वृन्द ’की रचनाएँ
वृन्द के दोहे / भाग १ नीति के दोहे रागी अवगुन न गिनै, यहै जगत की चाल । देखो, सबही श्याम को, कहत ग्वालन ग्वाल… Read More »वृन्द ’की रचनाएँ
वृन्द के दोहे / भाग १ नीति के दोहे रागी अवगुन न गिनै, यहै जगत की चाल । देखो, सबही श्याम को, कहत ग्वालन ग्वाल… Read More »वृन्द ’की रचनाएँ