ग़ज़लें
महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है
महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है।
तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है।
अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है।
तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है।
किसी को साथ रखने भर से वो अपना नहीं होता,
जो मेरे दिल में रहता है हमेशा, वो पराया है।
अभी गीला बहुत है दोस्तों कुछ वक़्त मत छेड़ो,
ज़रा सी देर पहले प्यार में तन मन रँगाया है।
कई दिन से उजाला रात भर सोने न देता था,
बहुत मज्बूर होकर दीप यादों का बुझाया है।
गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का प्यार पाते हैं
गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का प्यार पाते हैं।
परों को खोलकर अपने, जो किस्मत आजमाते हैं।
फ़लक पर झूमते हैं, नाचते हैं, गीत गाते हैं,
जो उड़ते हैं उन्हें उड़ने के ख़तरे कब डराते हैं।
परिंदों की नज़र से एक पल बस देख लो दुनिया,
न पूछोगे कभी, उड़कर परिंदे क्या कमाते है।
बराबर हैं फ़लक पर सब वहाँ नाज़ुक परिंदे भी,
अगर हो सामना अक्सर विमानों को गिराते हैं।
ज़मीं कहती, नई पीढ़ी के पंछी भूल मत जाना,
परिंदे शाम ढलते घोसलों में लौट आते हैं।
जाल सहरा पे डाले गए
जाल सहरा पे डाले गए
यूँ समंदर खँगाले गए
रेत में धर पकड़ सीपियाँ
मीन सारी बचा ले गए
जो जमीं ले गए हैं वही
सूर्य, बादल, हवा ले गए
सर उन्हीं के बचे हैं यहाँ
वक्त पर जो झुका ले गए
मैं चला जब तो चलता गया
फूट कर खुद ही छाले गए
जानवर बन गए क्या हुआ
धर्म अपना बचा ले गए
खुद को मालिक समझते थे वो
अंत में जो निकाले गए
दे दी अपनी जान किसी ने धान उगाने में
दे दी अपनी जान किसी ने धान उगाने में।
मज़ा न आया साहब को बिरयानी खाने में।
जी भर खाओ लेकिन यूँ तो मत बर्बाद करो,
एक लहू की बूँद जली है हर इक दाने में।
पल भर के गुस्से से सारी बात बिगड़ जाती,
सदियाँ लग जाती हैं बिगड़ी बात बनाने में।
उनसे नज़रें टकराईं तो जो नुकसान हुआ,
आँसू भरता रहता हूँ उसके हरजाने में।
अपने हाथों वो देते हैं सुबहो शाम दवा,
क्या रक्खा है ‘सज्जन’ अब अच्छा हो जाने में।
जिस घड़ी बाज़ू मेरे चप्पू नज़र आने लगे
जिस घड़ी बाज़ू मेरे चप्पू नज़र आने लगे।
झील सागर ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे।
ज़िंदगी के बोझ से हम झुक गये थे क्या ज़रा,
लाट साहब को निरे टट्टू नज़र आने लगे।
हर पुलिस वाला अहिंसक हो गया अब देश में,
पाँच सौ के नोट पे बापू नज़र आने लगे।
कल तलक तो ये नदी थी आज ऐसा क्या हुआ,
स्वर्ग जाने को यहाँ तंबू नज़र आने लगे।
भूख इतनी भी न बढ़ने दीजिए मेरे हुज़ूर,
सोन मछली आपको रोहू नज़र आने लगे।
है मरना डूब के, मेरा मुकद्दर, भूल जाता हूँ
है मरना डूब के, मेरा मुकद्दर, भूल जाता हूँ।
तेरी आँखों में सागर है ये अकसर भूल जाता हूँ।
ये दफ़्तर जादुई है या मेरी कुर्सी नशीली है,
मैं हूँ जनता का एक अदना सा नौकर भूल जाता हूँ।
हमारे प्यार में इतना तो नश्शा अब भी बाकी है,
पहुँचकर घर के दरवाजे पे दफ़्तर भूल जाता हूँ।
तुझे भी भूल जाऊँ ऐ ख़ुदा तो माफ़ कर देना,
मैं सब कुछ तोतली आवाज़ सुनकर भूल जाता हूँ।
न जीता हूँ न मरता हूँ तेरी आदत लगी ऐसी,
दवा हो ज़हर हो दोनों मैं लाकर भूल जाता हूँ।.
