संतोष श्रीवास्तव की रचनाएँ
बचा लेता है कागज वज़नदार होता है जब नोट बन जाता है रौंद डालता है सारे आदर्श, मानवीयता, रिश्ते निगल लेता है जीवन मूल्य झोपड़ी… Read More »संतोष श्रीवास्तव की रचनाएँ
बचा लेता है कागज वज़नदार होता है जब नोट बन जाता है रौंद डालता है सारे आदर्श, मानवीयता, रिश्ते निगल लेता है जीवन मूल्य झोपड़ी… Read More »संतोष श्रीवास्तव की रचनाएँ