झूलत कदम तरे मदन गोपाल लाल
झूलत कदम तरे मदन गोपाल लाल,
बाल हैं बिशाल झुकि झोंकनि झुलावती।१।
कोई सखी गावती बजावती रिझावती,
घुमड़ि घुमड़ि घटा घेरि घेरि आवती।२।
परत फुहार सुकुमार के बदन पर,
बसन सुरंग रंग अंग छबि छावती।३।
कहैं गंगादास रितु सावन स्वहावन है,
पावन पुनित लखि रीझि कै मनावती।४।
बोए पेड़ बबूल के, खाना चाहे दाख
बोए पेड़ बबूल के, खाना चाहे दाख ।
ये गुन मत परकट करे, मनके मन में राख ।।
मनके मन में राख, मनोरथ झूठे तेरे ।
ये आगम के कथन, कदी फिरते ना फेरे ।।
गंगादास कह मूढ़ समय बीती जब रोए ।
दाख कहाँ से खाए पेड़ कीकर के बोए ।।
माया मेरे हरी की, हरें हरी भगवान
माया मेरे हरी की, हरें हरी भगवान ।
भगत जगत में जो फँसे, करें बरी भगवान ।।
करें बरी भगवान, भाग से भगवत अपने ।
इसे दीनदयाल हरी-हर चाहिये अपने ।।
गंगादास परकास भया मोह-तिमिर मिटाया ।
संत भए आनंद ज्ञान से तर गए माया ।।
अन्तर नहीं भगवान में, राम कहो चाहे संत
अन्तर नहीं भगवान में, राम कहो चाहे संत ।
एक अंग तन संग में, रहे अनादि अनंत ।।
रहे अनादि अनंत, सिद्ध गुरु साधक चेले ।
तब हो गया अभेद भेद सतगुरु से लेले ।।
गंगादास ऐ आप ओई मंत्री अर मंतर ।
राम-संत के बीच कड़ी रहता ना अन्तर ।।
जो पर के अवगुण लखै, अपने राखै गूढ़
जो पर के अवगुण लखै, अपने राखै गूढ़ ।
सो भगवत के चोर हैं, मंदमति जड़ मूढ़ ।।
मंदमति जड़ मूढ़ करें, निंदा जो पर की ।
बाहर भरमते फिरें डगर भूले निज घर की ।।
गंगादास बेगुरु पते पाये ना घर के ।
ओ पगले हैं आप पाप देखें जो पर के ।।
गाओ जो कुछ वेद ने गाया, गाना सार
गाओ जो कुछ वेद ने गाया, गाना सार ।
जिसे ब्रह्म आगम कहें, सो सागर आधार ।।
सो सागर आधार लहर परपंच पिछानो ।
फेन बुदबुद नाम जुड़े होने से मानो ।।
गंगादास कहें नाम-रूप सब ब्रह्म लखाओ ।
अस्ति, भाति, प्रिय, एक सदा उनके गुन गाओ ।।
महाघोर आया कली, पड़ी पाप की धूम
महाघोर आया कली, पड़ी पाप की धूम ।
पंथ वेद के छिप गए, ना होते मालूम ।।
ना होते मालूम पाप ने दाबी परजा ।
फिर सुख कैसे होय धर्म का हो गया हरजा ।।
गंगादास जन कहें नाथ ! हे नन्द किशोर ।
कैसे होगी गुजर कली आया महा घोर ।।
मोहताजों की ख़बर ले, तेरी लें भगवान
मोहताजों की ख़बर ले, तेरी लें भगवान ।।
जस परगट दो लोक में, होगा निश्चय जान ।।
होगा निश्चय जान, मान वेदों का कहना ।
जो ठावे उपकार उदय होता है लहना ।।
गंगादास ले ख़बर राम उनके काजों की ।
जो लेते हैं ख़बर जगत में मोहताजों की ।।
माला फेरो स्वास की, जपो अजप्पा जाप
माला फेरो स्वास की, जपो अजप्पा जाप ।
सोहं सोहं सुने से, कटते हैं सब पाप ।।
कटते हैं सब पाप जोग-सरमें कर मंजन ।
छः चक्कर ले शोध अंत पावें मनरंजन ।।
गंगादास परकास होय खुलतेई घट-ताला ।
मनो मेरा कहा, भजो स्वासों की माला ।।
पावैं शोभा लोक में , जो जन विद्यामान
