कलजुगी दोहे
केवल परनिंदा सुने, नहीं सुने गुणगान।
दीवारों के पास हैं, जाने कैसे कान ।।
सूफी संत चले गए, सब जंगल की ओर।
मंदिर मस्जिद में मिले, रंग बिरंगे चोर ।।
सफल वही है आजकल, वही हुआ सिरमौर।
जिसकी कथनी और है, जिसकी करनी और।।
हमको यह सुविधा मिली, पार उतरने हेतु।
नदिया तो है आग की, और मोम का सेतु।।
जंगल जंगल आज भी, नाच रहे हैं मोर।
लेकिन बस्ती में मिले, घर घर आदमखोर।।
हर कोई हमको मिला, पहने हुए नकाब।
किसको अब अच्छा कहें, किसको कहें खराब।।
सुख सुविधा के कर लिये, जमा सभी सामान।
कौड़ी पास न प्रेम की, बनते है धनवान ।।
चाहे मालामाल हो चाहे हो कंगाल ।
हर कोई कहता मिला, दुनिया है जंजाल।।
राजनीति का व्याकरण, कुर्सीवाला पाठ।
पढ़ा रहे हैं सब हमें, सोलह दूनी आठ।।
मन से जो भी भेंट दे, उसको करो कबूल।
काँटा मिले बबूल का, या गूलर का फूल।।
सागर से रखती नहीं, सीपी कोई आस।
एक स्वाती की बूँद से, बुझ जाती है प्यास।।
मन से जो भी भेंट दे, उसको करो क़बूल |
काँटा मिले बबूल का, या गूलर का फूल ||
जाने किसका रास्ता, देख रही है झील |
दरवाज़े पर टाँग कर, चंदा की कंडील ||
रातों को दिन कह रहा, दिन को कहता रात |
जितना ऊँचा आदमी, उतनी नींची बात ||
या ये उसकी सौत है, या वो इसकी सौत |
इस करवट है ज़िन्दगी, उस करवट है मौत ||
सूरज रहते ‘क़म्बरी’, करलो पुरे काम |
वरना थोड़ी देर में, हो जायेगी शाम ||
तुम तो घर आये नहीं, क्यों आई बरसात |
बादल बरसे दो घड़ी, आँखें सारी रात ||
छाये बादल देखकर, खुश तो हुये किसान |
लेकिन बरसे इस क़दर, डूबे खेत मकान ||
छूट गया फुटपाथ भी, उस पर है बरसात |
घर का मुखिया सोचता, कहाँ बितायें रात ||
कोई कजरी गा रहा, कोई गाये फाग |
अपनी-अपनी ढपलियाँ, अपना-अपना राग ||
पहले आप बुझाइये, अपने मन की आग |
फिर बस्ती में गाइये, मेघ मल्हारी राग ||
सूरज बोला चाँद से, कभी किया है ग़ौर |
तेरा जलना और है, मेरा जलना और ||
जब तक अच्छा भाग्य है, ढके हुये है पाप |
भेद खुला हो जायेंगे, पल में नंगे आप ||
बहुदा छोटी वस्तु भी, संकट का हल होय |
डूबन हारे के लिये, तिनका सम्बल होय ||
वो तपोवन हो के राजा का महल
वो तपोवन हो के राजा का महल,
प्यास की सीमा कोई होती नहीं,
हो गये लाचार विश्वामित्र भी,
मेनका मधुमास लेकर आ गयी।
तृप्ति तो केवल क्षणिक आभास है,
और फिर संत्रास ही संत्रास है,
शब्द-बेधी बाण, दशरथ की व्यथा,
कैकेयी के मोह का इतिहास है,
इक ज़रा सी भूल यूँ शापित हुई,
राम का वनवास लेकर आ गयी।
प्यास कोई चीज़ मामूली नहीं,
प्राण ले लेती है पर सूली नहीं,
यातनायें जो मिली हैं प्यास से,
आज तक दुनिया उसे भूली नहीं,
फिर लबों पर कर्बला की दास्ताँ,
प्यास का इतिहास लेकर आ गयी।
मेरा उसका परिचय इतना
मेरा उसका परिचय इतना
वो नदिया है, मैं मरुथल हूँ।
उसकी सीमा सागर तक है
मेरा कोई छोर नहीं है।
मेरी प्यास चुरा ले जाए
ऐसा कोई चोर नहीं है।
मेरा उसका इतना नाता
वो ख़ुशबू है, मैं संदल हूँ।
उस पर तैरें दीप शिखाएँ
सूनी सूनी मेरी राहें।
उसके तट पर भीड़ लगी है
कौन करेगा मुझसे बातें।
मेरा उसका अंतर इतना
वो बस्ती है, मैं जंगल हूँ।
उसमें एक निरन्तरता है
मैं तो स्थिर हूँ जनम जनम से।
वो है साथ साथ ऋतुओं के
मेरा क्या रिश्ता मौसम से।
मेरा उसका जीवन इतना
वो इक युग है मैं इक पल हूँ।
खुदा परस्त दुआ ढूंढ रहे हैं
वो हैं के वफ़ाओं में खता ढूँढ रहे हैं,
हम हैं के खताओं में वफ़ा ढूँढ रहे हैं।
हम हैं खुदा परस्त दुआ ढूँढ रहे हैं,
वो इश्क के बीमार दवा ढूँढ रहे हैं।
तुमने बड़े ही प्यार से जो हमको दिया है,
उस ज़हर में अमृत का मज़ा ढूँढ रहे हैं।
माँ-बाप अगर हैं तो ये समझो के स्वर्ग है,
कितने यतीम इनकी दुआ ढूँढ रहे हैं।
उस दौर में सुनते हैं के घर-घर में बसी थी,
इस दौर में हम शर्मो-हया ढूँढ रहे हैं।
वैसे तो पाक दामनी सबको पसंद है,
फिर आप क्यों औरत में अदा ढूँढ रहे हैं।
हाँ ! ‘क़म्बरी’ ने सच के सिवा कुछ नहीं कहा,
कुछ लोग हैं जो सच की सज़ा ढूँढ रहे हैं।