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संजीव सूरी की रचनाएँ

लड़कियाँ

लड़कियाँ
बड़ा अच्छा लगता है
जब लदअकियाँ स्वप्न देखती हैं
उनके ख़्वाब होते हैं उन्हीं की तरह
रेशमी, मुलायम और महीन.

स्वप्न देखती लड़कियों के पुरख़ुलूस चेहरों
पर हो जाती है मुनक्कश सतरंगी गुलकारी.
उड़ते हैं बादलों के फाहे
होती है नदियों की कल-कल
झरनों की झर-झर
कलियों की चटकन
झड़ते हैं हरसिंगार के फूल
झांझर झनकती है
कंगन खनकते हैं उनके सपनों में.
अपनी आँखों में ख़ूबसूरत ख़्वाब बुनती
लड़कियाँ सचमुच ख़ूबसूरत लगती हैं
लगती हैं एक गदराती कविता की तरह.

पैराडाइज़ लॉस्ट-1 

पैराडाइज़ लास्ट (एक)

जबसे सर्रियलिस्ट कशमकश चली है उसके अन्दर
जब से उसके अन्दर मची उथल-पुथल में
रैडिकलिज़्म का समावेश हुआ है
एडम को लगने लगा है कि ईव
जो एक जिरहबख़तर थी
उसके न्युराटिक अस्तित्व के लिए
किसी दूसरे नक्षत्र पर रह गई है

जबसे उसकी छाती में क़ैद आवाज़ों की दोस्ती
उसकी आत्मा में उगे बीहड़ जंगल -सी हो गई है
तभी से उसने शुरू कर दी है पालनी
बड़ी संजीदगी से
अपनी तथाकथित क्लासिकल अहमन्न्यताएँ

गाँव के पोखर किनारे
पीपनियाँ बजाता हुआ एडम
आकाश को निहारता
अंतर्गुंफित आवेग में सोचता है
क्या यूँ ही बना रहेगा
ज़मीन और सितारों का फ़ासला
क्या फटे आकाश से यूँ ही बहती रहेगी
रक्त की धार
क्या यूँ ही गिद्ध तैरते रहेंगे हवा में
अपने डैनों में क़त्ल हुई रोशनी के टुकड़ों को जकड़े

सावधान!
एडम एक चरित्र नहीं
एक सघन आब्जेक्टिव विचार हो गया है
और इस विचार का मन-मस्तिष्क में आना
परमात्मा के वफ़ादार फ़रिश्तों से
बर्छियों की भाषा में बात करने के समान है.

पैराडाइज़ लॉस्ट-2

पैराडाइज़ लास्ट (दो)

पैराडाइज़ जिस कीली
पर घूम रहा था
उसे जंग लग गया है
शैतान और उसका दिस्त बीएल्ज़ेबब
ईसा से साँठ-गाँठ करने के वास्ते
एडम को विश्वास में लेने लगे हैं
ईव को क्या बहकाना
उसकी तो महज़ गाल छू कर
उसकी सुन्दरता का बखान करके
उसे फुसलाया जा सकता है
यूँ भी फ़ोर्बिडन फ़्रूट को खाने के बाद
हो गई है वह ज़्यादा ब्यूटी कांशियस
शैतान और उसके शौतान दोस्त ने
तरकीब बना ली है कि
एडम को भेज देंगे वे एम. पी. बना कर
दिल्ली में
और खोल देंगे एक ब्यूटी पार्लर
जहाँ घंटों बैठ ईव
सजती सँवरती रहेगी

इस उन्नति के दौर में
जब कोशिश हो रही है
मिसाइलों को ज़मीन से पैराडाइज़ तक पहुँचाने की
ख़तरनाक विचारों को पैक करके भेजा जा सकता है
भूतपूर्व पैराडाइज़ में

