न भूल सके इतने
मो मन माहीं बसे मन मोहन,और बसी मन राधिका रानी,
नन्द यशोमती कौन बिसारत, गुवालन की छबि नाहीं भुलानी |
बृज की बृजबाल वे गुजरियां, अहो! कृष्ण के संग करे मनमानी,
शिवदीन, न भूल सके इतने, यमुना जल अमृत निर्मल पानी |
राधिका रीस भरी
गुजरी को दही अहो मीठो लगे,
घर माखन मांट भरे यशधारी |
परभात बहानू करे गऊ को,
पर कृष्ण कहां रतियाँ रह सारी |
नन्द यसोधा अशिष-अशिष दे,
गुजरी देत तुम्हे नित गारी |
शिवदीन यूँ राधिका रीस भरी,
समझावत श्याम को श्याम की प्यारी |
रैन में चैन से सोवत हो,
मन मोहन आँख लगे न हमारी |
तुम गोपिन के घर जाय घुसो,
हम तो सगरी युहीं रैन गुजरी |
अब बात बनी को बनावत हो,
कहूँ छानी छुपे अँखियाँ कजरारी |
शिवदीन यूँ राधिका रीस भरी,
समझावत श्याम को श्याम की प्यारी |
बरसा बरस रही चहूँ ओर
बरसा बरस रही चहूँ ओर |
घन गरजत हरषत सखी जियरा, नाचत बन में मोर ||
पीहूं-पीहूं रटत पपैया प्यारा, हँसत-हँसावत श्याम हमारा |
श्यामा परम मनोहर मनहर, प्रीतम नंद किशोर ||
दादुर धुनि सुनी-सुनी सुख उपजत, कोयल मधुर स्वरन ते कूंकत |
राधा का राजा कृष्णा प्यारा, लेवे मन चित चोर ||
बिजरी चमकत हे गिरधारी, बीती पल-पल रैना सारी |
तू मन मोहन ईश्वर मेरा, मैं तेरी गणगौर ||
गोपीनाथ राधिका प्यारी, सुखी संत महिमा लखी भारी |
सदा सुखी शिवदीन भजन कर, होकर प्रेम विभोर ||
होली बृज में
बृजबाला और गुवाला नन्दलाल के लगे हैं संग,
गड्वन में रंग घोल गेरत वह गोरी रे |
मारत पिचकारी तान-तान के कुंवर कान्ह,
मची धूम धाम नची अहीरों की छोरी रे |
चंग पे धमाल गावे स्वर में स्वर मिला के सखी,
कहता शिवदीन धन्य, आज वही होरी रे |
झूम-झूम झूमे,श्यामा श्याम दोउ घूमें,
अनुपम रंग राचे कृष्ण नाचे यें किशोरी रे |
होरी का आनंद नन्द, नन्दलाल द्वार-द्वार,
रंग की पिचकारी व गुलाल लाल-लाल है |
रसिया के रसिक कृष्ण, गाय़़ रहे बंसी में,
सुन-सुन के दौड़-दौड़ आय गये गुवाल है |
गोपिन का झमेला, राधे पारत प्रेम हेला,
डारत रंग-रंग, गले प्रेम पुष्प माल है |
कहता शिवदीन लाल, राधे कृष्ण गुवाल बाल,
कर में गुलाल लाल, नांचत गोपाल है |
कृष्ण श्याम श्यामा संग, देखो सखी होली रंग,
गुवाल बाल चंग बजा नांचत नांच गोरी रे |
मारत पिचकारी अरे भर-भर के रंग लाल,
लाल ही गुलाल लाल, लाल युगल जोरी रे |
होरी के दीवाना को, पकर-पकर कान्हा को,
नांच यूँ नाचावें, नांचे अहीरों की छोरी रे |
कहता शिवदीन राम आनन्द अपार आज,
आज वह तिंवार* सखी, सजो साज होरी रे |
शिव महिमा
जटा जूट वारे, गल मुण्ड माल धारे,
लिपटे सर्प कारे, जाके नंदिगण दुवारे हैं |
ऋषि मुनि संतन के, सदा शिव सहायक सत्य,
गणपति से ज्ञानी और गिरिजा के प्यारे हैं |
दानी हैं दयाल हैं,दाता वे विधाता हैं,
भक्तन की त्रिविधताप दुःख सकल टारे हैं |
कहता शिवदीनराम,राम नाम शिव-शिव रट,
कछु नाहीं भेद वेद चार यूँ उचारे हैं |
झूठो संसार सार यामे कछु है ही नाहीं
झूठो संसार सार यामे कछु है ही नाहीं,
मेरा ये मेरा करत, कौन यहाँ अपना है |
आया कर करार और बीती रैन हुआ भोर,
