बयाबानों पे ज़िंदानों पे वीरानों पे क्या गुज़री
बयाबानों पे ज़िंदानों पे वीरानों पे क्या गुज़री
जहान-ए-होश में आए तो दीवानों पे क्या गुज़री
दिखाऊँ तुझ को मंज़र क्या गुलों की पाइमाली का
चमन से पूछ ले नौख़ेज़ अरमानों पे क्या गुज़री
बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
ख़िजाँ के दौर में दिल-कश गुलिस्तानों पे क्या गुज़री
निशान-ए-शम्मा-ए-महफ़िल है न ख़ाक-ए-अहल-ए-महफ़िल है
सहर अब पूछती है रात परवानों पे क्या गुज़री
हमारा ही सफ़ीना तेरे तूफ़ानों का बाइस था
हमारे डूबने के बाद तूफ़ानों पे क्या गुज़री
मैं अक्सर सोचता हूँ ‘वज्द’ उन की मेहरबानी से
ये कुछ गुज़री है अपनों पर तो बे-गानों पे क्या गुज़री
हज़ार नक्स हैं मुझ में मिरे कमाल को देख
हज़ार नक्स हैं मुझ में मिरे कमाल को देख
मुझे ने देख दिल-आवेज़ी-ए-ख़याल को देख
गदा-ए-हुस्न तिरा ख़ूगर-ए-सवाल नहीं
निगाह-ए-शौक़ में रानाई-ए-सवाल को देख
नसीम-ए-सुब्ह की अटखेलियों से बरहम है
चमन में फूल के चेहरे पे इश्तिआल को देख
ग़ुबार-ए-रिंद है या ख़ाक-ए-साक़ी-ए-महवश
अदब से चूम के हर साग़र-ए-सिफ़ाल को देख
ख़याल-ए-ऐश में भी कैफ़-ए-आरज़ू न रहा
हयात-सोज़ी-ए-ज़हराब-ए-इंफ़िआल को देख
हुजूम-ए-जलवा-बद-अमाँ अदा-ए-ख़ुद-बीनी
निगाह-ए-सब्र से आराइश-ए-जमाल को देख
तमीज़-ए-ख़्वाब-ओ-हक़ीक़त है षर्त-ए-बे-दारी
ख़याल-ए-अज़मत-ए-माज़ी को छोड़ हाल को देख
रहेगी ‘वज्द’ तिरी काएनात-ए-दिल बरहम
कहा था किस ने कि उस हुस्न-ए-बे-मिसाल को देख
हज़ार नक्स हैं मुझ में मिरे कमाल को देख
मुझे ने देख दिल-आवेज़ी-ए-ख़याल को देख
गदा-ए-हुस्न तिरा ख़ूगर-ए-सवाल नहीं
निगाह-ए-शौक़ में रानाई-ए-सवाल को देख
नसीम-ए-सुब्ह की अटखेलियों से बरहम है
चमन में फूल के चेहरे पे इश्तिआल को देख
ग़ुबार-ए-रिंद है या ख़ाक-ए-साक़ी-ए-महवश
अदब से चूम के हर साग़र-ए-सिफ़ाल को देख
ख़याल-ए-ऐश में भी कैफ़-ए-आरज़ू न रहा
हयात-सोज़ी-ए-ज़हराब-ए-इंफ़िआल को देख
हुजूम-ए-जलवा-बद-अमाँ अदा-ए-ख़ुद-बीनी
निगाह-ए-सब्र से आराइश-ए-जमाल को देख
तमीज़-ए-ख़्वाब-ओ-हक़ीक़त है षर्त-ए-बे-दारी
ख़याल-ए-अज़मत-ए-माज़ी को छोड़ हाल को देख
रहेगी ‘वज्द’ तिरी काएनात-ए-दिल बरहम
कहा था किस ने कि उस हुस्न-ए-बे-मिसाल को देख
होश ओ ख़िरद से बेगाना बन जा
होश ओ ख़िरद से बेगाना बन जा
हर फ़स्ल-ए-गुल में दीवाना बन जा
आ दिल की बस्ती आबाद कर दे
इक शब चराग़-ए-वीराना बन जा
ख़लवत में क्या है जल्वत में गुम हो
ज़िंदा हक़ीक़त-ए-अफ़्साना बन जा
बे-सोज़ है बज़्म-ए-इल्म-ओ-दानिश
शम-ए-यकीं का परवाना बन जा
कितनी पिएगा जाम ओ सुबू से