महाकवि मिल्टन अपनी क़ब्र में
करवटें लेता हुआ सोच रहा है
‘पैराडाइज़ लास्ट’, ‘पैराडाइज़ रीगेन्ड’ के बाद
अब लिखा जाए:
पैराडाइज़: हैंगिंग बिटविन अर्थ एंड स्काई’

पैराडाइज़ लॉस्ट-3 

पैराडाइज़ लास्ट (तीन)

पंछियों की नन्हीं चोंचों से
झरते गीत सुनकर
शफ़क सिन्दूरी साँझ देखकर
लहलहाते खेत, झूमते दरख़्त देखकर
एडम को लगने लगा है
ज़मीन तो करिश्मा है
मुलायम ज़िन्दगी जीने के लिए
बह रही है अनवरत
ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी
ख़ुशबूदार, सतरंगी बगियारूपी पृथ्वी पर
पोखर में नहाती ईच सोचती है
‘फ़ोर्बिडन फ़्रूट’ जो एक बयान था
बारूदी ज़ालिम कालिख का
वह लीक की तरह खिंच गया है
पैराडाइज़ और ज़मीन के मध्य

उनके जो शब्द फुसफुसाते थे पैराडाइज़ में
लग गए हैं पंख उन्हें ज़मीन पर
कर्बनाक हाशिए से बाहर आ गई है ज़िन्दगी
सारे का सारा ख़ालीपन
रिस गया है उनकी आत्मा से
बन गई है आत्मा एक महीन झालर
की तरह

मगर फिर भी क्यों कभी-कभी लगता है
एडम और ईव को कि उनकी
शिराओं में लहू नहीं आग बहती है
पिघलता लोहा बहता है आँखों से
दिमाग में रेतीले विचार विचरण करते हैं
ज़िन्दगी के माथे से पोंछते हुए पसीना
वे कभी कभी टटोलने लगते हैं
अपने अस्तित्व के झोलों से?

सुनो एडम ! सुनो ईव!
भटकन इस सिंथेटिक सभ्यता की
फ़ितरत है
पर तुम दोनों को हर सूरत में बचना है
शैतान और उसके शैतान दोस्ती
बीएल्ज़ेबब से.

ज़िन्दगी तो रहेगी ही

ज़िन्दगी तो रहेगी ही

कल रात
जड़ों ने मिट्टी से बग़ावत कत दी
पत्तों की चर्राहट औत सरसराहट
लुप्त होने लगी
जंगल की गहन वीथिकाओं में
और यह ख़बर दर्ज़ हो गई
पक्षियों की छातियों में
चारों दिशाएँ गूँज उठीं इस ख़बर से
नक्षत्र-मण्डलों से भी उतर आए कुछ
देवदूत
लगा यह … यह सृष्टि के अंत का सूचक है
साँय साँय करती रात में
समाधि से उठता है पहाड़ भी
चिपक गए दरख़तों की कनपटियों पर
कुछ मृत जुगनू

रोया बहुत उदयाचल, अस्ताचल
और ब्रह्माण्ड को उठाए एटलस
स्याह होने लगा
आकाश का नीलापन
पिघलकर बूँद-बूँद गिरने लगा अनवरत
क्षितिज पर लटका हुआ चाँद
तुषार-मंडित हरीतिमा अएर
कुछ बूँदें हो जाती हैं जज़्ब
काल व्यापी शून्य में
इसी शून्य मे‍ होता है
महानृत्य
अपाहिज इलेक्ट्रानों का
निकलती है झनझनाती आग
और कुछ जाँबाज़ सिरफ़िरे
हाथ बढ़ाकर थाम लेते हैं आसमान
निचोड़ देते हैं इसके अँधेरे को
छिड़क देते है‍ तारों को पृथ्वी पर
तभी आता है एक सफ़ेद कबूतर
पूर्व से उड़ कर और कहता हऐ
तारे हैं,कुछ पेड़ हैं
ज़िन्दगी तो रहेगी ही
इस ख़ूबसूरत पृथ्वी पर.

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