दोहे-1
बँटवारे का मामला, पहुँचा जब तहसील।
अपने से लगने लगे, मुंशी और वकील॥
संगत पर मुझको दिखा, जब दुनियावी रंग।
मैं दुनिया में आ गया, छोड़ सभी सत्संग॥
समझौते के नाम पर, थे ऐसे प्रस्ताव।
फिर से जिंदा हो गए, सभी पुराने घाव॥
मैं अक्सर इस बात पर, होता हूँ हैरान।
अब उनकी ही पूछ है, जिनके पूँछ न कान॥
होगा उस इंसान के, मन में कितना मैल।
बूचड़खाने को दिए, जिसने बूढ़े बैल॥
रे भी बहके कदम, उसने भी दी छूट।
और सब्र का बाँध फिर, गया एक दिन टूट॥
गूँजी, फिर गुम हो गई, सन्नाटे में चीख।
अबला अपनी लाज की, रही माँगती भीख॥
ताकतवर कमजोर का, करते रहते खून।
शायद होता है यही, जंगल का कानून॥
दौड़ी पूरे गाँव में, कुछ ऐसी अफवाह।
होते-होते रह गया, फिर विधवा का ब्याह॥
बूढ़ी आँखें देखतीं, आते-जाते पाँव।
शहर गए बेटा बहू, कब लौटेंगे गाँव॥
दोहे-2
साबित करता है यही, मरा-मरा का जाप।
श्रद्धा सच्ची हो अगर, धुल जाते हैं पाप॥
गंगाजल रखता नहीं, किंचित मन में बैर।
ज्ञानी करते आचमन, मूरख धोते पैर॥
लिए चने की पोटली, निकला नंगे पाँव।
मुझसे मेरी भूख ने, छीना मेरा गाँव॥
दुनिया की इस भीड़ में, बनता वही नजीर।
लिखता अपने हाथ से, जो अपनी तकदीर॥
कलतक जो थे ढूँढते, सबके अंदर खोट।
उनकी हालत आजकल, जैसे जाली नोट॥
करना क्या था, क्या किया, चेत सके तो चेत।
समय निकलता जा रहा, ज्यों मुट्टòी से रेत॥
गिरा शाख से टूटकर, सूखा पत्ता एक।
जीवन की गति देखकर, चिंतित हुआ विवेक॥
नए दौर का आदमी, बदले ऐसे रंग।
काबिलियत को देखकर, गिरगिट भी है दंग॥
अफसर को बँगला मिला, नेताजी को ताज।
जनता के हिस्से पड़ा, ढाई किलो अनाज॥
हे अर्जुन! रणभूमि में, यही तुम्हारा धर्म।
पूरी निष्ठा से करो, केवल अपना कर्म॥
लरकोरी सिखयाँ हुईं, घूमें पिय के साथ।
बाबुल अबकी फाग में, कर दो पीले हाथ॥
दोहे-3
दुनिया के हर देश में, होगा खूनी खेल।
अगर नहीं काटी गई, आतंकी विष-बेल॥
बस सूरत को छोड़कर, है गुणधर्म समान।
यत्र-तत्र-सर्वत्र हैं, बिना पूँछ के श्वान॥
खड़ा सरोवर-नीर में, साधे रहता मौन।
बगुले जैसी साधना, कर सकता है कौन॥
पीछे मुड़ कर देिखए, हुई कहाँ पर चूक।
केसर वाले खेत में, उग आई बंदूक॥
आया है बाजार में, क्या सुंदर बदलाव।
गोबर भी बिकने लगा, देखो गुड़ के भाव॥
जब बदले की भावना, लेती है प्रतिशोध।
कब रहता इंसान को, सही गलत का बोध॥
बड़भागी है लोग वो जिनके ऐसे मित्र।
रखते हैं जो एक सा, चेहरा और चरित्र॥
घर-बाहर दिखती नहीं, बहनें जब महफूज।
कैसा राखी बाँधना, कैसा भैया दूज॥
तभी मौत से जिंदगी, अक्सर जाती हार।
सस्ती है बीमारियाँ, महँगा है उपचार॥
समझौतों की मेज पर, कूटनीति के दाँव।
रोज गोलियाँ झेलते, सीमावर्ती गाँव॥
नई बहू ने बोल दी, जाने कैसी बात।
माँ दिनभर भूखी रही, रोई सारी रात॥