दर्द की महफ़िल सजाना चाहती हूँ
दर्द की महफ़िल सजाना चाहती हूँ
साज़ छेड़ो, गुनगुनाना चाहती हूँ
यूँ ही रस्मन पूछ बैठी हाल-चाल
वो ये समझा दिल दुखाना चाहती हूँ
उम्र भर का साथ तो मुमकिन नहीं है
साथ पल दो पल बिताना चाहती हूँ
युद्ध में जब हो गया बेटा ‘शहीद’
माँ पे क्या गुज़री बताना चाहती हूँ
आग नफ़रत की बुझाने के लिए मैं
प्रेम की गंगा बहाना चाहती हूँ
हम रोए तो लगा ज़माना रोता है
हम रोए तो लगा ज़माना रोता है
रोज़ यहाँ इक नया फ़साना होता है
कहीं खनकते जाम ख़ुशी के गीत कहीं
कोई भूखे पेट बेचारा सोता है
नहीं वक़्त पर कर पाता जो निर्णय वो
बीच भँवर में फँसकर नाव डुबोता है
दामन अपना खाली देख दुखी मत हो
उतना ही मिलता है जितना बोता है
रिश्ते, नाते, प्यार, वफ़ा सब बेमानी
रिश्ता केवल मजबूरी का होता है
मैं आँसुओं को उनसे चुराता चला गया
मैं आँसुओं को उनसे चुराता चला गया
बेफ़िक्र मुझको और रुलाता चला गया
मेरी वफ़ा का रंग नज़र आएगा कैसे
मैं बेवफ़ा हूँ दाग लगाता चला गया
बदलेगा मेरा वक़्त भी ऐ दोस्त एक दिन
यह ऐतबार दिल को कराता चला गया
मिटता रहा हवाओं के संग आ के बार-बार
जो अक्स रेत पर मैं बनाता चला गया
हमदर्द उसे जब से हमने बना लिया
वह दर्द मेरे नाम लिखाता चला गया
अँधेरों पर भारी उजाले रहेंगे
अँधेरों पर भारी उजाले रहेंगे
तो हाथों में सबके निवाले रहेंगे
न महफ़ूज़ रह पाएगी अपनी अस्मत
जुबाँ पर हमारी जो ताले रहेंगे
ग़मों से भरी ज़िन्दगी जी रहे हैं
मगर भ्रम ख़ुशी का ही पाले रहेंगे
यूँ आँसू बहाने से कुछ भी न होगा
अगर दिल हैं काले तो काले रहेंगे
बढ़ाते रहोगे अगर हौसला तुम
तो पतवार हम भी सँभाले रहेंगे
कितने दिन हो गए पिया को शहर गए
कितने दिन हो गए पिया को शहर गए
पलकों पर दो आँसू आकर ठहर गए
बचपन से रक्खा था दिल के कोने में
वो अरमान न जाने सब अब किधर गए
ख़्वाबों की तस्वीर सजाई थी हमने
इधर-उधर सब रंग अचानक बिखर गए
आज़ादी पर उनको भाषण देना था
घर के पंछी के दोनों पर कतर गए
जिनके कारण रुसवाई का दंश सहा
वो भी आज बिना कुछ बोले गुज़र गए