सहरा उदास है न समन्दर उदास है
सहरा उदास है न समन्दर उदास है
आँखों के सामने का ये मंज़र उदास है
रोया तमाम रात किसी के ख़याल में
सुर्ख़ी है उसकी आँखों में बिस्तर उदास में
उभरा है आइने में हमारा ही जब से अक्स
तब से हमारे हाथ का पत्थर उदास में
सारे मकान वाले बिछाए हैं छत पे जाल
बुलबुल भी है उदास कबूतर उदास है
सावन है पास और हवा का दबाव भी
दीवार गिर न जाए मेरा घर उदास है
तहों में दलदल सतह पे साज़िश धुआँ-धुआँ-सा हरेक घर है
तहों में दलदल सतह पे साज़िश धुआँ-धुआँ-सा हरेक घर है
झुकी हुई है हमारी गर्दन घरों में रह के भी दिल में डर है
हताहतों से लिपट गए हैं अलग-अलग ये तमाम चेहरे
उदास मौसम उदास दुनिया उदासियों में डगर-डगर है
कहाँ है बादल कहाँ समन्दर कहाँ घटाओं का शोर-गुल भी
सभी परिन्दे थके-थके हैं थकन का मौसम शजर-शजर है
है शोर इतना ख़मोशियों का है बोझ इतना अकेलेपन का
हरेक घर का यही है मंज़र जो कुछ इधर है वही उधर है
हथेलियों पर पड़े हैं आँसू किसे है फुर्सत जो बढ़ के देखे
जिधर भी देखो बिछी हैं लाशें ये एक मंज़र नगर-नगर है
सुलग रहा है ये अपना वतन ज़रा सोचो
सुलग रहा है ये अपना वतन ज़रा सोचो
लगी है आज ये कैसी अगन ज़रा सोचो
किसी की कोई ख़बर ही कहाँ है अब उनको
ये हुक़्मरान हैं कितने मगन ज़रा सोचो
कहीं से आज ख़ुशी की ख़बर नहीं आती
उदास रात की जैसी घुटन ज़रा सोचो
नए ज़माने के फ़ैशन में ढल गई है अब
पुराने दौर का छूटा चलन ज़रा सोचो
ग़ज़ब तो ये है परिन्दा नज़र नहीं आता
उजड़ रहा है गुलों का चमन ज़रा सोचो
हवा में हाँफ़ती उम्मीद की सूखी नदी रख दी
हवा में हाँफ़ती उम्मीद की सूखी नदी रख दी
तसल्ली के लिए हालात ने इतनी नमी रख दी ।
ग़लत को हम ग़लत कहते इसी कहने की कोशिश में
सियासत ने अंधेरों में हमारी हर ख़ुशी रख दी ।
खिलौना टूट जाने का उसे अफ़सोस तो होगा
कि जिसने प्यार के हर मोड़ पर दीवानगी रख दी ।
कहीं तो आँख से बचकर कहीं कोई बहाने से
कहीं ख़ामोश रातों में हमारी बेबसी रख दी ।
उसे तो नींद आती है कई सपने सुकूं देते
कि जिसके सामने हमने वफ़ा की रोशनी रख दी ।
हवा खिलाफ़ है या बदगुमान है अब तक
हवा खिलाफ़ है या बदगुमान है अब तक
गुज़रती धूप में कैसी थकान है अब तक ।
तमाम अश्क़ को पलकों में क़ैद करने दो
हमारे सब्र का ये इम्तिहान है अब तक ।
अंधेरी रात भी कैसे मुझे डराएगी
मेरा चिराग़ मेरे दरमियान है अब तक ।
किसी किताब में ख़ुशबू तलाशने वालों
दुआ करो कि ये गुलशन जवान है अब तक ।
इधर से होके कोई रास्ता नहीं जाता
पराए खेत में अपना मकान है अब तक ।
हर झूठ और सच के दारोमदार हम हैं
हर झूठ और सच के दारोमदार हम हैं
काग़ज़ के इस शहर में एक इश्तिहार हम हैं
वो हुस्न वो तबस्सुम और वो निखार हम हैं
तेरे लबों की लाली तेरा सिंगार हम हैं
इस भीड़ में छुपे हैं हाथों में सबके पत्थर
कैसे बताएँ तुझको किसके शिकार हम हैं
अब तेरा मेरा रिश्ता कितने दिनों का रिश्ता
खिलती हुई कली तू जाती बहार हम हैं
जिसपर हमारे घर की खुशियों के दीप जलते
वो ताजदार तू है वो एतबार हम हैं
सर्दी की तेज़ लू में
सदी की तेज़ लू में भी हमें जीने का ग़म होगा
तुम्हारे हाथ का पत्थर वफ़ादारी में कम होगा
समझ लेने की कोशिश में यही हर बार तो होगा
किसी बच्चे के रोने का अकेले में वहम होगा
ये माना रोज़ मेरी ख़्वाहिशें लेती हैं अंगड़ाई
ग़मों से अपना याराना न टूटे, ये भरम होगा
लहू में वक़्त का दामन दिखाएँगे तुम्हें उस दिन
निशाने पर अगर ज़ख़्मी कोई मौसम तो नम होगा
खुद अपने आप से महफूज़ रखने की तमन्ना में
शबे ग़म के अंधेरों में वफ़ाओं पर सितम होगा!
