Skip to content

सुकीर्ति गुप्ता की रचनाएँ

छत के किसी कोने में

छत के किसी कोने में

अटकी वह बूंद

टीन पर ‘टप्प’ गिरी

समय के अंतराल पर

गिरना जारी है उसका

लय-सीमा बंधी वह

गिरने के बीच

प्रतीक्षा दहला देती है

कि अब गिरी…अब गिरी.

वर्षा थम चुकी है

छत से बहती तेज धार

एकदम चुप है

पर यह धीरे-धीरे संवरती

शक्ति अर्जित कर

गिरती है ‘टप्प’ से

जिजीविषा

(1)

झुकी कमर

ठक ठक देहरी

उम्र नापती

इधर-उधर देखती

एक बस; दो बस अनेक बस

जाने देती रिक्शा ठेला भी

युवक ठिठकता है

वत्सला कांपती

थाम लेती है हाथ

उसे सड़क पार जाना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.