अब तो कर गौर,देख झूठा सा सपना है |
माया भरमाया भाया काया जली बहुतों की,
मर-मर के गये लोग करके कल्पना है |
कहता शिवदीन कहो वाणी से राम-राम,
चार दिन मुकाम यामें राम-राम जपना है |
भजन बिन जीवन बीत गया
भजन बिन जीवन बीत गया |
रूप स्वरूप शारीरिक बल सब, जोबन बीत गया ||
बालपना तो गया खेल में, तरुनाई तिरिया के मेल में |
सबसे बुरा बुढ़ापा छछिया, वह नवनीत गया ||
ऐ ! मनमौजी समय बिताया, तेरे हाथ कछु ना आया |
गाया करता मधुर स्वरों से, वह संगीत गया ||
जगत जेल से छूट सका ना, राम नाम धन लूट सका ना |
संत संगाती सच्चा साथी, प्यारा मीत गया ||
भरत खंड में चार पदारथ, क्यूँ ना अगला जनम सुधारत |
शिवदीन हरि से प्रीत लगा,फिर बाजी जीत गया ||
प्रभुजी ! माया नांच नचावे
प्रभुजी ! माया नांच नचावे |
छन-छन रूप स्वरूप धारकर, नित प्रति खेल दिखावे ||
रोकी रुके नहीं या म्हांसे, याते विनय करां हां थांसे |
भक्ति देकर झगड़ो मेटो, माया नहीं सतावे ||
माँगा प्रेम भक्ति बलिहारी, गुण गण गांवा उमर सारी |
जनम-जनम दर्शन हरी देवो, तो जिवरो सुख पावे ||
माँगा ज्ञान भक्ति के संग में, भीगे तन मन सच्चा रंग में |
सज्जन संत जनन की सेवा, श्रद्धा भाव बढ़ावे ||
हेलो सुनो दया का सागर, राम श्याम प्यारे नट नागर |
शिवदीन दीनपर कृपा करो हरी, तू कृपा सिन्धु कहलावे ||
मन है मन का सकल बखेरा
मन है, मन का सकल बखेरा |
मन लग जाये भक्ति करन में,सोचूं साँझ सवेरा ||
मन माने माने ना कहना, पागल मन के संग में रहना |
है यह संकट विकट मन ही का, मन है नार भगेरा ||
लागे नहीं भजन में मन है, मन ना लागे बुढ्ढा तन है |
उमर बीते मन के कारन, भोगे भोग घनेरा ||
शिवदीन गया संतन के द्वारे,मन आगे ना जोर चला रे |
उरझी डोरी सुरझे कैसे, यंत्र मन्त्र सब हेरा ||
मन का मता पता ना पाया, बार-बार मन ने भटकाया |
मिटे कवन विधि आना जाना, चौरासी का फेरा ||
ब्रज की रज शीश चढ़ाया करूं
नित्त ध्यान धरूं चित्त से हित से, उर गोविन्द के गुण गया करूं |
वृन्दावन धाम में श्याम सखा, मन हीं मन में हरषाया करूं |
नन्द यशोमती गुवालन को, शिवदीन यूं भाग्य सराया करूं |
श्रीराधिका कृष्ण ही कृष्ण रटूं, ब्रज की रज शीश चढ़ाया करूं |
संतन मीत से प्रीत करूं, उर में अति प्रेम जगाया करूं |
ब्रज में यमुना तट जाकर के, वहीँ घाट पे ठाठ से न्हाया करूं |
श्रीराधिका कृष्ण को नित्त ही ये, येही छंद सवैया सुनाया करूं |
शिवदीन रटू नट नगर को, ब्रज की रज शीश चढ़ाया करूं |
ब्रिज बालन में वे गुवालन में, बन कुंजन में नित्त जाया करूं |
गाय चरें जहें कानन में,हरि के संग गाय चराया करूं |
पाकर मौका मैं राधिका को, वह कृष्ण को हाल सुनाया करूं |
शिवदीन यकीन भयो उर में, ब्रज की रज शीश चढ़ाया करूं |
नन्द यशोदा के आँगन में, जहें खेलत कृष्ण मैं जाया करूं |
गुवाल सखा संग में मिलके, कछु गान सुनो कछु गाया करूं |
माखन रोटी कन्हैया जी पावत, झूठ उठाय मैं पाया करूं |
शिवदीन करूं विनती सुनलो, ब्रज की रज शीश चढ़ाया करूं |
बरसत बरषा परम सुहावन