वो मेरे दिल तलक आता मगर दाख़िल नहीं होता
वो मेरे दिल तलक आता मगर दाख़िल नहीं होता
महज़ मिलने मिलाने से ही कुछ हासिल नहीं होता
जो हम फ़िरक़ापरस्ती को मुहब्बत से मिटा देते
कोई बिस्मिल नहीं होता,कोई क़ातिल नहीं होता
ये कैसी बेबसी के दौर में अब जी रहे हैं हम
हमारी फ़िक्र में शामिल हमारा दिल नहीं होता
अगर सीने में जज़्बों की जो लौ मद्धम नहीं होती
किसी को जीत लेना फिर यहाँ मुश्किल नहीं होता
कभी जो ठान लेता है बग़ावत के लिए कुछ भी
वो लेकर हाथ में ख़न्जर कभी गाफ़िल नहीं होता
रहा कुछ खौफ़ का ऐसा असर हर एक सीने में
रहा कुछ खौफ़ का ऐसा असर हर एक सीने में
गुज़ारी उम्र लोगों ने लहू अपना ही पीने में
सुना है बाढ़ आई है पड़ोसी गाँव में लेकिन
यहाँ तो धूप की बारिश है सावन के महीने में
हमारे पास से सब लोग कुछ हटकर गुज़रते हैं
छुपी है मेहनतों की बू हमारे इस पसीने में
ज़रा सोचो तो क्यों डूबे हो तुम मझधार में आकर
कोई तो छेद निश्चित था तुम्हारे इस सफ़ीने में
सभी रिश्ते हैं मतलब के सभी मतलब के हैं साथी
मज़ा आता नहीं है अब किसी के साथ जीने में
मौसमे-गुल
मौसमें-गुल तेरे आने का इशारा होगा
सर्द आहों में किसी ने तो पुकारा होगा
काँप उठती है लहर तेज़ हवा में ऐसे
झील में जैसे परिंदों का किनारा होगा
रोज़ होती है मुहब्बत में अदावत उनसे
आप कहते हैं, नहीं ऐसा दुबारा होगा
सिर्फ़ देखा था सलीके से हमारे ग़म को
अपने सीने में कहाँ हमको उतारा होगा
सोच लेना ये मुनासिब था, यही सोचा है
धूप आँगन में है, सूरज भी हमारा होगा!
मेरी आँखों में आँसू हैं
मेरी आँखों में आँसू हैं, ये ग़म तुमको मुबारक हो
तुम्हें ऐसा लगा तो ये वहम तुमको मुबारक हो
यहाँ बारिश नहीं होती, घटाएँ रोज़ छाती हैं
निगाहों में बिजलियों का भरम तुमको मुबारक हो
ज़रूरत के मुताबिक आइने को कर लिया तुमने
कोई पत्थर उठाने की कसम तुमको मुबारक हो
किसी के ज़ख़्म पे मरहम लगाकर ग़ैर से कहना
मुहब्बत में नुमाइश का क़दम तुमको मुबारक हो
ये मुमकिन तो नहीं लेकिन दिलों को तोड़ देती है
वफ़ा पर सादगी का ये सितम तुमको मुबारक हो!
मजबूरियाँ के खौफ़
मजबूरियाँ के खौफ़ को समझा नहीं गया
चेहरा मेरा था, आईना देखा नहीं गया
जो फिर तमाम रास्ते भटकाव में रहा
वैसे सफ़र के बारे में सोचा नहीं गया
क़ातिल बना दिया मुझे, साबित हुए बिना
सच क्या है और झूठ क्या रक्खा नहीं गया
मौसम की तेज़ धूप में तन्हा न रह सका
वो खुश है उसको धूप में छो़ड़ा नहीं गया
माना कि नींद आँख से कुछ दूर थी मगर
यादों को टूटने से भी रोका नहीं गया!
