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सईद अख्तर की रचनाएँ

ये किस कि हुस्न की जल्वागरी है

ये किस कि हुस्न की जल्वागरी है
जहाँ तक देखता हूँ रौशनी है

अगर होते नहीं हस्सास पत्थर
तिरी आँखों में ये कैसी नमी है

यक़ीं उठ जाए अपने दस्त-ओ-पा से
उसी का नाम लोगो ख़ुद-कुशी है

अगर लम्हों की क़ीमत जान जाएँ
हर इक लम्हे में पोशीदा सदी है

तुझे भी मुँह के बल गिरना पड़ेगा
अभी तो सर से टोपी ही गिरी है

तअल्लुक़ तुझ से रख कर इतना समझे
हमारी साँप से भी दोस्ती है

शहर के फ़ुट-पाथ पर कुछ चुभते मंज़र देखना

शहर के फ़ुट-पाथ पर कुछ चुभते मंज़र देखना
सर्द रातों में कभी घर से निकल कर देखना

ये समझ लो तिश्नगी का दौर सर पर आ गया
रात को ख़्वाबों में रह रह कर समुंदर देखना

किस के हाथों में हैं पत्थर कौन ख़ाली हाथ है
ये समझने के लिए शीशा सा बन कर देखना

बे-हिसी है बुज़-दिली है हौसला-मंदी नहीं
बैठ कर साहिल पे तूफ़ानों के तेवर देखना

ऐ मिरे आँगन के साए ऐ मिरे फलदार पेड़
तेरी क़िस्मत में है अब पत्थर ही पत्थर देखना

ये सितम ये शोरिशों तम्हीद हैं इस बात की
बस्ती बस्ती हर तरफ़ ख़ूँ का समुंदर देखना

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