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संत कुमार टंडन ‘रसिक’ की रचनाएँ

अन्नू का तोता

‘बाबा, बाबा’ बोला पोता,
‘लाल, दुलारे तू क्यों रोता?’
‘ला दो पिंजला, ला दो तोता
बला नहीं, बछ छोता-छोता।’

अन्नू जी ने गाना छोड़ा,
अन्नू जी ने खाना छोड़ा,
बाबा साहब से की कुट्टी
दादा से भी हो गई छुट्टी।

अन्नू जी का तोता आया
पिंजड़े में उसको बैठाया,
तनिक न तोते के मन भाया
पानी पिया, न दाना खाया!

‘सीता-राम’ न पट्टू बोले
बंद न अपनी आँखें खोले,
चुमकारें या उसे चहेंटे-
चीख-चीखकर बोले ‘टें-टें।’

अन्नू ने छोड़ी शैतानी
उसको हुई बड़ी हैरानी,
पानी पिए न दाना खाए
‘राम’ न बोले, बस चिल्लाए!

‘कौन, कहाँ, तोते के पापा?
दद्दा होंगे इसके बाबा।’
‘लाल दुलारे, वे हैं वन में,
इसीलिए दुख इसके मन में।’

अब न करूँगा मैं मनमानी
अन्नू की आँखों में पानी,
पिंजड़ा खोला, बोले, ‘आ-आ,
बहुत सताया तुझको जा-जा।’

डाक टिकट

मैं हूँ भइया डाक-टिकट,
मुझे न कोई राह विकट।
डाकघरों में सहे प्रहार,
फिर भी कभी न मानी हार।
जहाँ कहो मैं चल देता हूँ,
सभी जगह तो रह लेता हूँ।
लक्ष्य जहाँ का भी ठहराओ,
वहीं सदा तुम मुझको पाओ।
चिपक जहाँ जिसके मैं जाता,
पक्का पूरा साथ निभाता।
बीच राह में साथ न छोडूँ,
पीछे कभी नहीं मुख मोडूँ।
मैं मंजिल से कभी न भटका,
नहीं राह में अपनी अटका।
चाहो तो ये गुण अपनाओ,
अपना जीवन सफल बनाओ।

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