मेरी गुड़िया
मेरी गुड़िया बड़ी सयानी,
पढ़कर आई है हल्द्वानी।
सूरत से लगती सेठानी,
दिनभर सुनती नई कहानी।
उसके पीले हाथ करूँगी,
अब उसकी शादी कर दूँगी।
गुड्डे बिना पढ़े मिलते हैं,
कुछ गुड्डों के सिर हिलते हैं।
कुछ चाबी खाकर चलते हैं,
कुछ के पाँव फिसल पड़ते हैं।
ऐसों का तो नाम न लूँगी,
अब उसकी शादी कर दूँगी।
दावतनामा
कहा शेर ने टेलीफोन पर
हलो! शिकारी मामा,
भेज रहा हूँ सालगिरह का
तुमको दावतनामा।
मामी, मौसी, मुन्ना, मंगू
सबको लेकर आना,
मगर शर्त यह याद रहे
‘बंदूक’ साथ मत लाना।
-साभार: पराग, जनवरी, 1980, 75