प्यारी नानी
मम्मी की भी मम्मी हैये
अपनी प्यारी नानी,
दुलरा देती जब हम करते-
हैं कोई शैतानी।
नहीं मारती, नहीं डाँटती
बिल्कुल सीधी सादी,
उतनी ही बुढ़ी है, जितनी-
बूढ़ी मेरी दादी।
लोरी गाकर कभी सुलाती-
या फिर परी कहानी!
बाँच-बाँच लेती रामायण-
की पोथी घंटे भर,
खेल-कूद कर गुड़िया लौटी
मिट्टी पोते मुँह पर।
हँसती-हँसती मुँह धुलवाती
नानी लेकर पानी!
झुर्री पड़े गाल हैं उसके
बाल मुलायम रेशम,
नकली दाँत लगाए नानी
हमको बाँटे चिंगम।
पेपर पढ़ती लेकर ऐनक
तिरछी सधी कमानी!
भालू हुआ वकील
बी.ए. ओर एल-एल.बी. पढ़कर
भालू हुआ वकील,
फर्राटे से लंबी-चौड़ी
देने लगा दलील।
जैसे टहल रहा जंगल में
वैसे चला कचहरी,
रस्ते में ही लगी टोकने
उसको ढीठ गिलहरी।
बोली,‘दादा, पहले काला-
कोट सिलाकर आना,
तभी कचहरी जाकर तुम
अपना कानून दिखाना!’
भालू हँसा ठठाकर, बोला-
‘तुमको क्या समझाऊँ,
जनम लिया ही कोट पहनकर
अब क्या कोट सिलाऊँ!’
-साभार: नंदन, दिसंबर 1996, 30
बड़े मियाँ
बड़े मियाँ की क्या पहचान?
छोटा-सा मँुह, लंबे कान!
मूँछ नुकीली, ऐनक गोल,
डिब्बे-सा मुँह देते खोल,
पिच्च-पिच्च कर थूकें पान!
यों तो नाक सुपाड़ी-सी,
बजती छुक-छुक गाड़ी-सी,
लेते सिर पर चादर तान!
कहीं ईद, बैशाखी है,
होली, क्रिसमस, राखी है,
सबके साथ मिलाते तान!
बड़े मियाँ अच्छे इनसान,
यही सही उनकी पहचान,
मिलें आपको, रखना ध्यान!