इससे पहले के बात टल जाए
इससे पहले के बात टल जाए
आओ एक दौर और चल जाए
आँसुओं से भरी हुई आँखें
रोशनी जिस तरह पिघल जाए
दिल वो नादान शोख़ बच्चा है
आग छूने पे जो मचल जाए
तुझको पाने की आस के फल से
ज़िंदगी की रिदा न ढल जाए
बख़्त मौसम हवा का रुख़ जाना
कौन जाने के कब बदल जाए
एक तो चेहरा ऐसा हो
एक तो चेहरा ऐसा हो
मेरे लिए जो सजता हो
शाम ढले एक दरवाज़ा
राह मेरी भी तकता हो
मेरा दुःख वो समजेगा
मेरी तरह जो तनहा हो
एक सुहाना मुस्तकबिल
ख़ाब सा जैसे देखा हो
अब ‘शहज़ाद’ वो दीपक है
जो तूफ़ान में जलता हो
एक बस तू ही नहीं मुझ से ख़फ़ा हो बैठा
एक बस तू ही नहीं मुझसे ख़फ़ा हो बैठा
मैं ने जो संग तराशा वो ख़ुदा हो बैठा
उठ के मंज़िल ही अगर आये तो शायद कुछ हो
शौक़-ए-मंज़िल में मेरा आबलापा हो बैठा
मसलहत छीन गई क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार मगर
कुछ न कहना ही मेरा मेरी सदा हो बैठा
शुक्रिया ए मेरे क़ातिल ए मसीहा मेरे
ज़हर जो तुमने दिया था वो दवा हो बैठा
जाने ‘शहज़ाद’ को मिनजुम्ला-ए-आदा पाकर
हूक वो उट्ठी के जी तन से जुदा हो बैठा
और काँटों को लहू किसने पिलाया होगा
और काँटों को लहू किसने पिलाया होगा
हम-सा दीवाना चमन में कोई आया होगा
बेसबब कोई उलझता है भला कब किससे
तुमने गुज़रा हुआ कल याद दिलाया होगा
जुज़[1] हमारे ऐ सुलगती हुई तन्हाई तुझे
ऐसे सीने से भला किसने लगाया होगा
कोई आया है न ‘शहज़ाद’ कोई आएगा
वहम ने याद के पर्दों को हिलाया होगा
कोंपले फिर फूट आईं शाख़ पर कहना उसे
कोंपलें फिर फूट आँई शाख पर कहना उसे
वो न समझा है न समझेगा मगर कहना उसे
वक़्त का तूफ़ान हर इक शय बहा के ले गया
कितनी तनहा हो गयी है रहगुज़र कहना उसे
जा रहा है छोड़ कर तनहा मुझे जिसके लिए
चैन न दे पायेगा वो सीमज़र कहना उसे
रिस रहा हो खून दिल से लब मगर हँसते रहे
कर गया बर्बाद मुझको ये हुनर कहना उसे
जिसने ज़ख्मों से मेरा ‘शहज़ाद’ सीना भर दिया
मुस्कुरा कर आज क्या है चारागर कहना उसे
क्या ख़बर थी के मैं इस दर्जा बदल जाऊँगा
क्या ख़बर थी के मैं इस दर्जा बदल जाऊँगा
तुझ को खो दूंगा, तेरे ग़म से संभल जाऊँगा
अजनबी बन के मिलूँगा तुझे मैं महफ़िल में
तूने छेड़ी भी तो मैं बात बदल जाऊँगा
ढूँढ पाए ना जहां याद भी तेरी मुझ को
ऐसे जंगल में किसी रोज़ निकल जाऊँगा
ज़िद में आये हुए मासूम से बच्चे की तरह
खुद ही कश्ती को डुबोने पे मचल जाऊँगा