बरसत बरषा परम सुहावन ।
रिमझिम रिमझिम बरस रहा है,ये आया सखि सावन ॥
बादर उमड़ी घुमड़ी सखि छाये, दादुर कोयल गीत सुनाये ।
नांचत मोर पिहूँ पी रटि रटि, मौसम सुन्दर उर मन भावन ॥
दामिनी दमकत चमकत चम-चम, नांच रही परियां सखि छम-छम ।
साज बाज सुर ताल राग रंग,गंध्रिप* लगे गुनी जन गावन ॥
नाना पक्षी हंस चकोरा, हरन करत मन चातक मौरा ।
ये वृन्दावन लहर निराली, यमुना गंगा अनुपम पावन ॥
कहे शिवदीन मनोहर जोरी, कृष्ण राधिका चन्द्र चकोरी ।
धन्य-धन्य वृजराज छटा छवि, वृजजन जन के मन हर्षावन ॥
बताया सबने कर्म प्रधान
बताया सबने कर्म प्रधान |
वेद पुराण शास्त्र दे साखी, ऋषि मुनि संत महान ||
कर्म भूमि कर्मा री खेती, कोई अगेती कोई पछेती |
बोवे बीज सोही फल पावे, सबको है यह ज्ञान ||
कर्म शुभाशुभ कर्मयोग है, कर्म बना सोही कर्मभोग है |
कर्म का बंधन है ही तगड़ा, धर देखो उर ध्यान ||
कर्म कभी निष्फल ना होवे, धन शुभकर्म पाप सब धोवे |
ऐसेही कर्म बुरा भ्रम दुःख है,कर्म रूप पहचान ||
शिवदीन कर्म गत राम मिलेरे, सुबह नहीं तो शाम मिलेरे |
सतगुरु संत सत्य सतसंगी, किना पूर्ण निदान ||
दर्द भरे गाने सुनता है कोई कोई
दर्द भरे गाने, सुनता है कोई कोई,
वही दर्द को पिछाने, मन जांके दर्द होई |
जांके कांटा चुभा न पग में,
वह क्या समझे प्रेम मग में,
प्रभु प्यार कोई पाता,अंसुवन से काया धोई |
शिवदीन मिलता प्यारा, कठिनाईयां हैं गहरी,
चलता है धीर धरके , उर ज्ञान दीप जोई |
है तूं दया का सागर, तेरा नाम है उजागर,
मैं दास नाम का हूँ, नामी है तूं भी कोई |
ना सखी श्याम हमारे कहे को
थाकी गई यसुधा समुझा, हम बरज थकी, सब राम ही जाने |
ओलमू लावत नन्द को नंदन, छेर करे री रह्यो नहीं छाने |
गुवालनी ढीठ वे गारी बकैं, और सास हमारी लगी समुझाने |
श्यामा भी हार गई शिवदीन, यो श्याम हमारो तो, कहनू न माने ||
दिल देख मेरो धरके छतियां, सखी लागी गयो अब जी घबराने |
श्याम न आयो या शाम बही, अब हेरुं कहाँ मिलिहैं न ठिकाने |
शिवदीन यकिन दिलावत मोहि, नये करी हैं नित्त और बहाने |
श्यामा थकी समुझा समुझा,सखी श्याम की श्यामा,यो श्याम न माने ||
मांगत हैं दधि दान वे रोकि के, राह हमारी व बांह गहे को |
झगरो करते न बने हमसों, नितकी नितको दुःख दर्द सहे को |
शिवदीन यकिन करो न करो, रंग कारो है कारो ही श्याम बहे को |
राधिका बोलि उठी झुंझला,अब ना सखी श्याम हमारे कहे को ||
ओलमों न ल्यावो श्याम श्यामा समुझाय रही,
पर घर न जावो कान्ह मेरी कछु मानो जी |
बांसुरी बजाओं माखन मिश्री तुम खाओ,
रंग घर में जमाओ आपो आपनो पिछानो जी |
यशोदानन्द नन्दलाल गउवन के गोपाल लाल,
ग्वाल बाल ग्वालिनी भी मारे मोही तानो जी |
कहता शिवदीन लाल जानो सब हाल कृष्ण,
राधा कहे ठीक नहीं नित की समझानो जी |
मन अब तो जाग
सांकल ज्ञान की तौरत है गजराज यो धूम मचावत है |
अहिराज तुरंग कहूँ क्या कहूँ धमकावें तो मारने धावत है |
शिवदीन कहें बस क्या चलि हैं पल एक में आँख घुरावत है |
शुभ संतन का मन धन्य प्रभु नित गोविन्द का गुण गावत है ||