पावैं शोभा लोक में , जो जन विद्यामान ।
जिन विद्या बल हैं नहीं, सो नर भूत मसान ।।
सो नर भूत मसान पशु पागल परवारी ।
बिन विद्या नर सून ताल जैसे बिन वारी ।।
गंगादास ये जीव जाति नर पशु कहावैं ।
बिना सुगंधी सुमन कहीं आदर ना पावैं ।।
चारों चारों युगों से, सुखदायक हैं चार
चारों चारों युगों से, सुखदायक हैं चार ।
दया, सत्य, अरु संत ये, चौथा पर उपकार ।।
चौथा पर उपकार चार साधन सुखदाई ।
जो ये धन ले साध उसी की सुफल कमाई ।।
गंगादास जन कहें अरे भूषण ये धारो ।
सोभा पावें जीव साध के साधन चारों ।।
देखा देखी जोग से जोगी रोगी होय
देखा देखी जोग से जोगी रोगी होय ।
कर्म-ज्ञान को त्याग कर, महा कुयोगी होय ।।
महा कुयोगी होय उभय लोकों से जावै ।
गिर गए कच्चे फूल फेर फल कैसे आवै ।।
गंगादास कहें सरम करें ना मारें सेखी ।
बेशरमों के पंथ चले सब देखा देखी ।।
बंधन तो कट जायेंगे, जो लायकवर होय
बंधन तो कट जायेंगे, जो लायकवर होय ।
नालायक के सौ गुरु, भरम सकैं ना खोय ।।
भरम सकैं ना खोय गुरु पूरे भी होवैं ।
बेल कहाँ से चले बीज कल्लर में बोवैं ।।
गंगादास वन बाँस पास होते ना चन्दन ।
जब तक कपट कपाट गुरु काटे ना बन्धन ।।
मैली चादर मैल से, कदी चढ़े ना रंग
मैली चादर मैल से, कदी चढ़े ना रंग ।
इसे अन्तकरण में, जब तक मैल कुसंग ।।
जब तक मैल कुसंग शुद्ध कैसे हो जाता ।
निष्फल है उपदेस गुरु चाहे मिलें विधाता ।।
गंगादास जन कहें रहे जब तक बदफैली ।
कदी रंग ना चढै चित्त चादर है मैली ।।
चेले चातुर करें क्या, जो गुरु हों मतिमन्द
चेले चातुर करें क्या, जो गुरु हों मतिमन्द ।
आप फंसे मोह जाल में, ओ क्या काटें फ़न्द ।।
ओ क्या काटें फ़न्द फँसे माया में डोलें ।
बँधे बिचारे आप, और को कैसे खोलें ।।
गंगादास जन कहैं सरन पूरे की ले ले ।
गुरु भी पूरे होंय और निष्कपटी चेलें ।।
तोड़े जाल अनादि ये भरम, भये दुःख दूर
तोड़े जाल अनादि ये भरम, भये दुःख दूर ।
दया करी गुरुदेव ने दिये ज्ञान भरपूर ।।
दिए ज्ञान भरपूर पुण्य अरु पाप लखाये ।
गंगादास परकास भय दुई अवरन फोड़े ।
दया करी गुरुदेव मोहमय बन्धन तोड़े ।।
तेगा ले गुरु ज्ञान का, राम भक्ति की ढाल
तेगा ले गुरु ज्ञान का, राम भक्ति की ढाल ।
धर्म तमंचा बाँध ले, कदी लुटै ना माल ।।
कदी लुटै ना माल पडे डाका ना तस्कर ।
बेखटकै ले नफा जहाँ चोरों के लस्कर ।।
गंगादास कह कदी माल अपना ना देगा ।
कर दे मार मदान ज्ञान का लेकर तेगा ।।
फँस रही है बेदाव में, दाव बिना लाचार
फँस रही है बेदाव में, दाव बिना लाचार ।
पाँचों पँजों में पड़ी, आठों आठों सार ।।
आठों आठों सार दाव देता ना फाँसा ।
बाजी बीती जय फुसे मन की अभिलासा ।।
गंगादास के दाव देख दुनिया हँस रही है ।
पौबारा दे गेर नरद बेबस फँस रही है ।।
मारो ठोकर दया कर, नाव मेरी हो पार
मारो ठोकर दया कर, नाव मेरी हो पार ।