दिल है तारा, रहे जहाँ, चमके
दिल है तारा, रहे जहाँ, चमके।
टूट जाए तो आसमाँ चमके।
है मुहब्बत भी जुगनुँओं जैसी,
जैसे जैसे हो ये जवाँ, चमके।
क्या वो आया मेरे मुहल्ले में,
आजकल क्यूँ मेरा मकाँ चमके।
जब भी उसका ये ज़िक्र करते हैं,
होंठ चमकें मेरी जुबाँ चमके।
वो थे लब या के शरारे मौला,
छू गए तन जहाँ जहाँ, चमके।
ख़्वाब ने दूर से उसे देखा,
रात भर मेरे जिस्मोजाँ चमके।
ज्यों ही चर्चा शुरू हुई उसकी,
बेनिशाँ थी जो दास्ताँ, चमके।
एक बिजली थी, मुझको झुलसाकर,
कौन जाने वो अब कहाँ चमके।
चिड़िया की जाँ लेने में इक दाना लगता है
चिड़िया की जाँ लेने में इक दाना लगता है।
पालन कर के देखो एक ज़माना लगता है।
जय जय के पागल नारों ने कर्म किए ऐसे,
हर जयकारा अब ईश्वर पर ताना लगता है।
मीठे लगते सबको ढोल बजें जो दूर कहीं,
गाँवों का रोना दिल्ली को गाना लगता है।
कल तक झोपड़ियों के दिये बुझाने का मुजरिम,
सत्ता पाने पर सबको परवाना लगता है।
टूटेंगें विश्वास कली से मत पूछो कैसा,
यौवन देवों को देकर मुरझाना लगता है।
जाँच, समितियों से करवाकर क्या मिल जाएगा,
उसके घर में साँझ सबेरे थाना लगता है।
सत्ता की गर हो चाह तो दंगा कराइये
सत्ता की गर हो चाह तो दंगा कराइये।
बनना हो बादशाह तो दंगा कराइये।
करवा के क़त्ल-ए-आम बुझा कर लहू से प्यास,
रहना हो बेगुनाह तो दंगा कराइये।
कितना चलेगा धर्म का मुद्दा चुनाव में,
पानी हो इसकी थाह तो दंगा कराइये।
चलते हैं सर झुका के जो उनकी ज़रा भी गर,
उठने लगे निगाह तो दंगा कराइये।
प्रियदर्शिनी करें तो उन्हें राजपाट दें,
रधिया करे निकाह तो दंगा कराइये।
मज़हब की रौशनी में व शासन की छाँव में,
करना हो कुछ सियाह तो दंगा कराइये।
मिलजुल के जब कतार में चलती हैं चींटियाँ
मिलजुल के जब क़तार में चलती हैं चींटियाँ।
महलों को जोर शोर से खलती हैं चींटियाँ।
मौका मिले तो लाँघ ये जाएँ पहाड़ भी,
तीखी ढलान पर न फिसलती हैं चींटियाँ।
आँचल न माँ का सर पे न साया है बाप का,
जीवन की तेज़ धूप में पलती हैं चींटियाँ।
चलना सँभल के राह में, जाएँ न ये कुचल,
खाने कमाने रोज़ निकलती हैं चींटियाँ।
शायद कहीं मिठास है मुझमें बची हुई,
अकसर मेरे बदन पे टहलती हैं चींटियाँ।
नवगीत
नीम तले (नवगीत)
नीम तले
सब ताश खेलते
रोज़ सुबह से शाम
कई महीनों बाद मिला है
खेतों को आराम
फिर पत्तों के चक्रव्यूह में
धूप गई है हार
कुंद कर दिए वीर प्याज ने
लू के सब हथियार
ढाल
पुदीने सँग बन बैठे
भुनकर कच्चे आम
शहर गया है
गाँव देखने
बड़े दिनों के बाद
