छत के किसी कोने में
छत के किसी कोने में
अटकी वह बूंद
टीन पर ‘टप्प’ गिरी
समय के अंतराल पर
गिरना जारी है उसका
लय-सीमा बंधी वह
गिरने के बीच
प्रतीक्षा दहला देती है
कि अब गिरी…अब गिरी.
वर्षा थम चुकी है
छत से बहती तेज धार
एकदम चुप है
पर यह धीरे-धीरे संवरती
शक्ति अर्जित कर
गिरती है ‘टप्प’ से
जिजीविषा
(1)
झुकी कमर
ठक ठक देहरी
उम्र नापती
इधर-उधर देखती
एक बस; दो बस अनेक बस
जाने देती रिक्शा ठेला भी
युवक ठिठकता है
वत्सला कांपती
थाम लेती है हाथ
उसे सड़क पार जाना है।