बिखर गया है जो मोती पिरोने वाला था
बिखर गया है जो मोती पिरोने वाला था
वो हो रहा है यहाँ जो न होने वाला था
और अब ये चाहता हूँ कोई ग़म बटाए मिरा
मैं अपनी मिट्टी कभी आप ढोने वाला था
तिरे न आने से दिल भी नहीं दुखा शायद
वगरना क्या मैं सर-ए-शाम सोने वाला था
मिला न था पे बिछड़ने का ग़म था मुझ को
जला नहीं था मगर राख होने वाला था
हज़ार तरह के थेर रंज पिछले मौसम में
पर इतना था कि कोई साथ रोने वाला था
एक फ़क़ीर चला जाता है पक्की सड़क पर गाँव की
एक फ़क़ीर चला जाता है पक्की सड़क पर गाँव की
आगे राह का सन्नाटा है पीछे गूँज खड़ाऊँ की
आँखों आँखों हरियाली के ख़्वाब दिखाई देने लगे
हम ऐसे कई जागने वाले नींद हुए सहराओं की
अपने अक्स को छूने की ख़्वाहिश में परींदा डूब गया
फिर कभी लौट कर आई नहीं दरिया पर घड़ी दुआओं की
डार से बिछड़ा हुआ कबूतर शाख़ से टूटा हुआ गुलाब
आधा धूप का सरमाया है आधी दौलत छाँव की
इस रस्ते पर पीछे से इतनी आवाज़ें आईं ‘जमाल’
एक जगह तो घूम के रह गई एड़ी सीधे पाँव की
होने की गवाही के लिए ख़ाक बहुत है
होने की गवाही के लिए ख़ाक बहुत है
यो कुछ भी नहीं होने का इदराक बहुत है
इक भूली हुई बात है इक टूटा हुआ ख़्वाब
हम अहल-ए-मोहब्बत को ये इम्लाक बहुत है
कुछ दर-बदरी रास बहुत आई है मुझ को
कुछ ख़ाना-ख़राबों में मिरी धाक बहुत है
परवाज़ को पर खोल नहीं पाता हूँ अपने
और देखने में वुसअत-ए-अफ़्लाक बहुत है
क्या उस से मुलाक़ात का इम्काँ भी नहीं अब
क्यूँ इन दिनों मैली तिरी पौशाक बहुत है
आँखों में हैं महफ़ूज़ तिरे इश्क़ के लम्हात
दरिया को ख़याल-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक बहुत है
नादिम है बहुत तू भी ‘जमाल’ अपने किए पर
और देख ले वो आँख भी नमनाक बहुत है
इश्क़ में ख़ुद से मोहब्बत नहीं की जा सकती
इश्क़ में ख़ुद से मोहब्बत नहीं की जा सकती
पर किसी को ये नसीहत नहीं की जा सकती
कुंजियाँ ख़ाना-ए-हम-साया की रखते क्यूँ हो
अपने जब घर की हिफ़ाज़त नहीं की जा सकती
कुछ तो मुश्किल है बहुत कार-ए-मोहब्बत और कुछ
यार लोगों से मशक़्क़त नहीं की जा सकती
ताइर याद को कम था शजर-ए-दिल वर्ना
बे-सबब तर्क-ए-सुकूनत नहीं की जा सकती
इस सफ़र में कोई दो बार नहीं लुट सकता
अब दोबारा तिरी चाहत नहीं की जा सकती
कोई हो भी तो ज़रा चाहने वाला तेरा
राह चलतों से रक़ाबत नहीं की जा सकती
आसमाँ पर भी जहाँ लोग झगड़ते हों ‘जमाल’
उस ज़मीं के लिए हिजरत नहीं की जा सकती