समय पुराना
नए वक़्त से
मिला महीनों बाद
फिर से महक उठे आँगन में
रोटी, बोटी, जाम
छत पर जाकर रात सो गई
खुले रेशमी बाल
भोर हुई
सूरज ने आकर छुए गुलाबी गाल
बोली
छत पर लाज न आती
तुमको बुद्धू राम
बस प्यार तुम्हारा
घूमूँगा
बस प्यार तुम्हारा
तन-मन पर पहने
पड़े रहेंगे बंद कहीं पर
शादी के गहने
चिल्लाते हैं गाजे-बाजे
चीख रहे हैं बम
जेनरेटर करता है बक-बक
नाच रही है रम
गली-मुहल्ले
मजबूरी में
लगे शोर सहने
सब को ख़ुश रखने की ख़ातिर
नींद चैन त्यागे
देहरी, आँगन, छत, कमरे सब
लगातार जागे
कौन रुकेगा
दो दिन इनसे
सुख-दुख की कहने
शालिग्राम जी सर पर बैठे
पैरों पड़ी महावर
दोनों ही उत्सव की शोभा
फिर क्यूँ इतना अंतर
मैं ख़ुश हूँ
यूँ ही आँखों से
दर्द लगा बहने
चंचल नदी
चंचल नदी
बाँध के आगे
फिर से हार गई
बोला बाँध
यहाँ चलना है
मन को मार
गई
टेढ़े चाल-चलन के
उस पर थे इलज़ाम लगे
गति में उसकी
थी जो बिजली
उसके दाम लगे
पत्थर के आगे मिन्नत सब
हो बेकार गई
टूटी लहरें
छूटी कल-कल
झील हरी निकली
शांत सतह पर
लेकिन भीतर पर्तों में बदली
सदा स्वस्थ रहने वाली
होकर बीमार
गई
अपनी राहें ख़ुद चुनती थी
बँधने से पहले
अब तो सब से पूछ रही है
रुक जाए?
बह ले?
आजीवन फिर उसी राह से
हो लाचार
गई
आसमान के पार स्वर्ग है
आसमान के पार स्वर्ग है
सोच गया घर से
जाकर देखा
वहाँ अँधेरा दीपक को तरसे
जीवन का पौधा उगता
हिमरेखा के नीचे
धार प्रेम की
जहाँ नदी बन धरती को सींचे
आसमान से आम आदमी लगता है चींटी
नभ केवल रंगीन भरम है
सच्चाई मिट्टी
गिर जाता जो अंबर से
वो मरता है
डर से
अंबर तक यदि जाना है तो
चिड़िया बन जाओ
दिन भर नभ की सैर करो
पर संध्या घर आओ
आसमान पर कहाँ बसा है
कभी किसी का घर
ज्यादा जोर लगाया जिसने
टूटे उसके पर
फैलो
काम नहीं चलता ऊँचा उठने भर से
मेरा चाँद आज आधा है
मेरा चाँद
आज आधा है
उखड़ा-उखड़ा सुंदर मुखड़ा
फूले गाल सुनाते दुखड़ा
सूज गई हैं
दोनों आँखें
और नमी इनमें ज़्यादा है
बात कही किसने क्या ऐसी
क्यूँ आँगन में रात रो रही
दिल का दर्द छुपाता है ये
ऐसी भी क्या मर्यादा है
घबरा मत
ओ चंदा मेरे
दुख की इन सूनी रातों में
तेरे सिरहाने बैठूँगा
साथ न छोड़ूँगा
वादा है
यंत्रों के जंगल में
यंत्रों के जंगल में
जिस्मों का मेला है
आदमी अकेला है
चूहों की भगदड़ में
स्वप्न गिरे
हुए चूर
समझौतों से डरकर
भागे आदर्श दूर
खाई की ओर चला
भेड़ों का रेला है
शोर बहा
गली-सड़क
मन की आवाज घुली
यंत्रों से तार जुड़े
रिश्तों की गाँठ खुली
सुंदर तन है सोना
सीरत अब धेला है