और कोई सुनता नहीं, कब का रहा पुकार ।।
कब का रहा पुकार नाव चक्कर ले रही है ।
बार-बार परचंड पवन झोंके दे रही है ।।
गंगादास कह दीन जानके पार उतारो ।
खेवटिया हैं आप दयाकर ठोकर मारो ।।
उजर नहीं है आपसे, बेचो या लो मोल
उजर नहीं है आपसे, बेचो या लो मोल ।
हाथ आपके नाव है, बांधो या दो खोल ।।
बांधो या दो खोल पशु हैं आज तुम्हारे ।
जो चाहो सो करो दास महाराज तुम्हारे ।।
गंगादास कहें उजर करें तो गुजर नहीं है ।
बेचो सरे बाजार हमारे उजर नहीं है ।।
आता न उस वक़्त पै दारा सुत धन काम
आता न उस वक़्त पै दारा सुत धन काम ।
रुका कंठ, धरके कहें, अब तुम बोलो राम ।।
अब तुम बोलो राम पति ! पत्नि हूँ तेरी ।
कैसे होगी गुजर, एक बार बोलो, मेरी ।।
गंगादास उस वक़्त कोई मारग पाता ना ।
नव दर हो गए बंद स्वांस पूरा आता ना ।।
उल्लू को अचरज लगै, सुन सूरज की बात
उल्लू को अचरज लगै, सुन सूरज की बात ।
अन्ध होत दिन के उदय, देते दिखाई रात ।।
देते दिखाई रात रवि को मिथ्या मानै ।
औरों को कह मूढ़ आपको पण्डित जानै ।।
गंगादास गुरुदेव करें क्या चेले भुल्लू ।
रवि को करें अभान जन्म के अंधे उल्लू ।।
पापी के कोई भूलकर, मत ना बसो पडौस
पापी के कोई भूलकर, मत ना बसो पडौस ।
नीच जनों के संग में, निर्दोषी गहें दोस ।।
निर्दोषी गहें दोस, दोस देते दुःख भारी ।
बिगड़ जाय दो लोक भीख ना मिलै उधारी ।।
गंगादास कहें नीच संग डूबें परतापी ।
तजै गाम, घर, देस, जहाँ बसते हों पापी ।।
टूटी चोंच कुसंग से, सुआ भये उदास
टूटी चोंच कुसंग से, सुआ भये उदास ।
आए थे कुछ ब्याज को मूल बी कर लिया नास ।।
मूल बी कर लिया नास बड़े धोके में आए ।
इन कागों के संग बड़े दुख हमने पाये ।।
गंगादास तक़दीर जहाँ कागों में फूटी ।
कागा हांसी करे चोंच तोते की टूटी ।।
बीरज में जहाँ खता है, अति खरा है खेत
बीरज में जहाँ खता है, अति खरा है खेत ।
खेत सदा बल देत है, बीज बदल ना देत ।।
बीज बदल ना देत चाहे अमृत बरसावे ।
चिन[1] से चावल नहीं खेत करके दिखलाव ।।
गंगादास कहें वेद धरम से होता धीरज ।
चाहे धरण डिग जाय, कदी बदले ना बीरज ।।
केसर के सतसंग में, बसी रहे चाहे रोज
केसर के सतसंग में, बसी रहे चाहे रोज ।
प्याज-बास जाती नहीं, चाहे सो करले चोज ।।
चाहे सो करले चोज नीच ऊँचे ना होवैं ।
खर तुरंग ना होय चाहे तनु तीरथ धोवैं ।।
गंगादास जब नाक नहीं क्या सोहैं बेसर ।
किसी जतन से प्याज कदी होती ना केसर ।।
शेरों में घर स्यार ने, छाया क्या है फेर
शेरों में घर स्यार ने, छाया क्या है फेर ।
पराक्रम बिन नाम से, हो नहीं सकता शेर ।।
हो नहीं सकता शेर, कभी शेरों में बसकर ।
सिंह अकेले रहें फिरें स्यारों के लश्कर ।।
गंगादास पनचास[1] नहीं रमते बेरों में ।
मुर्दे करें तलास स्यार बसकर शेरों में ।।
- ऊपर जायें↑ शेर
मान बड़ाई, इर्षा, आशा, तृष्णा, चार
