दस्त-ए-क़ातिल में ये शमशीर कहाँ से आई
दस्त-ए-क़ातिल में ये शमशीर कहाँ से आई
नाज़ करती मिरी तक़दीर कहाँ से आई
चाँदनी सीने में उतरी ही चली जाती है
चाँद में आप की तस्वीर कहाँ से आई
अपनी पल्कों पे सजा लाई है किस के जल्वे
ज़िंदगी तुझ में ये तनवीर कहाँ से आई
हो न हो उस में चमन वालों की साज़िश है कोई
फूल के हाथ में शमशीर कहाँ से आई
ख़्वाब तो ख़ैर हम उस बज़्म से ले आए थे
लेकिन इस ख़्वाब की ताबीर कहाँ से आई
ख़ून-ए-हसरत है कहाँ और ये एज़ाज़ कहाँ
ऐ हिना तुझ में ये तौक़ीर कहाँ से आई
दिल से इक आह तो निकली है शकीला ‘बानो’
लेकिन इस आह में तासीर कहाँ से आई
जो शख़्स मुद्दतों मिरे शैदाइयों में था
जो शख़्स मुद्दतों मिरे शैदाइयों में था
आफ़त के वक़्त वो भी तमाशाइयों में था
उस का इलाज कोई मसीहा न कर सका
जो ज़ख़्म मेरी रूह की गहराइयों में था
वो थे बहुत क़रीब तो थी गर्मी-ए-हयात
शोला हुजूम-ए-शौक़ का पुरवाइयों में था
कोई भी साज़ उन की तड़प को न पा सका
वो सोज़ वो गुदाज़ जो शहनाइयों में था
बज़्म-ए-तसव्वुरात में यादों की रौशनी
आलम अजीब रात की तन्हाइयों में था
उस बज़्मा में छिड़ी जो कभी जाँ-दही की बात
उस दम हमारा ज़िक्र भी सौदाइयों में था
कुछ वज़-ए-एहतियात से ‘बानो’ थे हम भी दूर
कुछ दोस्तों का हाथ भी रूस्वाइयों में था
रोज़ शाम होती है रोज़ हम सँवरते हैं
रोज़ शाम होती है रोज़ हम सँवरते हैं
फूल सेज के यूँ ही सूखते बिखरते हैं
दिल को तोड़ने वाले तू कहीं न रूस्वा हो
ख़ैर तेरे दामन की चश्म-ए-तर से डरते हैं
सुब्ह टूट जाता है आईना तसव्वुर का
रात भर सितारों से अपनी माँग भरते हैं
ज़ोर और क्या चलता फ़स्ल-ए-गुल में क्या करते
बस यही कि दामन को तार तार करते हैं
या कभी ये हालत थी ज़ख़्म-ए-दिल से डरते थे
और अब ये आलम है चारागर से डरते ळैं
यूँ तिरे तसव्वुर में अश्क-बार हैं आँखें
जैसे शबनमिस्ताँ में फूल रक़्स करते हैं
ख़ूँ हमें रूलाती है राह की थकन ‘बानो’
जब हमारी नज़रों से कारवाँ गुज़रते हैं
शोख़ मासूम सी अल्लहड़ वो कुँवारी बातें
शोख़ मासूम सी अल्लहड़ वो कुँवारी बातें
याद आती हैं मुझ आप की प्यारी बातें
नाज़ से रूठना फिर उन का मनाना मुझ को
याद आने लगीं रह रह के वो सारी बातें
आस्तीं अपने ही अश्कों से भिगो डालोगे
याद आएँगी तुम्हें जब भी हमारी बातें
की ख़ता तुम ने कि हम ने उसे कल सोचेंगे
आज की रात तो ये छोड़िए सारी बातें
आज के दौर में हर रोज़ ही सुनना होंगी
बे-हिसी से भरी मफ़्हूम से आरी बातें
उन को भाती नहीं ये बात अलग है ‘बानो’
दिल में रख लेने के क़ाबिल हैं तुम्हारी बाते
वो जो हर दम मिरे ख़याल में है
वो जो हर दम मिरे ख़याल में है
जाने किस पर्दा-ए-जमाल में है
चाहते हो तो टूट कर चाहो
ख़ुद जवाब आप के सवाल में है
हाँ मिरा फ़न कमाल को पहुँचा
ज़ीस्त लेकिन मिरी ज़वाल में है
फिक्र क्या सुर्ख़-रू हो या टूटे
दिल मिरा उन की देख-भाल में है
क्या ज़रूरी है हम जवाब ही दें
एक तल्वार चुप की ढाल में है
उन को फ़ुर्सत कहाँ जो ये सोचें
‘बानो’ इमसाल किस वबाल में है