मुट्ठी भर तरु
सोचें
कहाँ गया नील गगन
खा लेगा
इनको भी
ईंटों का बढ़ता वन
व्याकुल है
मन-पंछी
कैसी ये बेला है
टेसू के फूलों के भारी हैं पाँव
टेसू के
फूलों के
भारी हैं पाँव
रूप दिया प्रभु ने
पर गंध नहीं दी
पत्ते भी छीन लिए
धूप ने सभी
सूरज अब
मरज़ी से
खेल रहा दाँव
मंदिर में जगह नहीं
मस्जिद अनजान
घर-बाहर ग्राम-नगर
मिलता अपमान
कहीं नहीं
छुपने को
पत्ती भर छाँव
रंग अपना
देने को
पिसते हैं रोज
फूलों सा
इनका मन
भूले सब लोग
जंगल की आग कहें
सभ्य शहर-गाँव
समाचार है अद्भुत
समाचार है अद्भुत
जीवन का
अब बर्बादी
करे मुनादी
संसाधन सीमित
सड़े भले सब
किन्तु करेगा
बंदर ही वितरित
नियम अनूठा है
मानव-वन का
प्रेम-रोग अब
लाइलाज
किंचित भी नहीं रहा
नये नशे ने
आगे बढ़कर
सबका दर्द सहा
रंग बदलता
पल-पल तन-मन का
धन की नौकर
निज इच्छा से
अब है बुद्धि बनी
कर्म राम के
लेकिन लंका
देखो हुई धनी
बदल रहा
आदर्श लड़कपन का
कविताएँ
बादल, सागर और पहाड़ बनाम पूँजीपति
बादल
बादल अंधे और बहरे होते हैं
बादल नहीं देख पाते रेगिस्तान का तड़पना
बादलों को नहीं सुनाई पड़ती बाढ़ में बहते इंसानों की चीख
बादल नहीं बोल पाते सांत्वना के दो शब्द
बादल सिर्फ़ गरजना जानते हैं
और ये बरसते तभी हैं जब मजबूर हो जाते हैं
सागर
गागर, घड़ा, ताल, झील
नहर, नदी, दरिया
यहाँ तक कि नाले भी
लुटाने लगते हैं पानी जब वो भर जाते हैं
पर समुद्र भरने के बाद भी चुपचाप पीता रहता है
इतना ही नहीं वो पानी को खारा भी करता जाता है
ताकि उसे कोई और न पी सके
पहाड़
पहाड़ सिर्फ़ ऊपर उठना जानते हैं
खाइयाँ कितनी गहरी होती जा रही हैं
इसकी परवाह वो नहीं करते
ज्यादा खड़ी चढ़ाई होने पर सबसे कमजोर हिस्सा
अपने आप उनका साथ छोड़ देता है
और इस तरह उनकी मदद करता है ऊँचा उठने में
एक दिन पहाड़ उस उँचाई से भी अधिक ऊँचे हो जाते हैं
जहाँ तक पहुँचने के बाद
विज्ञान के अनुसार उनका ऊपर उठना बंद हो जाना चाहिए
पूँजीपति
एक दिन अनजाने में
ईश्वर बादल, सागर और पहाड़ को मिला बैठा
उस दिन जन्म हुआ पहले पूँजीपति का
जिसने पैदा होते ही ईश्वर को कत्ल कर दिया
और बनवा दिये शानदार मकबरे
रच डालीं मकबरों की उपासना विधियाँ
तब से पूँजीपति ही
ईश्वर के नाम पर मजलूमों का भाग्य लिखता है
और उस पर अपने हस्ताक्षर कर ईश्वर की मोहर लगता है
पूँजी का कचराघर
ये पूँजी का कचराघर है
यहाँ शराब की खाली बोतल के बगल में लेटी है
सरसों के तेल की खाली बोतल
पानी की एक लीटर की खाली बोतल
दो सौ मिलीलीटर वाली
शीतल पेय की खाली बोतल के ऊपर लेटी है
