हिलाओ पूँछ तो करता है प्यार अमरीका
हिलाओ पूँछ तो करता है प्यार अमरीका ।
झुकाओ सिर को तो देगा उधार अमरीका ।
बड़ी हसीन हो बाज़ारियत को अपनाओ,
तुम्हारे हुस्न को देगा निखार अमरीका ।
बराबरी की या रोटी की बात मत करना,
समाजवाद से खाता है ख़ार अमरीका ।
आतंकवाद बताता है जनसंघर्षों को,
मुशर्रफ़ों से तो करता है प्यार अमरीका ।
ये लोकतंत्र बहाली तो इक तमाशा है,
बना हुआ है हक़ीक़त में ज़ार अमरीका ।
विरोधियों को तो लेता है आड़े हाथों वह,
पर मिट्ठूओं पे करे जाँ निसार अमरीका ।
प्रचण्ड क्रान्ति का योद्धा या उग्रवादी है,
सच्चाई क्या है करेगा विचार अमरीका ।
तेरे वुजूद से दुनिया को बहुत ख़तरा है,
यह बात बोल के करता है वार अमरीका ।
स्वाभिमान गँवाकर उदार हाथों से,
जो एक माँगो तो देता है चार अमरीका ।
हरेक देश को निर्देश रोज़ देता है,
ख़ुदा कहो या कहो थानेदार अमरीका ।
मैं अमरीका का पिठ्ठू और तू अमरीकी लाला है
मैं अमरीका का पिठ्ठू और तू अमरीकी लाला है
आजा मिलकर लूटें–खाएँ कौन देखने वाला है
मैं विकास की चाबी हूँ और तू विकास का ताला है
सेज़ बनाएँ, मौज़ उड़ाएँ कौन पूछ्ने वाला है
बरगर-पीजा खाना है और शान से जीना-मरना
ऐसी–तैसी लस्सी की, अब पेप्सी कोला पीना है
डॉलर सबका बाप है और रुपया सबका साला है
आजा मिलकर लूटें–खायें कौन देखने वाला है
फॉरेन कपड़े पहनेंगे हम, फॉरेन खाना खायेंगे
फॉरेन धुन पर डाँस करेंगे, फॉरेन गाने गायेंगे
एन०आर०आई० बहनोई है, एन०आर०आई० साला है
आजा मिलकर लूट मचाएँ, कौन देखने वाला है
गंदा पानी पी लेते हैं, सचमुच भारतवासी हैं
भूखे रहकर जी लेते हैं, सचमुच के सन्यासी हैं
क्या जानें ये भूखे–नंगे, क्या गड़बड़-घोटाला है
आजा मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है
रंग बदलते कम्युनिस्टों को अपने रंग में ढालेंगे
बाक़ी को आतंकी कहकर क़िस्सा ख़तम कर डालेंगे
संसद में हर कॉमरेड जपता पूंजी की माला है
आजा मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है
पर्वत, नदिया, जंगल, धरती जो मेरा वो तेरा है
भूखा भारत भूखों का है, शाइनिंग इंडिया मेरा है
पूंजी के इस लोकतंत्र में अपना बोलम–बाला है
आजा मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है
तेरी सेना, मेरी सेना मिलकर ये अभ्यास करें
हक़-इन्साफ़ की बात करे जो उसका सत्यानाश करें
एक क़रार की बात ही क्या सब नाम तेरा कर डाला है
आजा मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है
मैं अमरीका का पिठ्ठू और तू अमरीकी लाला है
आजा मिलकर लूटें–खाएँ कौन देखने वाला है
मैं विकास की चाबी हूँ और तू विकास का ताला है
सेज़ बनाएँ, मौज़ उड़ाएँ कौन पूछ्ने वाला है
चलो कि मंजिल दूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं, चलो कि मंज़िल दूर नहीं
आगे बढ़कर पीछे हटना वीरों का दस्तूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं …
चिड़ियों की चूँ-चूँ को देखो जीवन संगीत सुनाती
कलकल करती नदिया धारा चलने का अंदाज़ बताती
ज़िस्म तरोताज़ा हैं अपने कोई थकन से चूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं ..
बनते-बनते बात बनेगी बूँद-बूँद सागर होगा
रोटी कपड़ा सब पाएँगे सबका सुंदर घर होगा
आशाओं का ज़ख़्मी चेहरा इतना भी बेनूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं….
हक़ मांगेंगे लड़ कर लेंगे मिल जाएगा उत्तराखंड
पहले यह भी सोचना होगा कैसा होगा उत्तराखंड
हर सीने में आग दबी है चेहरा भी मज़बूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं ..
