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मेरे अपने

अश्क़[1] वो काम कर गए मेरे,
अश्क़ वो थाम कर गए मेरे!

किसी से क़ीमते-वफ़ा[2] सुनकर,
अदा वो दाम कर गए मेरे!

मेरा ही करके कत्ल, देखो वो,
सर पे इलज़ाम कर गए मेरे!

पूछा ज़िंदगी की क्या है दवा,
वो आगे जाम कर गए मेरे!

और वो जाते-जाते कुछ न सही,
वफ़ा तो नाम कर गए मेरे!

गिल़ा औरों से नहीं है शम्मा,
मुझको बदनाम कर गए मेरे!

आबो-गिल

ये धुआँ धुआँ ये गुबार[1] क्यूँ
न है दिल को अपने क़रार क्यूँ

क्या वो आ बसे हैं यहीं कहीं
न उतर रहा ये ख़ुमार क्यूँ

मैं हूँ मुत्मईन[2] गमे-यार[3] से,
लूँ गमे-जहाँ[4] से उधार क्यूँ?

जो थमे न सिलसिला-ए-अलम[5]
न मस्सरतों[6] का शुमार[7] क्यूँ

तेरे बिन गुज़र तो मुहाल[8] हो,
तेरे साथ भी दुशवार[9] क्यूँ?

हुई आबो-गिल[10] में बसर न जब,
तो ज़मीं पे शम्मा, मज़ार[11] क्यूँ?

राख

दिल तुझे ढूँढता है, पर न तू नज़र आए,
लौट आए ज़रा धड़कन, तेरी ख़बर आए!

हो सफरे-हयात कैसे मुक्क़म्मल[1] यारब!
न जान जाए है, और ना ही तेरा दर आए!

हमने दे डाला है किस्मत को तेरे घर का पता,
अबके मुम्किन है कि लौटे, तो कुछ संवर आए!

शमअ को लाख अहले-बज़्म जलाना चाहें,
सुलगती राख! अब इसमें क्या शरर[2] आए?

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