दो मिनट में बनने वाले नूडल्स के
ढेर सारे खाली पैकेट बिखरे पड़े हैं
उनके बीच से किसी तरह मुँह निकालकर
साँस लेने की कोशिश कर रहे हैं
सब्जियों और फलों के छिलके
डर से काँपते हुए
चाकलेट और टाफ़ियों के तुड़े मुड़े रैपर
हवा के झोंके के सहारे भागकर
कचरे से मुक्ति पाने की कोशिश कर रहे हैं
सिगरेट और अगरबत्ती के खाली पैकेटों के बीच
जोरदार झगड़ा हो रहा है
दोनों एक दूसरे पर बदबू फैलाने का आरोप लगा रहे हैं
यहाँ आकर पता चलता है
कि सरकार की तमाम कोशिशों और कानूनों के बावजूद
धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रही हैं पॉलीथीन की थैलियाँ
एक गाय जूठन के साथ-साथ
पॉलीथीन की थैलियाँ भी खा रही है
एक आवारा कुत्ता बकरी की हड्डियाँ चबा रहा है
वो नहीं जानता कि जिसे वो हड्डियों का स्वाद समझ रहा है
वो दर’असल उसके अपने मसूड़े से रिस रहे खून का स्वाद है
कुछ मैले-कुचैले नर कंकाल
कचरे में अपना जीवन खोज रहे हैं
पास से गुज़रने वाली सड़क पर
आम आदमी जल्द से जल्द
इस जगह से दूर भाग जाने की कोशिश रहा है
क्योंकि कचरे से आने वाली बदबू उसके बर्दाश्त के बाहर है
एक कवि कचरे के बगल में खड़ा होकर उस पर थूकता है
और नाक मुँह सिकोड़ता हुआ आगे निकल जाता है
उस कवि से अगर कोई कह दे
कि उसके थूकने से थोड़ा सा कचरा और बढ़ गया है
तो कवि निश्चय ही उस आदमी का सिर फोड़ देगा
ये पूँजी का कचराघर है।
नोएडा
चिड़िया के दो बच्चों को
पंजों में दबाकर उड़ रहा है एक बाज
उबलने लगी हैं सड़कें
वातानुकूलित बहुमंजिली इमारतें सो रही हैं
छोटी छोटी अधबनी इमारतें
गरीबी रेखा को मिटाने का स्वप्न देख रही हैं
पच्चीस मंजिल की एक अधबनी इमारत हँस रही है
कीचड़ भरी सड़क पर
कभी साइकिल हाथी को ओवरटेक करती है
कभी हाथी साइकिल को
साइकिल के टायर पर खून का निशान है
जनता और प्रशासन ये मानने को तैयार नहीं हैं
कि साइकिल के नीचे दब कर कोई मर सकता है
अपने ही खून में लथपथ एक कटा हुआ पंजा
और मासूमों के खून से सना एक कमल
दोनों कीचड़ में पड़े-पड़े, आहिस्ता-आहिस्ता सड़ रहे हैं
कच्ची सड़क पर एक काली कार
सौ किलोमीटर प्रति घंटा की गति से भाग रही है
धूल ने छुपा रखी हैं उसकी नंबर प्लेटें
कंक्रीट की क्यारियाँ सींचने के लिए
उबलती हुई सड़क पर
ठंडे पानी से भरा हुआ टैंकर खींचते हुये
डगमगाता चला जा रहा है एक बूढ़ा ट्रैक्टर
शीशे की वातानुकूलित इमारत में
सबसे ऊपरी मंजिल पर बैठा महाप्रबंधक
अर्द्धपारदर्शी पर्दे के पीछे से झाँक रहा है
उसे सफेद चींटी जैसे नजर आ रहे हैं
