बच्चा
खा रहा है रोटी
गा रहा है
जाड़े की लम्बी रातों
बाबा से सुना गीत
कर रहा है शौच
पत्थरों से खेलता
मिट्टी पर खिंचता रेखाचित्र
अब वह जाने लगा स्कूल
देख आता है
फ़ूड-इंस्पेक्टर के बच्चे की पैंट
और उसके टिफ़िन में आमलेट
वह खाता नहीं है रोटी
अब गाता नहीं गीत
खेलता नहीं पत्थरों से
घर
खा रहा रोटी
गा रहा
जाड़े की लम्बी रातों
बाबा से सुना गीत
कर रहा शौच
पत्थरों से खेलता
मिट्टी पर खींचता रेखाचित्र
अब वह
जाने लगा स्कूल
देख आता है
फूड इंस्पैक्टर के
बच्चे की पैंट
और उसके टिफिन में
ऑमलेट
वह खाता नहीं है रोटी
अब गाता नहीं गीत
खेलता नहीं पत्थरों से
पवाड़ा
आओ चले उस गाँव
जहाँ झड़ते अनायास
पके फल – डाल-डाल छाँव- छाँव
चलो जीयें उस पेड़ की छाँव
जिसका वह एक फल
‘झाँणों- मनसा’ ने
चखा था आधा-आधा
रह गए थे देखते
छूट गया था बीज
उसी पेड़ की छाँव
बीज -दर –बीज
उगते रहे किनते ही शाखी
झड़ते रहे कितने फल
स्तब्ध रहा पहाड़ों का
परस्पर टकराना
थक गया
गाँव से गाँव सुलगना
गूँजता रहा ‘पवाड़ा’ हर घाटी,गाँव-गाँव
काया हो जाओ
तुम उस फल की
बीज हो जाता हूँ मैं
और उगते रहें बार-बार
घाटी-घाटी गाँव-गाँव
लाहौल-पुराण
मैने राजा गेपंग से मांगी-
पहनने के लिए भेड़ और
खाने के लिए भेड़
स्वाद के लिए
जौ के सत्तू
और मस्ती के लिए
छंग का गिलास
उसने कहा- तथास्तु !
राजा गेपंग से मैने मांगी-
दवा के लिए कुठ की जड़
गाय और
चूल्हे के मुँह के लिए
चंगमा की टहनी
काग़ज़ के लिए
भोज-पत्र का पेड़
उसने सहर्ष कहा- तथास्तु !
मैने लाहौल के
शीर्ष लोक-देवता से
और भी बहुत-कुछ मांगा
उत्तर मिला- तथास्तु !
अंत में मैने
लाहौल के लोगों के लिए मांगा-
भयंकर हिमपात से
थोड़ा सा भय
वर्षा ऋतु में
कटोरी-भर बारिश का पानी
और ताज़ा अख़बार
एकाएक रुक गया
उल्लास में डोलता भव्य चँवर
आदिम-देवता का मुँह बंद था
नियति के द्वार पर
देखने वाला था
उसका चेहरा