अपनी परछाई के पीछे खौफ़ के आँसू पिये
अपनी परछाई के पीछे खौफ़ के आँसू पिये
आप ही कहिए कोई कैसे यहाँ आख़िर जिये
बंद रखकर पट तिमिर से रातभर लड़ने के बाद
भोर होते ही उजालों ने बहुत ताने दिये
कब तलक आवाज़ देंगे क़ातिलों के गाँव में
एक ढीलासा कोई क़ानून हाथों में लिए
ज़िन्दगी के इस सफ़र में लोग कुछ ऐसे भी हैं
जानकर सच बात भी रहते हैं होठों को सिये
मन में धरती की ललक आँखों में ले आकाश को
हमने पलकों पर उठाकर चाँदतारे छू लिये
अब किसी से न गिला है न शिकायत अपनी
अब किसी से न गिला है न शिकायत अपनी
हमको इस मोड़ पे ले आई है क़िस्मत अपनी
जब से रिश्तों ने सियासत की जुबां पाई है
घर की दहलीज़ पे रोती है मुहब्बत अपनी
इक न इक रोज़ उन्हें भी तो समझ आएगी
क़तरेक़तरे में छुपी है जो शराफ़त अपनी
ख़ुद से हम रोज़ नई जंग लड़ा करते हैं
रंग लाएगी किसी रोज़ बग़ावत अपनी
जब से मजबूरियाँ पहचान गए हैं उसकी
अब मुहब्बत में है तब्दील अदावत अपनी
इज़हारे-मुहब्बत की जो हिम्मत नहीं करते
इज़हारे-मुहब्बत की जो हिम्मत नहीं करते
वे लोग ज़माने से बग़ावत नहीं करते
खुशबू से जिन्हें इश्क़ है लुट जाते हैं, लेकिन
काँटों से किसी हाल में उल्फ़त नहीं करते
हर हाल में रिश्तों की ये सांसें रहे ज़िंदा
हम ज़ुल्म तो सहते हैं शिकायत नहीं करते
बेचैन बहुत होते हैं वो रातों में अक्सर
जो अपने उसूलों की हिफ़ाज़त नहीं करते
सचझूठ का अंदाज़ लगा लेते हैं हम भी
माना कि अदालत में वकालत नहीं करते
उलझनों से तो कभी प्यार से कट जाती है
उलझनों से तो कभी प्यार से कट जाती है
ज़िंदगी वक़्त की रफ़्तार से कट जाती है
मैं तो क्या हूँ मेरी परछाई भी
रोज़ उठती हुई दीवार से कट जाती है
यूँ तो मुश्किल है बहुत इसको मिटाना साहब
दुश्मनी प्यार की तलवार से कट जाती है
सारी बेकार की खबरें ही छपा करती हैं
काम की बात तो अख़बार से कट जाती है
इतना आसान नहीं प्यारे मुहब्बत करना
ये वो गुड़िया है जो बाज़ार से कट जाती है
क्या है अपने वक़्त की रफ़्तार पढ़िये
क्या है अपने वक़्त की रफ़्तार पढ़िये
खून से तर आज का अख़बार पढ़िये
इश्क़ के जज़्बों को भी इक बार पढ़िये
खोलिए दिल ये खतेबीमार पढ़िये
जाने कितने दाग़ चेहरे पर मिलेंगे
आइने में अपना भी किरदार पढ़िये
इक नए अंदाज़ की तहरीर हैं हम
आप हमको भी कभी सरकार पढ़िये
रात के क़िस्से बहुत ही पढ़ चुके हैं
आइये अब सुबह के आसार पढ़िये
चल दिए वो सभी राब्ता तोड़कर
चल दिए वो सभी राब्ता तोड़कर
हमने चाहा जिन्हें फासिला तोड़कर
उम्र भर के लिए हम तो सजदे में थे
क्या मिला आपको आइना तोड़कर
इक ज़रा देर को मुस्कुरा दीजिए
हम चले जाएंगे दायरा तोड़कर
हमको सस्ती जो शोहरत दिलाता रहा
रख दिया हमने वो झुनझुना तोड़कर
यूँ कभी आतेजाते रहो तो सही
क्या मिलेगा तुम्हें सिलसिला तोड़कर
जंग में हूँ बहार मुश्किल है
जंग में हूँ बहार मुश्किल है
दस्ते-क़ातिल का प्यार मुश्किल है
