माखन की चोरी के कारन
माखन की चोरी के कारन, सोवत जाग उठे चल भोर।
ऍंधियारे भनुसार बडे खन, धँसत भुवन चितवत चहुँ ओर॥
परम प्रबीन चतुर अति ढोठा, लीने भाजन सबहिं ढंढोर।
कछु खायो कछु अजर गिरायो, माट दही के डारे फोर॥
मैं जान्यो दियो डार मँजारी, जब देख्यो मैं दिवला जोर।
‘चतुर्भुज प्रभु गिरिधर पकरत ही, हा! हा! करन लागे कर जोर॥
गोपाष्टमी
गोबिंद चले चरावन गैया ।
दिनो है रिषि आजु भलौ दिन कह्यौ है जसोदा मैया ॥
उबटि न्हवाइ बसन भुषन सजि बिप्रनि देत बधैया ।
करि सिर तिलकु आरती बारति, फ़ुनि-फ़ुनि लेति बलैया ॥
’चतुर्भुजदास’ छाक छीके सजि, सखिन सहित बलभैया ।
गिरिधर गवनत देखि अंक भर मुख चूम्यो व्रजरैया ॥
जसोदा!कहा कहौं हौं बात
जसोदा!कहा कहौं हौं बात?
तुम्हरे सूत के करतब मो पै कहत कहे नहिं जात.
भाजन फोरि,ढारि सब गोरस,लै माखन दधि खात.
जौ बरजौ तौ आँखि दिखावै,रंचहु नाहिं सकात.
और अटपटी कहँ लौ बरनौ,छुवत पानि सों गात.
दास चतुर्भुज गिरिधर गुन हौं कहति कहति सकुचात.