आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ
आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ
अब कहाँ वो बादिया-पैमाइयाँ
जोश-ए-तूफाँ है न मौंजों का ख़रोश
अब लिए है गोद में गहराइयाँ
खेलते थे ज़िंदगी ओ मौत से
वो शबाब और आह वो कजराइयाँ
हम हैं सन्नाटा है और महवियतें
रात है औ
अपने ही सजद का है शौक मेरे सर-ए-नियाज़ में
अपने ही सजद का है शौक मेरे सर-ए-नियाज़ में
काबा-ए-दिल है महव हूँ नमाज़ में
पिंहाँ है गर ख़ाक डाल दीदा-ए-इम्तियाज़ में
जाम ओ ख़म ओ सबू न देख मय-कदा-ए-मजाज़ में
किस का फ़रोग-ए-अक्स है कौन महव-ए-नाज़ में
कौंद पही हैं बिजलियाँ आईना-ए-मजाज़ में
सुब्ह-ए-अज़ल है सुब्ह-ए-हुस्न शाम-ए-अबद है दाग़-ए-इश्क़
दिल है मक़ाम-ए-इर्तिबात सिलसिला-ए-दराज़ में
दफ़्न है दिल जगह जगह काबा है गाम गाम पर
सजदा कहाँ कहाँ करे कोई हरीम-ए-नाज़ में
हुस्न के आस्ताने पर नासिया रख के भूल जा
फ़िक्र-ए-क़ुबुल-ओ-रद न कर पेश-कश-ए-नियाज़ में
ख़ून के आँसुओं से है ज़ीनत-ए-हुस्न-ए-दिल ‘जिगर’
चाहिए दाग़-ए-इश्क भी सीना-ए-पाक-बाज़ में
दिल से ताअत तेरी नहीं होती
दिल से ताअत तेरी नहीं होती
हम से अब बंदगी नहीं होती
ज़ब्त-ए-ग़म भी मुहाल है हम से
और फ़रियाद भी नहीं होती
रास आती नहीं कोई तदबीर
यास-ए-जावेद भी नहीं होती
दी न जब तक हवा एक शोला-ए-इश्क़
ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं होती
अल-हज्र तिश्नगी-ए-इश्क़ ‘जिगर’
हाए तस्कीन ही नहीं होती
हम को तासीर-ए-ग़म से मरना है
हम को तासीर-ए-ग़म से मरना है
अब इसी रंग में निखरना है
ज़िंदगी क्या है सब्र करना है
ख़ून का घूँट पी के मरना है
जान-निसारी कुबुल हो के न हो
हम को अपनी सी कर गुज़रना है
मौज-ए-दरिया हैं हम हमारा क्या
कभी मिटना कभी उभरना है
सम्म-ए-क़ातिल ‘जिगर’ नहीं मिलता
दिल का क़िस्सा तमाम करना है
जान अपने लिए खो लेने दे
जान अपने लिए खो लेने दे
मुझ को जी खोल के रो लेने दे
मिट गए अब तो सब अरमाँ-ए-दिल
अब तो चैन से सो लेने दे
ना-ख़ुदाई नहीं करना है अगर
मुझ को कश्ती ही डुबो लेने दे
फ़िक्र-ए-वीरानी-ए-दिल क्या है अभी
पहले आबाद तो हो लेने दे