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शंभूप्रसाद श्रीवास्तव की रचनाएँ

नाच बँदरिया

डमक-डमक-डम, डम-डम-डम
नाच बँदरिया छम-छम-छम!

तेरा बंदर है शौकीन,
पहने है कपड़े रंगीन,
नेकटाई चश्मा, पतलून,
घर है उसका देहरादून,
नहीं किसी साहब से कम,
नाच बँदरिया छम-छम-छम!

तू पहने कुरती-सलवार,
लाल दुपट्टा बूटेदार,
कंगन, टीका, झुमका, हार,
नकली गहनों की भरमार,
गहने चमकें चम-चम-चम!
नाच बँदरिया छम-छम-छम!

तुम दोनों दिखलाते खेल
बच्चों को सिखलाते खेल,
कहाँ सीखकर आते खेल
सबका मन बहलाते खेल,
खूब बजाते ताली हम,
नाच बँदरिया छम-छम-छम!

बैठ मदारी गाता है
तेरा बह कराता है,
जब तू चलती है ससुराल,
खी-खी करती दाँत निकाल,
हँसते-हँसते फूले दम,
नाच बँदरिया छम-छम-छम!

हीरा-मोती

हम गाँवों में खिलने वाले
नन्हे-मुन्ने फूल,
चंदन बन जाती है जगकर
अंग हमारे धूल!

सीधा-सादा रहन-सहन
मोटा खाना, पहनावा,
नहीं जानते ठाट-बाट
चतुराई और दिखावा।

मिलीं गोद में हमें प्रकृति की
दो वस्तुएँ महान,
हीरे जैसी हँसी हमारी,
मोती-सी मुसकान!

-साभार: शेरसखा, कलकत्ता

लाखों में एक

आसमान में लाखों तारे
लेकिन उनको कौन निहारे,
उगकर सारी रात चमकते
मगर अँधेरा मिटा न सकते।

एक अकेला चंदा आकर
अपनी किरणों को फैलाकर,
सबकी आँखें शीतल करता
सबके मन में अमृत भरता।

यह दुनिया भी बहुत बड़ी है
इनसानों से भरी पड़ी है,
हर कोई है नन्हा तारा
बनकर चाँद करो उजियारा।

-साभार: पराग, बंबई

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