पथरीली राहें हैं साथी संभल-संभल चलना होगा
काली रात ढलेगी एक दिन सूरज को उगना होगा
राहें कहती हैं राही से आ जा मंज़िल दूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं .. चलो कि मंज़िल दूर नहीं
ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के
ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के ।
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के ।
कह रही है झोपडी औ’ पूछते हैं खेत भी,
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के ।
बिन लड़े कुछ भी यहाँ मिलता नहीं ये जानकर,
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के ।
कफ़न बाँधे हैं सिरों पर हाथ में तलवार है,
ढूँढने निकले हैं दुश्मन लोग मेरे गाँव के ।
हर रुकावट चीख़ती है ठोकरों की मार से,
बेडि़याँ खनका रहे हैं लोग मेरे गाँव के ।
दे रहे हैं देख लो अब वो सदा-ए-इंक़लाब,
हाथ में परचम लिए हैं लोग मेरे गाँव के ।
एकता से बल मिला है झोपड़ी की साँस को,
आँधियों से लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के ।
तेलंगाना जी उठेगा देश के हर गाँव में,
अब गुरिल्ले ही बनेंगे लोग मेरे गाँव में ।
देख ‘बल्ली’ जो सुबह फीकी दिखे है आजकल,
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेरे गाँव के ।
बर्फ़ से ढक गया है पहाड़ी नगर
बर्फ़ से ढक गया है पहाड़ी नगर ।
चाँदी-चाँदी हुए हैं ये पत्थर के घर ।
ख़ूबसूरत नज़ारे बुलाते हैं आ,
मैं परेशान हूँ पहले देखूँ किधर ।
तेरे दाँतों-सी सुन्दर सफ़ेदी लिए,
रास्ते मुस्कराए मुझे देखकर ।
तेरे चेहरे-से सुन्दर मकानों में ही,
काश होता सनम एक अपना भी घर ।
चूमकर पैर पगडंडियाँ हँस पड़ीं,
तू गिरेगा नहीं देख इतना न डर ।
ठण्डी-ठण्डी हवाएँ गले से मिलीं,
और कहने लगीं हो सुहाना सफ़र ।
चीड़ के पेड़ कुहरे में उड़ते लगें,
टहनियाँ हैं या उड़ते परिन्दों के पर ।
दिल है मेरा भी तेरी तरह फूल-सा,
इस पे होने लगा मौसमों का असर ।
मुस्कराते हुए ये हँसी वादियाँ,
कह रही हैं हमें देखिएगा इधर ।
बर्फ़ की सीढ़ियाँ, बर्फ़ की चोटियाँ,
हैं बुलाती हमें आइएगा इधर ।
तेरी जुल्फ़ों-सी काली नहीं रात ये,
है बिछी चाँदनी देखता हूँ जिधर ।
काली नज़रों से, यारो ! बचाओ इन्हें,
इन पहाड़ों पे जन्नत है आती नज़र ।
ज़िन्दगी ख़ूबसूरत पहाड़न लगे,
साथ तेरा हो और हो पहाड़ी सफ़र ।
हम मिले अर्थ जीवन ने पाए नए,
देख ‘बल्ली’ का चेहरा गया निखर ।
ये किसको ख़बर थी कि ये बात होगी
ये किसको ख़बर थी कि ये बात होगी
पकी खेतियों पर भी बरसात होगी
ये सूखे हुए खेत कहते हैं मुझसे
सुना था कि सावन में बरसात होगी
ये सावन भी जब सावनों-सा नहीं है
तो फिर कैसे कह दूँ कि बरसात होगी
उमड़ते हुए बादलो! ये बताओ
कि रिमझिम की भाषा में कब बात होगी
उसूलों को जीवन में शामिल भी रखना
कभी बेअसूलों से फिर बात होगी
अँधेरे हो तुम तो उजाले हैं हम भी
कभी न कभी तो मुलाक़ात होगी
तय करो किस ओर हो तुम
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।
आदमी के पक्ष में हो या कि आदमखोर हो ।।
ख़ुद को पसीने में भिगोना ही नहीं है ज़िन्दगी,
रेंग कर मर-मर कर जीना ही नहीं है ज़िन्दगी,
कुछ करो कि ज़िन्दगी की डोर न कमज़ोर हो ।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।।
खोलो आँखें फँस न जाना तुम सुनहरे जाल में,
भेड़िए भी घूमते हैं आदमी की खाल में,
ज़िन्दगी का गीत हो या मौत का कोई शोर हो ।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।।
सूट और लंगोटियों के बीच युद्ध होगा ज़रूर,
झोपड़ों और कोठियों के बीच युद्ध होगा ज़रूर,
इससे पहले युद्ध शुरू हो, तय करो किस ओर हो ।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।
आदमी के पक्ष में हो या कि आदमखोर हो ।।