फुटपाथ बिछौने हैं
अपने नीचे सड़कों के फुटपाथ बिछौने हैं
कोई खिलौना मांग न बेटे! हम ही खिलौने हैं
कच्चे-पक्के, टूटे-फूटे
मन-सा घर का सपना
सपनों की दुनिया में ही तो
जीता है सुख अपना
उजड़े हुए चमन में ही तो सपने बोने हैं
दुख के झूले पर जीवन की
लम्बी पींग बढ़ाना
पत्ता-पत्ता नींद से जागे
ऎसे पेड़ हिलाना
हार न जाना, छाँव-फूल-फल अपने होने हैं
दोस्तो, हमारा एक-एक पल
दोस्तो हमारा एक-एक पल
ज़िन्दगी सँवारने को है विकल
हमने अपने दर्द को मिला दिया जहान से
औ’ जहाँ के दर्द को सुबह के आसमान से
हम ही ज़िन्दगी की झील में खिलाएंगे कँवल
अब हमारे ख़्वाब में है आदमी की ज़िन्दगी
ज़िन्दगी का प्यार और ज़िन्दगी की हर ख़ुशी
तोड़ देगा छल समय के अपनी एकता का बल
वो हमारी प्यास पी के जी रहे हैं देखिए
हम दुखों के आसमान पी रहे हैं देखिए
हम समुद्र हैं, गगन से बरसें तो उथल-पुथल
और कितने दिन चलेगा प्यास का यह सिलसिला
मौत की हदों में आ गया है लूट का किला
हम नए निर्माण की हैं नींव के पत्थर सबल
हम जियें या न जियें \
हम जियें या न जियें
जो लोग कल को आएँगे
हम उनको क्या दे जाएँगे
ये बात दिल में है अगर
ऎ दोस्त कुछ तो कर गुज़र…ऐ दोस्त कुछ तो कर गुज़र
ढल रहा है दिन तो क्या
ये रात भी ढलेगी कल
तू आज इस अंधेरी रात में मशाल बन के जल
तू चल किसी भी रास्ते
नई सुबह के वास्ते
ख़ुद ही बना के रास्ता तू ही दिखा नई डगर…
तू देख पंछियों की तरह उड़ के सारा आसमान
देख हर दरख़्त पर से घोंसलों के दरमियान
देख हर दरख़्त को
ताज और तख़्त को
तू देख चिमनियों के बीच में धुआँ-धुआँ शहर…
गुज़र गया जो कल तू उस पे इस तरह न हाथ मल
दिल के हर गुबार को न दिल में इस तरह कुचल
तू सिर्फ़ ईंट है तो क्या
नई इमारतें उठा
तू एक बार देख उठ के देख अपने पाँव पर…
दुख के कितने पर्वत चढ़ने
दुख के कितने पर्वत चढ़ने होंगे अभी और रे
रात के अँधेरों में छिपी है कहाँ भोर रे…
चलते-चलते राह मिली न चाह मिली न छाँव
उम्मीदें पत्तों-सी टूटीं, पीछे छूटे पाँव
टूटी न फिर भी कैसे जीवन की डोर रे…
सूरज जलता धरती जलती जलता है आकाश
तेरा-मेरा जीवन पीकर बुझती किसकी प्यास
हँसते हैं किस पे काली दुनिया के चोर रे…
कितने सागर कितनी नदियाँ कितने तूफ़ाँ बाक़ी
कितने सपने कितनी चाहें कितने अरमाँ बाक़ी
नाचेंगे किस बारिश में मन के सब मोर रे…
धर्म की चादर तान रे बन्दे
धर्म की चादर तान रे बन्दे धर्म की चादर तान
रहे, रहे ना चाहे पगले तू कोई इनसान रे बन्दे…
योगी-भोगी, बाबा-साबा, सन्त-वन्त बन जा रे
टाट-वाट का चक्कर कर के ठाठ-बाट से खा रे
भगवा जीवन करता जा तू धन को अन्तर्धान रे…
धर्म-कर्म की खुली छूट है जो चाहे सो कर ले
बाबाओं का देश निकम्मे भवसागर में तर ले
उस के नाम पे बन जा ख़ुद छोटा-मोटा भगवान रे…
कर्म किए जा सब धर्मों का है भक्तों से कहना
सब के हिस्से का फल आख़िर तेरे पास ही रहना
फल खा पेट पे हाथ फिरा और चन्दन मुँह पे सान रे…
लड़ते हुए सिपाही का गीत
लड़ते हुए सिपाही का गीत बनो रे
हारना है मौत तुम जीत बनो रे …
फूलों से खिलना सीखो, पँछी से उड़ना
पेड़ों की छाँव बनके, धरती से जुड़ना
पर्वत से सीखो कैसे चोटी पे चढ़ना
गेहूँ के दानों-सी प्रीत बनो रे …
जब बैठे-बैठे आँखें भर आएँ दुख से
फिर सोचना दिन कैसे बीतेंगे सुख से
दुख की लकीरें मिट जाएँगी मुख से
सूरज-सा उगने की रीत बनो रे …
माथे पे छलके भाई जब भी पसीना
इक पल हवाओं के भी ओठों पर जीना
तब देखना रे कैसे फूलेगा सीना
सीने में धड़के जो संगीत बनो रे …
पाप का घड़ा तो आख़िर फूटेगा भाई
पापी किस-किस से फिर छूटेगा भाई
कोई लुटेरा कब तक लूटेगा भाई
ख़ून-पसीने के मीत बनो रे …
धरती से सोना उगाने वाले
धरती से सोना उगाने वाले भाई रे
माटी से हीरा बनाने वाले भाई रे
अपना पसीना बहाने वाले भाई रे
उठ तेरी मेहनत को लूटे है कसाई रे…
मिल-कोठी-कारें ये सड़कें ये इंजन
इन सब में तेरी ही मेहनत की धड़कन
तेरे ही हाथों ने दुनिया बनाई
तूने ही भरपेट रोटी न खाई
हँसी तेरे होठों की किसने चुराई रे…
धरती भी तेरी ये अम्बर भी तेरा
तुझ को ही लाना है अपना सवेरा
तू ही अँधेरों में सूरज है भाई!
तू ही लड़ेगा सुबह की लड़ाई
तभी सारी दुनिया ये लेगी अंगड़ाई रे…
क़दम मिलाओ साथियो
क़दम मिलाओ, साथियो! चलेंगे साथ-साथ हम
एक साथ ही उठाएंगे करोड़ हाथ हम
गुज़र गए हज़ार साल, ज़िन्दगी गुलाम है
साँस-साँस पर अभी भी ज़ालिमों का नाम है
बढ़ गए ज़ुल्म के निशान और पीठ पर
वे ही दिन हैं वे ही रात और वे ही शाम हैं
बदलने आग में चले हैं धड़कनों की बात हम
क़दम-क़दम पर लाठियाँ, क़दम-क़दम पर गोलियाँ
जानवर ये खेलते रहे लहू की होलियाँ
आदमी की शक्ल में ये जानवर की हरकतें
जानवर ने सीख ली हैं आदमी की बोलियाँ
सरफ़रोशों की ही हैं सरफिरी जमात हम
बूँद-बूँद मिल के समन्दर बनेंगे साथियो
राई-राई मिल पहाड़ से उठेंगे साथियो
अपने-अपने दिल की आग को मिला के एक साथ
हम सुबह के सूर्य की तरह उगेंगे साथियो
स्याह रात को हैं आफ़ताब की बरात हम