कुछ शे’र
1.
अब क्या करूँ तलाश किसी कारवाँ को मैं,
गुम हो गया हूँ पाके तेरे आस्ताँ[1] को मैं ।
2.
आज आँसू तुमने पोंछे भी तो क्या,
यह तो अपना उम्र भर का हाल है ।
3.
आता नहीं ख़याल अब अपना भी ऐ ‘जलील’,
इक बेवफ़ा की याद ने सब कुछ भुला दिया ।
4.
आप पहलू[2] में बैठे हैं तो संभलकर बैठें,
दिले-बेताब को आदत है मचल जाने की ।
5.
उस गिरिफ़्तारी की पूछो न तड़प जिसके लिए,
दर[3] कफ़स[4] का हो खुला और ताक़ते-परवाज़[5] न हो ।
6.
कफ़स[6] से छूटकर पहुँचे न हम दीवार-ए-गुलशन तक,
रसाई[7] आशियाँ तक किस तरह बेबालोपर[8] होती ।
7.
कह दो यह कोहकन[9] से मरना नहीं कमाल[10],
मरकर के हिज्र-ए-यार[11] में जीना कमाल है।
8.
कासिद[12] पयाम[13]-ए-शौक को देना न बहुत तूल,
कहना फकत यह उनसे कि आँखें तरस गईं ।
9.
कुछ इख़्तियार नहीं किसी का तबिअत पर,
यह जिस पर आती है बेइख़्तियार[14] आती है ।
10.
कुछ इस अदा से यार ने पूछा मेरा मिजाज,
कहना ही पड़ा शुक्र है परवरदिगार[15] का ।
11.
ख़ूब इन्साफ़ तेरे अंजुमन[16]-ए-नाज में है,
शम्अ का रंग जमे, ख़ून हो परवाने का ।
12.
चाल मस्त, नज़र मस्त, अदा में मस्ती,
जब वह आते हैं लूटे हुए मैखाने को ।
13.
बहार फूलों की नापाइदार[17] कितनी है,
अभी तो आई, अभी उड़ गई हँसी की तरह ।
14.
बिछड़ कर कारवाँ से मैं कभी तन्हा नहीं रहता,
रफ़ीक-ए-राह[18] बन जाती है, गर्द-ए-कारवाँ[19] मेरी ।
15.
बिजली की ताक-झाँक से तंग आ गई है जान,
ऐसा न हो कि फूँक दूँ ख़ुद आशियाँ को मैं ।
16.
मस्त करना है तो खुम से मुँह लगा दे साक़ी,
तू पिलाएगा कहाँ तक मुझे पैमाने से ।
17.
मुझसे इरशाद[20] यह होता है तड़पा न करे कोई,
कुछ तुम्हें अपनी अदाओं पर नज़र है कि नहीं ?
18.
मुझे जिस दम ख़याले-नर्गिसे-मस्ताना[21] आता है,
बड़ी मुश्किल से काबू में दिले-दीवाना आता है।
19.
मुझे तमाम जमाने की आरजू क्यों हो,
बहुत है मेरे लिये इक आरजू तेरी।
20.
मैं समझता हूँ तेरी इशवागिरी[22] को साकी,
काम करती है नजर, नाम पैमाने का है।
21.
मैंने जो तुम्हें चाहा, क्या इसमें ख़ता मेरी,
यह तुम हो, यह आइना, इन्साफ़ करो ।
22.
यह जो सर नीचे किए हुए बैठे है,
जान कितनों की लिए बैठे हैं ।
23.
यह सोच ही रहे थे कि बहार ख़त्म हुई,
कहाँ चमन में निशेमन[23] बने या न बने ।
24.
रहे असीर[24] तो शिकवा हुए असीरी[25] के,
रिहा हुआ तो मुझे गम है रिहाई का ।
25.
वादा करके और भी आफ़त में डाला आपने,
ज़िन्दगी मुश्किल थी, अब मरना भी मुश्किल हो गया ।
26.
सब बाँध चुके कब के, सरे-शाख निशेमन,
एक हम हैं कि गुलशन की हवा देख रहे हैं ।
27.
हसरतों का सिलसिला कब ख़त्म होता है ‘जलील’,
खिल गए जब गुल तो पैदा और कलियाँ हो गईं ।
आँख लड़ते ही हुआ इश्क़ का आज़ार मुझे
आँख लड़ते ही हुआ इश्क़ का आज़ार[1] मुझे ।
चश्म[2] बीमार तिरी कर गई बीमार मुझे ।
दिल को ज़ख़्मी तो वह करते हैं मगर हैरत है,
नज़र आती नहीं चलती हुई तलवार मुझे ।
देखिए जान पे गिरती है कि दिल पर बिजली,
दूर से ताक रही है निगाह-ए-यार[3] मुझे ।
गरचे सौ बार इन आँखों से तुझे देखा है,
मगर अब तक है वही हसरते-दीदार[4] मुझे ।
मुझको परवा नहीं नासेह[5] तेरी ग़मख़्वारी[6] की,
ग़म सलामत रहे काफ़ी है यह ग़मख़्वार[7] मुझे ।
शीशा-ओ-जाम[8] पे साक़ी कोई इल्ज़ाम नहीं,
तेरी आँखें किये देती हैं गुनहगार[9] मुझे ।
यार साक़ी[10] हो तो चलता है अभी दौर ‘जलील’
कौन कहता है कि पीने से है इनकार मुझे ।