यगाना चंगेज़ी की रचनाएँ
शे’र फिरते हैं भेस में हसीनों के। कैसे-कैसे डकैत थांग-की-थांग॥ आह! यह बन्दये-ग़रीब आपसे लौ लगाये क्यों? आ न सके जो वक़्त पर, वक़्त पै… Read More »यगाना चंगेज़ी की रचनाएँ
शे’र फिरते हैं भेस में हसीनों के। कैसे-कैसे डकैत थांग-की-थांग॥ आह! यह बन्दये-ग़रीब आपसे लौ लगाये क्यों? आ न सके जो वक़्त पर, वक़्त पै… Read More »यगाना चंगेज़ी की रचनाएँ