लड़की का इतिहास
हर बाग़ का एक इतिहास होता है जैसे-
इस बाग़ का भी अपना एक इतिहास है
हर व्यक्ति का एक इतिहास होता है जैसे
इस लड़की का भी अपना एक इतिहास है
हर लड़की एक बाग़ होती है जैसे
इस लड़की का भी अपना एक बाग़ है
सबसे पहले यह एक लड़की है
जो बाग़ लगाती हुई इतिहास बनाती है
साथ-साथ कई-कई क्यारियाँ
जुदा-जुदा कई-कई फुलवारियाँ सजाती है
ख़ुशबू और रंग का
पहचान और पहनावे का अलग-अलग सिलसिला…
क्योंकि वह लड़की बाग़ है
इसलिए फूलों को तोड़ने
और भँवरों के मंडराने पर रोक है…
लड़की की पदचापों के संकेतों पर
खिलते हैं फूल; महकती हैं फूलवारियाँ
लड़की की साँसों के सुरों में
गाते हैं पक्षी, सजती हैं क्यारियाँ
ख़ुशबू की दस्तकें
झक्क खिली हरियाली के कहकहे…
यों इन फूल-बेलों से भारी / क्यारियों से घिरे-
मक़बरों / और उनकी पथराई ख़ामोशियों का भी
अपना इतिहास है…
लड़की कहीं कुछ बेल-बीज बो कर
गाती-गुनगुनाती करती है इन्तज़ार-
बेलों के दीवारों पर चढ़ने
दीवारों को फांदने का…
फिर एक दिन
इन बेलों के नाज़ुक इरादों के साथ
लड़की दीवार फांद
इतिहास में बदल जाती है
यों बाग़ों का इतिहास-
लड़की का इतिहास है-
जहाँ मुर्दे-गड़े मक़बरें हैं जीवित
डबडबाए पानी के तालाब; फूलों के सघन झाड़
गाते पक्षियों के समूह, मंडराते भँवरों के झुंड
ख़ामोश दीवारों के लम्बे साए…
यहाँ और-और लड़कियाँ आईं
आती रहीं…
यहाँ और-और फूल खिले
खिलते रहे…
यहाँ और-और मक़बरे बने
बनते रहे…
यहाँ और-और बेलें खिलीं
खिलती रहीं…
अपनी ख़ुशबुओं महकी मिट्टी को
अंजुरी में उठाए,
टप-टप आँसुओं भिगोती रही लड़की
बाग़ में चोरी छिपे
आती रही लड़की
जाती रही लड़की
फूल और पत्थर के साथ-साथ होने के
नए-नए रिश्तों के साथ
फूल खिलते रहे
बेलें दीवारें फांदती रहीं
मक़बरों की दीवारें उन्हें देखती ख़ामोश…
यों बड़े-बड़े ऎतिहासिक बाग़ों को
बाग़ों के इतिहासों को
लड़की ने बनाया है
अपनी ख़ुशबूदार साँसों से
दीवार फांदनी बेलदार इच्छाओं
डबडबाए तालाबों
और मक़बरा बनती देहों से
सजाया है!
सूर्योदय-पूर्व
अछोर अंधकार सघन,ऊपर
हिल्लौलता हूकता हुंकारता जल नीचे,फेनिल
सागर तट पर…
अचानक, अंगार रेखा दिख गई
लो !
अग्नि के ओभ-विलास की
अनु-लिपि सहसा लिख गई !
अंगार रेखा दिख गई…