सर पर कफ़न बाँधे
सड़क पर चलते दो इंसान
हरे रंग की टोपी और टी-शर्ट पहने
स्वच्छ पारदर्शक पानी से भरी
एक लीटर और आधा लीटर की दो खूबसूरत पानी की बोतलें
महाप्रबंधक की मेज पर बैठी हैं
उनकी टी शर्ट पर लिखा है
पूरी तरह शुद्ध, बोतल बंद पीने का पानी
अतिरिक्त खनिजों के साथ
उनकी टी शर्ट पर पीछे की तरफ कुछ बेहूदे वाक्य लिखे हैं
जैसे
सूर्य के प्रकाश से दूर ठंडे स्थान पर रखें
छः महीने के भीतर ही प्रयोग में लायें
प्रयोग के बाद बोतल को कुचल दें
केंद्र में बैठा सूरज चुपचाप सब देख रहा है
पर सूरज या तो प्रलय कर सकता है
या कुछ नहीं कर सकता
सूरज छिपने का इंतजार कर रही है
रंग बिरंगी ठंडी रोशनी
सिस्टम
मच्छर आवाज़ उठाता है
सिस्टम ताली बजाकर मार देता है
और मीडिया को दिखाता है भूखे मच्छर का खून
अपना खून कहकर
मच्छर बंदूक उठाते हैं
सिस्टम मलेरिया-मलेरिया चिल्लाता है
और सारे घर में जहर फैला देता है
अंग बागी हो जाते हैं
सिस्टम सड़न पैदा होने का डर दिखलाता है
बागी अंग काटकर जला दिए जाते हैं
उनकी जगह तुरंत उग आते हैं नये अंग
सिस्टम के पास नहीं है खून बनाने वाली मज्जा
जिंदा रहने के लिए वो पीता है खून
जिसे हम डोनेट करते हैं अपनी मर्जी से
हर बीमारी की दवा है सिस्टम के पास
हर नया विषाणु इसके प्रतिरक्षा तंत्र को
और मजबूत करता है
सिस्टम अजेय है
सिस्टम सारे विश्व पर राज करता है
क्योंकि ये पैदा हुआ था
दुनिया जीतने वाली जाति के
सबसे तेज और सबसे कमीने दिमागों में
रंगीन चमकीली चीजें
रंगीन चमकीली चीजें प्रकाश के उन रंगों को
जो उनके जैसे नहीं होते
सोख लेती हैं
और उनकी ऊर्जा से अपने रंग बनाती हैं
और हम समझते हैं कि ये उनके अपने रंग हैं
जिन्हें हम रंगीन वस्तुएँ कहते हैं,
वे दरअसल दूसरे रंगों की हत्यारी होती हैं
केवल आइना ही है
जो किसी भी रंग की ऊर्जा का इस्तेमाल
अपने लिए नहीं करता
सारे रंगों को जस का तस वापस लौटा देता है
इसीलिए आइना हमें सच दिखा पाता है
बाकी सारी वस्तुएँ
केवल रंग-बिरंगा झूठ बोलती हैं
जो वस्तु जितनी ज्यादा चमकीली होती है
वो उतना ही बड़ा झूठ बोल रही होती है
लोकतंत्र के मेढक
अगर मेढक को
उबलते हुए पानी में डाल दिया जाय
तो वह उछल कर बाहर आ जाता है
मगर यदि उसे डाला जाय
धीरे धीरे गर्म हो रहे पानी में
तो उसका दिमाग
धीरे धीरे बढ़ रही गर्मी को सह लेता है
और मेढक उबल कर मर जाता है
छात्रों को मेढक काटकर
उसके अंगों की संचरना तो समझाई जाती है
पर उसके खून का यह गुण
पूरी तरह गुप्त रखा जाता है
तभी तो हमारा तंत्र
युवा आत्माओं को
