हमारे मिलने का एक रस्ता बचा हुआ है
हमारे मिलने का एक रस्ता बचा हुआ है
अभी तलक फोन बुक में नम्बर लिखा हुआ है
दिलों में जो नफ़रतों का मलबा पड़ा हुआ है
हमारा इंसान इसके नीचे दबा हुआ है
रखी हुई है जगह जगह पे ये किसने माचिस
दिलों में आतिश ज़नी का धड़का लगा हुआ है
तुम्हें जो साहब कहेंगे, तुम को वही है लिखना
हमें पता है क़लम तुम्हारा बिका हुआ है
न जाने क्या क्या ख़्याल मुझ को डरा रहे हैं
कि जब से स्कूल मेरा बेटा गया हुआ है
दिखाए वक़्त ने पथराव इतने
दिखाए वक़्त ने पथराव इतने
वगरना दिल पे होते घाव इतने
धड़ल्ले से ख़रीदे जा रहे हैं
ज़मीरों के गिरे हैं भाव इतने
कहानी खो चुकी है अस्ल चेहरा
किये हैं आप ने बदलाव इतने
कई सदियां लगेंगी भरते भरते
फ़सीले वक़्त पर हैं घाव इतने
बचाओ ख़ुद को अब शर्मिदगी से
कहा था हाथ मत फैलाव इतने
प्यास बिखरी हुई है बस्ती में
प्यास बिखरी हुई है बस्ती में
और समंदर है अपनी मस्ती में
कितना नीचे गिरा लिया ख़ुद को
आप ने शख़्सियत परस्ती में
क्यों करें हम ज़मीर का सौदा
हम बहुत ख़ुश हैं फ़ाक़ा मस्ती में
कल बुलन्दी पे आ भी सकते हैं
ये जो बैठे हैं आज पस्ती में
सूफ़ियाना मिज़ाज है अपना
मस्त रहते हैं अपनी मस्ती में
हमारा मक़सद अगर सफ़र है तवील करना
हमारा मक़सद अगर सफ़र है तवील करना
शुमार ऐसे में किस लिए संगे मील करना
अगर मोहब्बत के केस में हो हमारी पेशी
हमारी मानो तो अपने दिल को वकील करना
हमारे घर में जिधर से नफ़रत का दाख़िला है
बहुत ज़रूरी है ऐसे रस्तों को सील करना
दिलों के रिश्तों को एक साज़िश का नाम दे कर
है उनका मक़सद मोहब्बतों को ज़लील करना
हमें पता है तुम्हें जो ये सब सिखा रहा है
अगर सुनो सच तो पेश झूटी दलील करना
इधर उधर जो चराग़ टूटे पड़े हुए हैं
इधर उधर जो चराग़ टूटे पड़े हुए हैं
सलाम इनको, ये आंधियों से लड़े हुए है
दिखा रहे है हमें जो, अपना फुला के सीना
हमें पता है ये किस के बल पर खड़े हुए हैं
गले मिलने की सुलह की हो पहल किधर से
अभी तो दोनों ही अपनी ज़िद पर अड़े हुए हैं
हक़ीक़तें सब दबी हुई हैं इन्हीं के नीचे
सियासी लोगों ने ऐसे किस्से घड़े हुए हैं
दिखाई देने लगे हैं रिश्ते तमाम बोने
अभी तो साहब कमा के दौलत बड़े हुए हैं
मुझ से कहता है जिस्म हारा हुआ
मुझ से कहता है जिस्म हारा हुआ
वक़्त हूँ मैं तेरा गुज़ारा हुआ
जान का जब हमें ख़सारा हुआ
इश्क़ नाम तब हमारा हुआ
आप का नाम दर्ज है लेकिन
ये है मेरा शिकार मारा हुआ
आज क़ातिल बरी हुए मेरे
आज फिर क़त्ल मैं दुबारा हुआ
आप जिसको पहन के नाजां हैं
पैरहन है मेरा उतारा हुआ
फिर ठगे जाओगे ठगे लोगो
झूट है सच का रूप धारा हुआ
बात जब मेरी निकाली गई है
बात जब मेरी निकाली गई है
मेरी सच्चाई छुपा ली गई है
क़त्ल अंदर से हो चुका हूं मैं
झूट से जां तो बचा ली गई है
अब ज़रूरत नहीं है दरया की
प्यास अश्कों से बुझा ली गई है
हम से पुरखों की हवेली तो नहीं
सिर्फ़ दस्तार संभाली गई है
दास्ताँ से हटा के मेरा नाम
दिल से इक फांस निकाली गई है