मस्त-निगाह मस्ताना बन जा
कैफ़ जो रूह पे तारी है तुझे क्या मालूम
कैफ़ जो रूह पे तारी है तुझे क्या मालूम
उम्र आँखों में गुज़ारी है तुझे क्या मालूम
निगह-ए-अव्वल-ए-बे-बाक ने मेरे दिल पर
तेरी तस्वीर उतारी है तुझे क्या मालूम
मेहर या क़हर तिरे चाहने वाले के लिए
हर अदा जान से प्यारी है तुझे क्या मालूम
वक़्त कटता ही नहीं सुब्ह-ए-मर्सरत आ जा
रात बीमार पे भारी है तुझे क्या मालूम
एक मुद्दत से यहाँ उम्र-ए-रवाँ तेरे बग़ैर
वक़्फ-ए-आलम-शुमारी है तुझे क्या मालूम
ख़ंदा-ज़न सूरत-ए-गुल दामन-ए-सद-चाक मिरा
परचम-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है तुझे क्या मालूम
गुल-ए-नौ-ख़ास्ता काँटों का हक़ारत से न देख
किस की तक़दीर में ख़्वारी है तुझे क्या मालूम
‘वज्द’ ना-पैदी-ए-एहसास-ए-मर्सरत का सबब
आदत-ए-गिर्या-ओ-ज़ारी है तुझे क्या मालूम
ख़ुशी याद आई न ग़म याद आए
ख़ुशी याद आई न ग़म याद आए
मोहब्बत के नाज़ ओ निअम याद आए
ये क्यूँ दम-ब-दम हिचकियाँ आ रही हैं
किया याद तुम ने कि हम याद आए
गुलों की रविश देख कर गुलसिताँ में
शहीदों के नक़्श-ए-क़दम याद आए
बुरों का बहुत नाम जपती है दुनिया
जो अच्छे ज़ियादा थे कम याद आए
दम-ए-नज़्अ जूँही अजल मुस्कुराई
अचानक तुम्हारे कर्म याद आए
मुसीबत में भी बारहा ‘वज्द’ मुझ को
ख़ुदा जानता है सनम याद आए
ख़ुश-जमालों की याद आती है
ख़ुश-जमालों की याद आती है
बे-मिसालों की याद आती है
बाइस-ए-रश्क मेहर ओ माह थे जो
उन हिलालों की याद आती है
जिन की आँखों में था सुरूर-ए-ग़ज़ल
उन ग़ज़ालों की याद आती है
सादगी ला-जवाब है जिन की
उन सवालों की याद आती है
शौक़ की नुक्ता-दानियाँ न गईं
शौक़ की नुक्ता-दानियाँ न गईं
रात बीती कहानियाँ न गईं
हुस्न ने दी हज़ार बार शिकस्त
इश्क़ की लनतरानियाँ न गईं
नक़्श बन बन के रह गईं दिल में
सरसरी नौजवानियाँ न गईं
चेहरा-ए-ज़िंदगी की रौनक़ हैं
हौसलों की निशानियाँ न गईं
‘वज्द’ मायूसियों के ज़ोर में भी
अज़्म की कामरानियाँ न गईं
ज़ुल्मत-ए-शब ही सहर हो जाएगी
ज़ुल्मत-ए-शब ही सहर हो जाएगी
शिद्दत-ए-ग़म चारागर हो जाएगी
रोने वाले यूँ मुसीबत पर न रो
ज़िंदगी इक दर्द-ए-सर हो जाएगी
बाद-ए-तामीर-मकाँ ज़ंजीर-ए-ग़म
उल्फ़त-ए-दीवार-ओ-दर हो जाएगी
ला दलील-ए-इश्क-ओ-मस्ती दरमियाँ
ख़त्म बहस-ए-ख़ैर-ओ-शर हो जाएगी
ज़िक्र अपना जा-ब-जा अच्छा नहीं
सब कहानी बे-असर हो जाएगी
सुब्ह-ए-राहत के तसव्वुर के तुफ़ैल
हर शब-ए-ग़म मुख़्तसर हो जाएगी
सिर्फ़-ओ-अज़्म-ए-आतशीं दर-कार है
उम्र सर-गर्म-ए-सफ़र हो जाएगी
आ रहा है इंक़िलाब-ए-हश्र-ख़ेज
ज़िंदगी ज़ेर ओ ज़बर हो जाएगी