मान बड़ाई, ईर्षा, आशा, तृष्णा, चार ।
ये चारों जब तक रहें, जप-तप सब रुजगार ।।
जप-तप सब रुजगार नफा पावै हो टोटा ।
भरम चक्र में पड़ा रहे भगवत से चोटा[1] ।।
गंगादास कहे स्वपच लोभ, खल क्रोध कसाई ।
इनसे बचके रहो सभी हैं महा दुखदाई ।।
- ऊपर जायें↑ चोर
तेरे में, मुझमें, तुझे, यही एक है जाल
तेरे में, मुझमें, तुझे, यही एक है जाल ।
दुई इसी में फंस रहे, राजा अरु कंगाल ।।
राजा अरु कंगाल, दुई दोजख में गेरे ।
जहाँ दुई ना रहे, रहे उसको जब हेरे ।।
गंगादास परकास छिपाया अंधेरे में ।
व्यापक हैं भगवान ब्रह्म मेरे तेरे में ।।
मेरे तेरे में तुही, ये दो तुमसे दूर
मेरे तेरे में तुही, ये दो तुमसे दूर ।
तू मुझमें ना पवता, मैं तुझमें भरपूर ।।
मैं तुझमें भरपूर भूलकर दूर बतावै ।
तू कहता परछिन्न वेद भरपूर लखावै ।।
गंगादास जब मर्म-भर्म दो तज गेरे में ।
नहीं फेर कुछ फर्क समझ मेरे तेरे में ।।
विष में अमृत होत है, भगवत वर परसाद
विष में अमृत होत है, भगवत वर परसाद ।
दुश्मन मित्तरवत सबी, तपवत् सब परमाद ।।
तपवत् सब परमाद दया भगवत की जिनपै ।
सागर गो-पद-तुल्य राम राजी जिन किन पै ।।
गंगादास कहें समझ वेद ज्ञापक हैं इसमें ।
मीरा को हो गया महा अमृत रस विष में ।।
ले ले मंदा बिक रहा, सौदा अति अनमोल
ले ले मंदा बिक रहा, सौदा अति अनमोल ।
भर लेजा मन मान तू, बिना तुलाई तोल ।।
बिना तुलाई तोल लगे ना कौड़ी खरचा ।
नफ़ा सौ गुना होय बही या देखो परचा ।।
गंगादास कह चाहे मुझे कोई जामिन दे ले ।
नाम राम बिन, तोल बिन सौदा ले ले ।।
तेरे बैरी तुझी में, हैं ये तेरे फ़ैल
तेरे बैरी तुझी में, हैं ये तेरे फ़ैल ।
फ़ैल[1] नहीं तो सिद्ध है, निर्मल में क्या मैल ।।
निर्मल में क्या मैल, मैल बिन पाप कहाँ है ?
बिना पाप फ़िर आप, आपमें ताप कहाँ है ?
गंगादास परकास भय फ़िर कहाँ अंधेरे ?
और मित्र सब जगत फ़ैल दुश्मन हैं तेरे ।।
- ऊपर जायें↑ दुर्व्यसन
लक्षण येई नीच के, तजै वेद मरजाद
लक्षण येई नीच के, तजै वेद मरजाद ।
कटुक वचन, मद, इर्षा, क्रोध, काम, परमाद ।।
क्रोध काम परमाद बैर बिन कारण लावै ।
दगाबाज अन्याई पीठ पर चुगली खावै ।।
गंगादास जड़ जीव माँस मद करते भक्षण ।
सदा पाप में रति येई नीचों के लक्षण ।।
सोई जानो जगत में, उत्तम जीव सुभाग
सोई जानो जगत में, उत्तम जीव सुभाग ।
मधुर वचन निरमानता, सम दम तप बैराग ।।
सम दम तप बैराग दया हिरदे में धारैं।
मुख से बोलें सत्त सदा, न झूठ उचारैं ।।
गंगादास सुभ कर्म करें तजकर बदगोई ।
तन मन पर उपकार समझ जन उत्तम सोई ।।
बोलो जो कुछ धरा हो कहीं आपका माल
बोलो जो कुछ धरा हो कहीं आपका माल ।
मुझे बतादो सहज में आय गया अब काल ।।
आय गया अब काल माल घर के बूझैं हैं ।
जो साऊ थे सगे सोई दुशमन सूझैं हैं ।
गंगादास कह नार, भेद तन धन का खोलो ।
अब क्यों साधो मौन पिया मुझ से तो बोलो ।।