुसारों का सहारा कब तक
ख़ुद पे भी कर के भरोसा देखो
अपनी नियत पे न जाओ ‘बाक़ी’
रूख़ ज़माने की हवा का देखो