भ्रष्टाचार की धीमी आँच पर उबालकर मारने में
इतना सफल है
कुछेक आत्माएँ ही
इस साजिश को समझ पाती हैं
और इससे लड़ने की कोशिश करती हैं
पर इस गर्म हो रहे पानी से
लड़ने का कोई फ़ायदा नहीं होता
इस पर लगे घाव पल भर में भर जाते हैं
और लड़ने वाले आखिर में थक कर डूब जाते हैं
तंत्र से लड़ने के दो ही तरीके हैं
या तो आग बुझा दी जाय
या पानी नाली में बहा दिया जाय
और दोनों ही काम
पानी से बाहर रहकर ही किए जा सकते हैं
मेढकों से कोई उम्मीद करना बेकार है
तुम्हारी बारिश
बारिश धीरे धीरे गुनगुनाती है
वो सारे गीत जो मैं तुम्हारे लिए गाया करता था
झिल्ली और मेढक पार्श्व संगीत देते हैं
भीगी हुई सड़क से लौटती रोशनी
तुम्हारी हँसी है
तुमसे प्यार करना
मूसलाधार बारिश में
अंधाधुंध गाड़ी चलाने जैसा क्यों था?
भीषण दुर्घटनाओं में मौत से बच जाना अभिशाप है
तुम्हारे बिना रहना हाथ पैरों के बगैर जीना है
भीगी हुई रातरानी
तुम्हारे भीगे हुए नाखून के बराबर भी नहीं है
भीगे हुए पहाड़ पर एक एक करके बुझती हुई बत्तियाँ
तुम्हारे गहने हैं जो मैंने उतारे थे एक एक कर
बारिश बंद हो गई है सड़कें सूख रही हैं
काश! एक बार फिर तुम बरसतीं
मेरी नमी सूख जाने के पहले
अम्ल, क्षार और गीत
मेरे कुछ मनमीत
अम्ल, क्षार और गीत
एक खट्टा है
दूसरा कसैला है
तीसरे में सारे स्वाद हैं
पहला गला देता है
दूसरा जला देता है
तीसरा सारे काम कर देता है
पहले दोनों को मिलाने पर
बनते हैं लवण और पानी
अर्थात खारा पानी
अर्थात आँसू
और तीनों को मिलाने पर
बन जाता हूँ मैं
देवताओं और राक्षसों का देश
ये देवताओं और राक्षसों का देश है
यहाँ गान्धारी न्याय करती है
न्याय का देवता किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होता
तीन तरह के अम्लों का गठबंधन राज करता है
चुनाव तीन तीलियों वाला स्टेरिंग है
जिसे राज्याभिषेक करने वाले पुजारी ने
कार से अलग कर जनता के हाथों में थमा दिया है
साहित्यिक कुँए का मेढक
सारी दुनिया घूमकर वापस कुँए में आ जाता है
शब्द एक दूसरे से जुड़कर तलवार बनाते हैं
विलोम शब्दों का कत्ल करने के लिए
आइने के सामने आइना रखते ही
वो घबराकर झूठ बोलने लगता है
धरती का मुँह देख देखकर
सूरज अपनी आग काबू में रखता है
ये देवताओं और राक्षसों का देश है
यहाँ इंसानों का जीना मना है
तुम बारिश और पहाड़
बारिश ने पहाड़ों को उनका यौवन लौटा दिया है
दो पास खड़े पहाड़ हरे दुपट्टे के नीचे तुम्हारे वक्ष हैं
मैं धरती द्वारा साँस खींचे जाने की प्रतीक्षा करता हूँ
