मनोज जैन ‘मधुर’
देख रहा हूँ चाँद सरीखा मैं अपने को, घटते देख रहा हूँ। धीरे धीरे सौ हिस्सों में, बंटते देख रहा हूँ। तोड़ पुलों को बना… Read More »मनोज जैन ‘मधुर’
देख रहा हूँ चाँद सरीखा मैं अपने को, घटते देख रहा हूँ। धीरे धीरे सौ हिस्सों में, बंटते देख रहा हूँ। तोड़ पुलों को बना… Read More »मनोज जैन ‘मधुर’