काले धब्बे
आँखों के नीचे
दो काले स्याह धब्बे
आकर ठहर गए
और नाम ही नहीं लेते जाने का
न जाने क्यों उनको
पसंद आया ये अकेलापन ।
आँखें
आँखे जाने क्यों
भूल गई पलकों को झपकना
क्यों पसंद आने लगा इनको
आँखों में जीते-जागते
सपनों के साथ खिलवाड़ करना…
क्यों नहीं हो जाती बंद
सदा के लिए
ताकि ना पड़े इन्हें किसी
असम्भव को रोकना ।
दुनिया ने जब भी दर्द दिया
दुनिया ने जब भी दर्द दिया
तुमने सदा सँभाला मुझे
क्या सोचा है कभी
जो दर्द तुम दे गए
उसको लेकर मैं किधर जाऊँ?
ढ़ाल बनकर खड़े होते थे तुम
और अब हाथ में तलवार लिए खड़े हो
क्या कभी सोचा तुमने
कितने वार खाएँ हैं मैंने
इस बेदर्द ज़माने के
तो क्या तुम्हारा वार जाने दूँगी खाली?
तो फिर
मत सोचो इतना
और चला डालो अपना भी वार
मत चूको
वरना रह जाएगी
तुम्हारी तमन्ना अधूरी
तुम जानते हो
हाँ, बहुत अच्छी तरह
कि मैं नहीं देख पाती किसी की भी
अधूरी तमन्नाएँ
उन्हीं के लिए तो जिंदा रही अब तक
सबकी तमन्ना पूरी कर
मंज़िल तक ले जाना ही तो काम है मेरा
फिर तुमको कैसे निराश होने दूँ मैं
चलो तुम्हें भी तो
दिखा दूँ मंज़िल का रास्ता
और फिर टूट जाएँ ये साँसे
तो मलाल ना होगा
टूटती इन साँसों के लबों पर
बस इक तेरा ही नाम होगा ।
चेहरे पर पड़ी सिलवटें
चेहरे पर पड़ी सिलवटें
आज पूछ ही बैठी
उनसे दोस्ती का सबब
मैं कैसे कह दूँ कि
तुम मेरे प्यार की निशानियाँ हो ।
फुरसत से घर में आना तुम
फुरसत से घर में आना तुम
और आके फिर ना जाना तुम ।
मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम ।
अधरों में अब है प्यास जगी
बनके झरना बह जाना तुम ।
बेरंग हुए इन हाथों में
बनके मेंहदी रच जाना तुम ।
नैनों में है जो सूनापन
बन के काज़ल सज जाना तुम।
लम्हा इक छोटा सा
लम्हा इक छोटा सा फिर उम्रे दराजाँ दे गया
दिल गया धड़कन गयी और जाने क्या-२ ले गया ।
वो जो चिंगारी दबी थी प्यार के उन्माद की
होठ पर आई तो दिल पे कोई दस्तक दे गया ।
उम्र पहले प्यार की हर पल ही घटती जा रही
उसकी आँखों का ये आँसू जाने क्या कह के गया ।
प्यार बेमौसम का है बरसात बेमौसम की है
बात बरसों की पुरानी दिल पे ये लिख के गया ।
थी जो तड़पन उम्र भर की एक पल में मिट गयी
तेरी छुअनों का वो जादू दिल में घर करके गया ।
राज अपने तुमको बताती गयी
राज अपने तुमको बताती गयी
नजदीक दिल के यूँ आती गयी ।
हर दम रहता तेरा ही ख्याल
यूँ ख्वाब तेरे सजाती गयी ।
बंदिश तो न थी तेरे प्यार में
बन्धन में कैसे समाती गयी ?
मंजिल को पाने की ही चाह में
कदमों को अपने बढ़ाती गयी ।
तुम जो मिले ज़िदंगी में प्रिये
दुनिया मैं अपनी बसाती गयी ।
दुःखों की बस्तियों में तो
फुरसत से घर में आना तुम
और आके फिर ना जाना तुम
मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम ।
अधरों में अब है प्यास जगी
बनके झरना बह जाना तुम ।
बेरंग हुए इन हाथों में
बनके मेंहदी रच जाना तुम ।
नैनों में है जो सूनापन
बन के काज़ल सज जाना तुम।