गोरे पानी से भरी झील तुम्हारी नाभि है
और मैं नैतिकता के पिंजरे में फड़फड़ाता हुआ तोता हूँ
जिसे ये रटाया गया है कि गोरे पानी में नहाने से
आत्मा दूषित हो जाती है
प्रेम का रंग हरा है
हर बादल को कहीं न कहीं बरसना पड़ता है
मगर यह भी सच है
सारी बारिशें बादलों से नहीं होती
भीगी पहाड़ी सड़कें तुम्हारे शरीर के गीले वक्र हैं
मैं डरा हुआ नौसिखिया चालक हूँ
डर हिमरेखा है
जिससे ऊपर प्रेम के बादल भी केवल बर्फ़ बरसाते हैं
हरियाली का सौंदर्य इस रेखा के नीचे है
दूब से बाँस तक
हरा सबके भीतर होता है
हरा होने के लिए सिर्फ़ हवा, बारिश और धूप चाहिए
क्षेपक:
बरसात में गिरगिट भी हरा हो जाता है
उससे बचकर रहना
सारी नदियाँ
इस मौसम में
तुम्हारे काले बालों से निकलती हैं
फिर भी मेरी प्यास नहीं बुझती
लोग कहते हैं बरसात के मौसम में पहाड़ों का सीजन नहीं होता
हर बारिश में कितने ही पहाड़ आत्महत्या कर लेते हैं
ओह! तुम बारिश और पहाड़
जान लेने के लिए और क्या चाहिए?
क्षणिकाएँ / हाइकु
पाँच क्षणिकाएँ
चर्बी
वो चर्बी
जिसकी तुम्हें न अभी जरूरत है
न भविष्य में होगी
वो किसी गरीब के शरीर का मांस है
सूरज
धरती के लिए सूरज देवता है
उसकी चमक, उसका ताप
जीवन के लिए एकदम उपयुक्त हैं
कभी पूछो जाकर बाकी ग्रहों से
उनके लिए क्या है सूरज?
सदिश प्रेम
केवल परिमाण ही काफ़ी नहीं है
आवश्यक है सही दिशा भी
प्रेम सदिश है
प्रेम
प्रेम एक अंधा मोड़ है
जिससे गुजरते हुए जरूरी होता है
अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए धीरे धीरे चलना
हीरा
अगर वो सचमुच हीरा है
तो कभी न कभी
किसी न किसी जौहरी की नज़र उस पर पड़ ही जायेगी
किंतु अगर वो हीरा नहीं है
तो एक न एक दिन
सबको ये बात पता चल ही जायेगी
पाँच हाइकु
(1)
हवा में आई
मीन समझ पाई
पानी का मोल
(2)
हवा ने चूमा
दीप का तन झूमा
काँप उठी लौ
(3)
चंचल नदी
ताकतवर बाँध
गहरी झील
(4)
तुम हो साथ
जीवन है कविता
बच्चे ग़ज़ल
(5)
सूर्य बहका
लुट गईं नदियाँ
पर्वत रोया
छंद
दोहे
आजीवन थे जो पिता, कल कल बहता नीर।
कैसे मानूँ आज वो, हैं केवल तस्वीर॥
रहे सुवासित घर सदा, आँगन बरसे नूर।
माँ का पावन रूप है, जलता हुआ कपूर॥
हर लो सारे पुण्य पर, यह वर दो भगवान।
बिटिया के मुख पे रहे, जीवन भर मुस्कान॥
नथ, बिंदी, बिछुवा नहीं, बनूँ न कंगन हाथ।
बस चंदन बन अंत में, जलूँ तुम्हारे साथ॥
दीप कुटी का सोचता, लौ सब एक समान।
राजमहल के दीप को, क्यूँ इतना अभिमान॥
जाति पाँति के फेर में, वंश न करिये तंग।
नया रंग पैदा करें, जुदा जुदा दो रंग॥