रामेश्वर शुक्ल ‘करुण’की रचनाएँ
दोहा / भाग 1 कबहुँ तप्यो-पर-ताप ते, हरी कबहुँ पर-पीर। आसा-हीन अधीर-कहँ, कबहुँ बँधायी धीर।।1।। नारकीय कहुँ यातना, सुनि हरिजन की कान। पश्चाताप-विलाप तें, तड़पाये… Read More »रामेश्वर शुक्ल ‘करुण’की रचनाएँ
दोहा / भाग 1 कबहुँ तप्यो-पर-ताप ते, हरी कबहुँ पर-पीर। आसा-हीन अधीर-कहँ, कबहुँ बँधायी धीर।।1।। नारकीय कहुँ यातना, सुनि हरिजन की कान। पश्चाताप-विलाप तें, तड़पाये… Read More »रामेश्वर शुक्ल ‘करुण’की रचनाएँ