मानत ना मन मेरो कह्यो समझाय थक्यो अरे बार ही बारा |
थोरी ही बात में,भोग के सुख को, पावत है दुःख अपरम्पारा |
मन चंचल है हठ ठानी रह्यो प्रभु चीन्ह नहीं निज रूप पियारा |
शिवदीन सुने न हरी चरचा फिर कैसे तिरे भव सिन्धु की धारा ||
चेत तो चेत चितार मना यह काम न आवे कोऊ सुत दारा |
शिवदीन फंस्यो जिनके फंद में वही आन चिता पे करे मुख कारा |
प्रीत नहीं कोई रीत नहीं सब देख के प्रेत कहे परिवारा |
प्रीतम तो परमेश्वर है, मन तू जग से करता न किनारा ||
क्या जमाना आगया
संसार में बारूद बिछी, कब आग लग जाए |
भडाका एक ही होगा, किसे अब कौन समझाए ||
देश में नेता ना कोई काम करते हैं |
कुर्सियों पर बैठ कर आराम करते हैं ||
ईरषा फैली जगत में, आस भी निराश है |
दिखते है दूर सबही, कौन किसके पास है ||
धर्म तो निरपेक्ष माना, ना कहीं प्रकाश है |
हो रही धोखाधड़ी, अब उठ गया विस्वास है ||
पुन्य पातालों गया, दुःख पाप सारे छागया |
शिवदीन देखो गौर से ये क्या जमाना आगया ||
बेशर्म दुनियां देखकर वो शरम भी शरमा गई |
जलन में जलती है काया बुद्धि भी चकरा गई ||
मरियाद सब टूटण लगी, मानव भी दानव हो रहे |
लोभ की चादर पड़ी, अब क्या कहें सब सो रहे ||
कौन सुखिया कौन दुखिया, ना कोई पहचान है |
कौन सज्जन कौन दुर्जन, ना किसी को ज्ञान है ||
तन धन जोबन /
तन धन जोबन थिर नहीं, मुरख करे गुमान,
ए मन नर तन पायके, कर सबका सनमान |
कर सबका सनमान, पावणा है दो दिन का,
राम नाम उर धार, मिला है सुन्दर मौका |
सबसे बोलो प्रिय वचन, सत्य बात परतीत,
शिवदीन हार के ना चलो, चलो तो बाज़ी जीत |
राम गुण गायरे ||
तन धन जोबन पर बड़ा, कीना जिन विस्वास,
ये सब धोखा दे चले, रहे ना कोई पास |
रहे ना कोई पास, धाम धन दो-दो दिन के,
तन जोबन ढलि गये, संग में रह कर जिनके |
फिर इन पर विस्वास क्या, राम भजो शिवदीन,
सत संगत करि के चलो, चातुर चातुर प्रवीन |
राम गुण गायरे ||
रंग बरसत ब्रज में होरी का
रंग बरसत ब्रज में होरी का |
बरसाने की मस्त गुजरिया, नखरा वृषभानु किशोरी का ||
गुवाल बाल नन्दलाल अनुठा, वादा करे सब से झूठा |
माखन चोर रसिक मन मोहन, रूप निहारत गौरी का ||
मारत हैं पिचकारी कान्हा, धूम माचवे और दीवाना |
चंग बजा कर रंग उडावे, काम करें बरजोरी का ||
ब्रज जन मस्त मस्त मस्ताना, नांचे कूदे गावे गाना |
नन्द महर घर आनंद छाया, खुल गए फाटक मोरी का ||
कहे शिवदीन सगुण सोही निरगुण, परमानन्द होगया सुण-सुण |
नांचै नृत्य धुन धमाल, देखो अहीरों की छोरी का ||
मिहरा बरसत वृन्दावन में
मिहरा बरसत वृन्दावन में |
तन राधा का मस्त लहरिया, भीगा मन मोहन में ||
छम-छम छम-छम पायल बाजे, चलत चाल श्रीराधे साजे |
धन्य-धन्य श्रीकृष्ण कलाधर शोभित शुभ नर तन में ||
मुरलीधर की मुरली बाजी, ग्वाल सखा ब्रज बाला राजी |
यमुना तट पर खड़ा सांवरा, बिजरी चमकत घन में ||
मौर पपैया दादुर बोले, भांति-भांति के पक्षी डोले |
हरी हरियाली, कोयल कूँकत बोले मधुर स्वरन में ||
शिवदीन मनोरम छटा निराली, जय-जय जय प्यारे बनमाली |
युगल छबि उर बसत हमारे, देखो इन नयनन में ||