अन्धेरी इन राहों में चिरागाँ कोई तो करता
अन्धेरी इन राहों में चिरागाँ कोई तो करता
बेरंग इन फ़िज़ाओं में बहाराँ कोई तो करता
आते नहीं फ़रिश्तों के क़दम कभी इस ज़ानिब
वीराँ इन वादियों में गुलिस्ताँ कोई तो करता
ख़याल आते जो बदनुमा, हमें नासाज़ कर जाते
बुझ रहे एहसास में कहकशाँ कोई तो करता
तन्हा इस ज़िन्दगी में है नहीं कोई भी हमसाया
इस हाल में ख़ुद को मेहरबाँ कोई तो करता
आदमी ने पार कर दी हैं हदें हैवानियत की
शोर ये वारदातों के बेजुबाँ कोई तो करता
अन्धेरी इन राहों में चिरागाँ कोई तो करता
बेरंग इन फ़िज़ाओं में बहाराँ कोई तो करता
कभी न तुझे हम गवारा करेंगे
कभी न तुझे हम गवारा करेंगे
जैसे भी होगा गुज़ारा करेंगे
चलेंगे क़दम जा सकेंगे जहाँ तक
तल्ख़ियों का बेशक नज़ारा करेंगे
हुए दूर तुझसे इक ज़माना हुआ
तुझे भूलकर न पुकारा करेंगे
हमें भी बे-ख़ता तूने जो रुसवा किया
किसी पे भरोसा न दुबारा करेंगे
ख़्वाब देखा हमने जो साथ तेरे
आँखॊं से अब हम शरारा करेंगे
कोई हसरत न कोई गुमाँ रह गया
कोई हसरत न कोई गुमाँ रह गया
जीस्त का जाने क़ायल मैं क्यों रह गया
लम्हे रोने के हंसने के आते रहे
बेख़ुदी में रहा बेज़ुबाँ रह गया
हद से जाऊँ गुज़र ये ना सोचा कभी
ख़ुद की गफ़लत के मैं दरमयाँ रह गया
हंसने वालों से शिकवा न कोई मुझे
उनकी इशरत का मैं इक सामाँ रह गया
अन्धेरों में दहशत के साए रहे
मुख़ालिफ़ उजालों का मैं रह गया
मुझको अरसा हुआ मुस्कुराए हुए
मुझको अरसा हुआ मुस्कुराए हुए
जी रहा बेवजह सर झुकाए हुए
अश्क़ पीते हुए कट गई ज़िन्दगी
राह-ए-कज़ा में हूँ दिल जलाए हुए
सहरा-सहरा गुलिस्ताँ बनाता गया
आन्धियों की नज़र से बचाए हुए
क़दम-दर-क़दम बढ़ता ही मैं रहा
ग़म नहीं गढ़ूँ मैं जंग खाए हुए
देता काश माँझी जीने की एक मुहलत मुझे
ग़म भुलाए हुए मुस्कुराए हुए