ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए‘तिबार फिर
ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए‘तिबार फिर
आँखों में फिर वो प्यास वही इंतिज़ार फिर
रख्खूँ कहाँ पे पाँव बढ़ाऊँ किधर क़दम
रख़्श-ए-ख़याल आज है बे-इख़्तियार फिर
दस्त-ए-जुनूँ-ओ-पंजा-ए-वहशत चिहार-सम्त
बे-बर्ग-ओ-बार होने लगी है बहार फिर
पस्पाइयों ने गाड़ दिए दाँत पुश्त पर
यूँ दामन-ए-ग़ुरूर हुआ तार तार फिर
निश्तर तिरी ज़बाँ ही नहीं ख़ामशी भी है
कुछ रह-गुज़ार-ए-रब्त हुई ख़ार-ज़ार फिर
मुझ में कोई सवाल तिरे मा-सिवा नहीं
मुझ में यही सवाल हुआ एक बार फिर
ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा
ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा
तिरे इंकार जब चुनता रहूँगा
कभी सोचा नहीं था मैं तिरे बिन
यूँ ज़ेर-ए-आसमाँ तन्हा रहूँगा
तु कोई अक्स मुझ में ढूँढना मत
मैं शीशा हूँ फ़क़त शीशा रहूँगा
ताअफ़्फ़ुन-ज़ार होती महफ़िलों में
ख़याल-ए-यार से महका रहूँगा
जियूँगा मैं तिरी साँसों में जब तक
ख़ुद अपनी साँस में ज़िंदा रहूँगा
गली बाज़ार बढ़ती वहशतों को
मैं तेरे नाम ही लिखता रहूँगा
हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे
हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे
सहरा किया कभी कभी दरिया किया मुझे
कुछ तो इनायतें हैं मिरे कारसाज़ की
और कुछ मिरे मिज़ाज ने तन्हा किया मुझे
पथरा गई है आँख बदन बोलता नहीं
जाने किस इंतिज़ार ने ऐसा किया मुझे
तू तो सज़ा के ख़ौफ़ से आज़ाद था मगर
मेरी निगाह से कोई देखा किया मुझे
आँखों में रेत फैल गई देखता भी क्या
सोचों के इख़्तियार ने क्या क्या किया मुझे
कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में
कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में
लेकिन कोई सुराग़ नहीं है गिरफ़्त में
कुछ दख़्ल इख़्तियार को हो बूद-ओ-हस्त में
सर कर लूँ ये जहान-ए-आलम एक जस्त में
अब वादी-ए-बदन में कोई बोलता नहीं
सुनता हूँ आप अपनी सदा बाज़-गश्त में
रूख़ है मिरे सफ़र का अलग तेरी सम्त और
इक सू-ए-मुर्ग़-ज़ार चले एक दश्त में
किस शाह का गुज़र है कि मफ़्लूज जिस्म-ओ-जाँ
जी जान से जुटे हुए हैं बंद-ओ-बस्त में
ये पूछ आ के कौन नसीबों जिया है दिल
मत देख ये कि कौन सितारा है बख़्त में
किस सोज़ की कसक है निगाहों के आस-पास
किस ख़्वाब की शिकस्त उमड आई है तश्त में
टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें
टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें
बुझते हुए ख़याल को ज़ंजीर क्या करें
अंधा सफ़र है ज़ीस्त किस छोड़ दें कहाँ
उलझा हुआ सा ख़्वाब है ताबीर क्या करें
सीने में जज़्ब कितने समुंदर हुए मगर
आँखों पे इख़्तिसार की तदबीर क्या करें
बस ये हुआ कि रास्ता चुप-चाप कट गया
इतनी सी वारदात की तश्हीर क्या करें
साअत कोई गुज़ार भी लें जी तो लें कभी
कुछ ओर अपने बाब में तहरीर क्या करें