कैसी मुश्किल आई
कैसी मुश्किल आई!
हँसता हूँ तो बाबा कहते,
‘मत बंदर से दाँत दिखाओ।’
चुप रहने पर दादी कहती,
‘राजा बेटा हो, मुस्काओ!’
किसकी मानूँ, भाई
कैसी मुश्किल आई?
उछलूँ, कूदूँ, दौडूँ तो, झट-
गिरने का सब डर दिखलाते
खेल-कूदकर स्वस्थ रहोगे
मुझे गुरु जी यह समझाते
किसमें है-सच्चाई?
कैसी मुश्किल आई!
मम्मी कहती, ‘टॉफी दूँगी
दूध अगर सब पी जाओगे।’
पापा कहते, रेल न दूँगा,
चीज़ देख यदि ललचाओगे!’
किसकी करूँ बड़ाई,
कैसी मुश्किल आई!
सपने में ईश्वर
गोल-मोल लड्डू-पेड़े सा
देखा मैंने ईश्वर
गेंद खेलता था वह छत पर
हँसा पतंग उड़ाकर।
वर्षा में वह खूब नहाए
पेड़ों पर चढ़ जाए,
जामुन, आम, अनार तोड़कर
खाए, मुझे खिलाए।
नदी किनारे रेती से
पैरों पर महल बनाए,
सीपी, शंख बीन दीदी से
मालाएँ बनवाए।
कभी कार पर चढ़े हंस-सा
उड़े चाँद को चूमे,
कुल्फी के पर्वत को खाए
किरणों के संग घूमे।
मुझको मित्र बना लो ईश्वर
मैं भी कुल्फी खाऊँ,
पंछी-सा उड़ परी देश में
परियों से मिल आऊँ!
अरे नींद में ये क्या बड़बड़
मम्मी ने झकझोरा,
सपना टूटा लगा छिन गया
रबड़ी भरा कटोरा।