फिर तसल्ली सवाल बन जाए
फिर तेरा इंतज़ार मुश्किल है
ख़त गया है जवाब आने तक
बीच का अख़्तियार मुश्किल है
उँगलियों का सलाम हाज़िर है
सादगी का सिंगार मुश्किल है
है ये मुमकिन तनाव देखें वो
देख लेंगे दरार मुश्किल है
जब भी उठा है दर्द तेरा मुस्कुरा लिये
जब भी उठा है दर्द तेरा मुस्कुरा लिये कुछ इस तरह भी आँख के मोती बचा लिये
जितने चमन के फूल थे घर में सजा लिए यारों ने खूब अपने मुक़द्दर बना लिये
ज़ख़्मी हुए हैं पाँव इन्हें देखना भी क्या हमने ही अपनी राह में काँटे बिछा लिये
इतने मिले हैं ज़ख्म ज़माने से दोस्तो रोने को जी किया तो ज़रा गुनगुना लिये
पहचान अपनी खूब छुपाई है आपने चेहरे पे अपने और भी चेहरे लगा लिये
जो हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ
जो हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ
उसका यूँ दिल तोड़ना अच्छा हुआ
डर यही था वो न सच ही बोल दे
आइने का टूटना अच्छा हुआ
किस क़दर रंगीं हुई ये ज़िन्दगी
आपसे मिलना मेरा अच्छा हुआ
रात भर उनके खयाल आते रहे
रात भर का जागना अच्छा हुआ
बात जो भी थी समझ में आ गई
आपने खुलकर कहा अच्छा हुआ
दिखाई दे न जो उसका हिसाब क्या रखता
दिखाई दे न जो उसका हिसाब क्या रखता
अँधेरी रात में सूरज का ख़्वाब क्या रखता
हरेक बार की फूलों से जिसने गुस्ताखी
मैं उसके हाथ में दिल का गुलाब क्या रखता
वो मेरा दोस्त था हमदम था जाँनिसार भी था
मैं उसके सामने कोई हिजाब क्या रखता
किसी चिराग़ की लौ में न ख़ुद को पहचाना
सियाह रात में रुख पर नकाब क्या रखता
हरेक सिम्त की मजबूरियों के घेरे में
हवा के रुख पे ग़मों की किताब क्या रखता
दुआ के बदले में लोगों की बद दुआ लेकर
दुआ के बदले में लोगों की बद दुआ लेकर
निकल पड़े हैं सफ़र में न जाने क्या लेकर
सवाल ये है कि मिलने के बाद भी देखो
सिसक रहे हैं वो यादों का सिलसिला लेकर
किसी भी घर में मुहब्बत हमें नहीं मिलती
भटक रहे हैं अदावत का फासला लेकर
वफ़ा खुसूस मुहब्बत ये खो गए हैं कहाँ
तलाश आज भी करते हैं हम दिया लेकर
कि जिसकाचेहरा मुकम्मल न हो सका अबतक
मेरी तलाश में निकला है आइना लेकर
पाले हुए जो ज़ख्म जुबां पर उतर गए
पाले हुए जो ज़ख्म जुबां पर उतर गए
रिश्ते तमाम कट गए जज़्बात मर गए
घर की तलाश और मुहब्बत की चाह में
निकले थे जो वो लोग न जाने किधर गए
ये और बात है कि हमें कुछ नहीं मिला
जब ज़िन्दगी की खोज में हम चाँद पर गए
साये की तरह रहते थे जो साथ –साथ वो
रस्ते में अब मिले भी तो बचकर गुज़र गए
खुशबू तुम्हारे जिस्म की ये काम कर गई
काँटों पे चल रहे थे अचानक ठहर गए
बारहा लाजवाब आता है
बारहा लाजवाब आता है
ज़ख्म देकर जो ख़्वाब आता है
जब मुहब्बत से लोग मिलते हैं
तब वहाँ इन्क़लाब आता है
फिर भी रौशन जहां नहीं होता
रोज़ ही आफताब आता है
अब कहाँ प्यार के लिफाफ़े में
कोई लेकर गुलाब आता है
शायरी में मज़ा तभी आता
शेर जब क़ामयाब आता है