फ़िक्रे-अज़ादी को ता-अहसास इमकाँ कीजिए
फ़िक्रे-आज़ादी को ता-अहसास इमकाँ कीजिए।
दिल से दिल तक बर्क़े-खुद्दारी को जौलाँ कीजिए॥
दामने-गुल में फ़रोज़ां कीजिए आतश-कदा।
आग के शोलों से तरतीबे-गुलिस्ताँ कीजिए।
यह सितम हाय मुसलसल, यह जफ़ाए-मुत्तसिल।
लाइए किसकी ज़बाँ जो शुक्रे-अहसाँ कीजिए॥
हैरते-ग़म ता-कुजा, ज़ब्ते-मुहब्बत ता-बके।
‘रज़्म’ उठिए अब सकूने-ग़म को तूफ़ाँ कीजिए॥
कुछ रुबाइयां
रंग बदला किये ज़माने के।
चन्द जुमले मेरे फ़साने के॥
हो सके कब हरीफ़े-आज़ादी।
दरो-दीवार क़ैदखा़ने के॥
झलक यूँ यास में उम्मीद की मालूम होती है।
कि जैसे दूर से इक रोशनी मालूम होती है॥
मुबारक ज़िंदगी के वास्ते दुनिया को मर मिटना।
हमें तो मौत में भी ज़िंदगी मालूम होती है॥